शीतल ,स्वच्छ ,निर्मल,अदभुत था उसका आँचल
अब उस आँचलमें दाग लग गये ,
भेडियो की टोली थी
वो एकदम अकेली थी
जब तक थी हिम्मत वो लडती रही
अपवित्र न हो तन , संघर्ष करती रही
हार गयी हैवानो से
बिगड़े हुए इंसानों से
लुटी हुई अस्मत, पर संघर्ष जारी था
बलात्कारी लड़की का साहस इज्जतदारो पर भारी था
प्रेमी जो कहता था तुम हो चाँद का टुकड़ा वो छोर चूका था
दामन पर लग गये थे दाग , मुह मोड़ चुका था
रिश्तेदारों, इंसानियत के ठेकेदारों ने भी कहर बरसाया था
अप्रिय शब्द बाणों से ह्रदय पर आघात कराया था
वो पर्वत बन लडती रही आने वाले तूफानों से
उसे प्यार मिला अपनों से नही ,सच्चे दिल के अंजानो से
गिरती पड़ती फिर से उठी रौशनी दिया अंधेरो में
आशा की किरण जगाया आने वाले सवेरो में
दाग तो है उस आँचल में पर ममतामयी है वो आँचल
बन बैठी है अपनी जैसी दुखियारियो के आँखों का काजल |
अर्जित पाण्डेय