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आज का अभिमन्यु

15 सितम्बर 2015

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क्या मै अभिमन्यु जैसा इस चक्रव्यूह में फसकर प्राणों कि आहुति दे पाउँगा या वासुदेव के पदचिन्हों पर चलकर कलयुग के कौरवो का विनाश बन जाऊंगा हर जगह इक दुर्योधन हमे झपट रहा है शकुनि बन कोई ,चाले चलकर हमे कपट रहा है अब दुशासन भी आँखों से चीर हरण कर लेते है चलते चलते पथ पर अपने द्रौपदी ढूंढ लेते है क्या आज द्रौपदी है पवित्र पावन गंगा सी जो इक आवाहन पर वासुदेव चले आयेंगे फिर कितने ही दुसासन हो इस धरती पर वो चीर हाथो से बढ़ाते चले जायेंगे क्या मेरे अन्दर इतना सद्गुण , सदाचार है कि आज मुरारी सारथि ,मेरे बन जायेंगे क्या आज प्रभु को भक्तो से इतना प्रेम मिला है कि आकर धरा पे गीता पुनः सुना जायेंगे क्या मै पांड्वो कि तरह दुखो को सहते हुए दुर्लभ धर्म पथ हसते हसते चल पाउँगा या अर्जित बनकर लोभ ,काम, क्रोध ,मोह ,माया में फसकर लोभी ,कपटी क्रोधी इंसान बनकर रह जाऊंगा अर्जित पाण्डेय

अर्जित पाण्डेय की अन्य किताबें

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आज का अभिमन्यु

15 सितम्बर 2015
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क्या मै अभिमन्यु जैसा इस चक्रव्यूह मेंफसकर प्राणों कि आहुति दे पाउँगाया वासुदेव के पदचिन्हों पर चलकरकलयुग के कौरवो का विनाश बन जाऊंगाहर जगह इक दुर्योधन हमे झपट रहा हैशकुनि बन कोई ,चाले चलकर हमे कपट रहा हैअब दुशासन भी आँखों से चीर हरण कर लेते हैचलते चलते पथ पर अपने द्रौपदी ढूंढ लेते हैक्या आज द्रौपद

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अस्मत

15 सितम्बर 2015
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शीतल ,स्वच्छ ,निर्मल,अदभुत था उसका आँचलअब उस आँचलमें दाग लग गये ,भेडियो की टोली थीवो एकदम अकेली थीजब तक थी हिम्मत वो लडती रहीअपवित्र न हो तन , संघर्ष करती रहीहार गयी हैवानो सेबिगड़े हुए इंसानों सेलुटी हुई अस्मत, पर संघर्ष जारी थाबलात्कारी लड़की का साहस इज्जतदारो पर भारी थाप्रेमी जो कहता था तुम हो चाँद

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मेरी अंजलि

16 सितम्बर 2015
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सब्जी खरीदकर जैसे ही मै पलटा था कि सामने से आती हुई काया को देखकर सोच में पड़ गया ,त्यौरिया चढ़ाकर उस आती हुई माहिला को पहचानने की कोशिश करने लगा था मै ,थोडा और करीब आने पर मुझे पता चला ये तो अंजली थी ,मेरी अंजली, ये वो अंजली थी जिसे मै कभी प्यार करता था जिसे मै कभी भूल नही पाया ,वो अंजली जिसे द

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