क्या मै अभिमन्यु जैसा इस चक्रव्यूह में
फसकर प्राणों कि आहुति दे पाउँगा
या वासुदेव के पदचिन्हों पर चलकर
कलयुग के कौरवो का विनाश बन जाऊंगा
हर जगह इक दुर्योधन हमे झपट रहा है
शकुनि बन कोई ,चाले चलकर हमे कपट रहा है
अब दुशासन भी आँखों से चीर हरण कर लेते है
चलते चलते पथ पर अपने द्रौपदी ढूंढ लेते है
क्या आज द्रौपदी है पवित्र पावन गंगा सी
जो इक आवाहन पर वासुदेव चले आयेंगे
फिर कितने ही दुसासन हो इस धरती पर
वो चीर हाथो से बढ़ाते चले जायेंगे
क्या मेरे अन्दर इतना सद्गुण , सदाचार है
कि आज मुरारी सारथि ,मेरे बन जायेंगे
क्या आज प्रभु को भक्तो से इतना प्रेम मिला है
कि आकर धरा पे गीता पुनः सुना जायेंगे
क्या मै पांड्वो कि तरह दुखो को सहते हुए
दुर्लभ धर्म पथ हसते हसते चल पाउँगा
या अर्जित बनकर लोभ ,काम, क्रोध ,मोह ,माया में फसकर
लोभी ,कपटी क्रोधी इंसान बनकर रह जाऊंगा
अर्जित पाण्डेय