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अस्मत

15 सितम्बर 2015

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शीतल ,स्वच्छ ,निर्मल,अदभुत था उसका आँचल अब उस आँचलमें दाग लग गये , भेडियो की टोली थी वो एकदम अकेली थी जब तक थी हिम्मत वो लडती रही अपवित्र न हो तन , संघर्ष करती रही हार गयी हैवानो से बिगड़े हुए इंसानों से लुटी हुई अस्मत, पर संघर्ष जारी था बलात्कारी लड़की का साहस इज्जतदारो पर भारी था प्रेमी जो कहता था तुम हो चाँद का टुकड़ा वो छोर चूका था दामन पर लग गये थे दाग , मुह मोड़ चुका था रिश्तेदारों, इंसानियत के ठेकेदारों ने भी कहर बरसाया था अप्रिय शब्द बाणों से ह्रदय पर आघात कराया था वो पर्वत बन लडती रही आने वाले तूफानों से उसे प्यार मिला अपनों से नही ,सच्चे दिल के अंजानो से गिरती पड़ती फिर से उठी रौशनी दिया अंधेरो में आशा की किरण जगाया आने वाले सवेरो में दाग तो है उस आँचल में पर ममतामयी है वो आँचल बन बैठी है अपनी जैसी दुखियारियो के आँखों का काजल | अर्जित पाण्डेय

अर्जित पाण्डेय की अन्य किताबें

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आज का अभिमन्यु

15 सितम्बर 2015
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क्या मै अभिमन्यु जैसा इस चक्रव्यूह मेंफसकर प्राणों कि आहुति दे पाउँगाया वासुदेव के पदचिन्हों पर चलकरकलयुग के कौरवो का विनाश बन जाऊंगाहर जगह इक दुर्योधन हमे झपट रहा हैशकुनि बन कोई ,चाले चलकर हमे कपट रहा हैअब दुशासन भी आँखों से चीर हरण कर लेते हैचलते चलते पथ पर अपने द्रौपदी ढूंढ लेते हैक्या आज द्रौपद

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अस्मत

15 सितम्बर 2015
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शीतल ,स्वच्छ ,निर्मल,अदभुत था उसका आँचलअब उस आँचलमें दाग लग गये ,भेडियो की टोली थीवो एकदम अकेली थीजब तक थी हिम्मत वो लडती रहीअपवित्र न हो तन , संघर्ष करती रहीहार गयी हैवानो सेबिगड़े हुए इंसानों सेलुटी हुई अस्मत, पर संघर्ष जारी थाबलात्कारी लड़की का साहस इज्जतदारो पर भारी थाप्रेमी जो कहता था तुम हो चाँद

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मेरी अंजलि

16 सितम्बर 2015
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सब्जी खरीदकर जैसे ही मै पलटा था कि सामने से आती हुई काया को देखकर सोच में पड़ गया ,त्यौरिया चढ़ाकर उस आती हुई माहिला को पहचानने की कोशिश करने लगा था मै ,थोडा और करीब आने पर मुझे पता चला ये तो अंजली थी ,मेरी अंजली, ये वो अंजली थी जिसे मै कभी प्यार करता था जिसे मै कभी भूल नही पाया ,वो अंजली जिसे द

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