आवश्यक सूचना
(यह राजनितिक हालातो के परिपेक्ष्य पर लिखी गयी है इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है )
(मन की बाते)
कभी जनता को मन की बातों से बहला रहे है ।
कभी दुनिया को धन की बातों में टहला रहे है ।।
क्या कहे शख्सियत वतन वजीर-ए-आला की।
भाई सरीखे को भी रेनकोट में नहला रहे है ।।
कौन नही वाकिफ अंदाज-ऐ -बया से इनके ।
नोटों के मार तमाचें मीठी बातो से सहला रहे है ।।
अगर होते है दलदल-ऐ-हमाम में सभी नंगे ।
फिर खुद को कैसे पाक साफ बतला रहे है।।
देखना है हाल-ऐ-हिन्द तो गाँवों में जाकर देखो।
क्यों शहरी आबोहवा आमजन को दिखला रहे है ।
वतन तो आज भी कैद है चंद लोगो की मुट्ठी में।
बना के खिलौना इस हाथ से उस हाथ झुला रहे है।
राजनीति के हालात आज तुमने कैसे बना डाले ।
काम से ज्यादा जनता को वादों में टहला रहे है ।।
सजता है कभी ताज इनके सर कभी उनके सर ।
आमजन को आज भी खून के आंसू रुला रहे है।।
कोई करे इत्तेफाक या न करे जमीनी हकीकत से
समझ के कर्म “धर्म” आज सच को दिखला रहे है।।
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डी के निवातिया