(देश की आजादी के लिए जलियांवाला बाग के अमर शहीदो के नाम एक कविता)
-रचित भावसार
इतिहास के सुनहरे पन्नों पर ,
आज बलिदान की गाथा लिखाई थी,
वीरों की एक एक रक्त चिंगारी ने,
स्वतंत्रता की ज्योत जगाई थी।
डायर के काले करतूतों ने,
सत्ता की नींद उड़ाई थी,
सदियों के धोर अंधेरे बाद,
आज नई सुबह आई थी।
क्या पता था कायर अत्याचारियों को?
बलिदान यर्थ नहीं जाएगा,
हर एक क्रुर वार की कीमत ,
हिंदूस्थान चुकाएगा।
कुर्बानी का नया रणशंख,
जलियांवालो ने फूंका था,
देश के खातिर मर मिटने का,
यज्ञ आज आरंभ हुआ था।
वंदन उन हुतात्माओ को जिन्होंने,
आनेवाले कल को पहचाना था,
आहुति की ज्वाला में अर्पण कर ,
गुलामी का अंधेर मिटाया था।
न भूलें उन जांबाजों को,
जिसने अपना खून बहाया,
साम्राज्य का ध्वज पटकाया,
एक राष्ट उभर कर आया।
स्मरण रहे उस बलिदान का हर पल,
अविस्मरणीय गौरवशाली इतिहास हमारा,
आओ बढ़े आगे साथ साथ,
लहराएं परचम हमारा,
विजयीविश्व तिरंगा प्यारा।