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तेरी नज़रो में

26 जून 2019

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विषय : लेखन

विधा : ग़ज़ल /गीतिका

शीर्षक : तेरी नज़रो में

तिथि : २६/०६/२०१९


तेरी नज़रो में मेरी कीमत रही कुछ ख़ास नही,

इसलिए मैं आता तुम्हे अब ज़रा भी रास नही ।


संग में जिए होंगे कुछ पल कभी तो ख़ुशी के,

पलट के देख जिंदगी इतनी भी तो उदास नही ।


नफरत का नकाब उतार गौर से देख कभी

क्या इस निराशा में, पल की भी आस नही


टूट जाया करते है पत्थर भी एक बद्दुआ से,

अपना घर तोडना क्या खुद का विनाश नही ।


नफरत दिल में पैदा करना बड़ा ही आसान है,

सच्चे प्यार पर अक्सर होता क्यों विश्वास नही ।


कौन है वो जिसने विष घोला अमृत के जाम में,

पीकर जिसे अब तुम्हे आती चैन की सांस नही।


महसूस कर वो लम्हे जिनसे मिले दिल-ऐ-करार

क्या सचमुच में कोई ऐसी सौगात तेरे पास नही।


हैरत में आ जाए जग देखकर हालात-ऐ-जिंदगी

ऐसे उड़ाता, अपनों का भी, कोई परिहास नही !


कर सके कोई फख्र मेरा भी नाम लेकर जग में ,

क्या इतनी भी गैरत बची "धर्म" के पास नहीं ।।

!

स्वरचित : डी के निवातिया








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वीरेंद्र कुमार गुप्ता

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संग में जिए होंगे कुछ पल कभी तो ख़ुशी के, पलट के देख जिंदगी इतनी भी तो उदास नही । बहुत खूब और पोजिटिव वीरेन्द्र

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बेटियाँ — निवातिया डी. के.

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कलयुगी भक्ति में देखि शक्ति अपार, तभी तो बन बैठे वो महान !कितने मुखड़े छिपे इन चेहरो में, इससे विचलित है स्वंय भगवान !!लूट खसोट कर अमीर बन गए वोजो दिन-रात करते करतूते काली !मंदिर में बैठकर करते पूजा आरतीदर पे बैठे भिखारी को बकते गाली !!कलयुगी भक्ति में देखि शक्ति अपार,

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भावी आथित्य संस्कारो की झलकियां

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आवश्यक सूचना (यह राजनितिक हालातो के परिपेक्ष्य पर लिखी गयी है इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है )(मन की बाते)कभी जनता को मन की बातों से बहला रहे है ।कभी दुनिया को धन की बातों में टहला रहे है ।।क्या कहे शख्सियत वतन वजीर-ए-आला की।भाई सरीखे को भी रेनकोट में

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खुली अगर जुबान तो किस्से आम हो जायेंगे।इस शहरे-ऐ-अमन में, दंगे तमाम हो जायेंगे !!न छेड़ो दुखती रग को, अगर आह निकली ! नंगे यंहा सब इज्जत-ऐ-हमाम हो जायेंगे !!देकर देखो मौक़ा लिखने का तवायफ को भी ! शरीफ़ इस शहर के सारे, बदनाम हो जायेंगे।।दबे हुए है शुष्क जख्म इन्हें दबा ही

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तेरी नज़रो में

26 जून 2019
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विषय : लेखन विधा : ग़ज़ल /गीतिका शीर्षक : तेरी नज़रो में तिथि : २६/०६/२०१९ तेरी नज़रो में मेरी कीमत रही कुछ ख़ास नही,इसलिए मैं आता तुम्हे अब ज़रा भी रास नही ।संग में जिए होंगे कुछ पल कभी तो ख़ुशी के,पलट के देख जिंदगी इतनी भी तो उदास नही ।नफरत का नकाब उतार गौर से देख कभीक्या

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सोचा न था !एक रोज़ इस मोड़ से गुजरना पड़ेगा, जिंदगी को मौत से यूँ लड़ना पड़ेगा,चलते चलते लड़खड़ायेंगे पग राहो में गिरते गिरते खुद ही सम्भलना पड़ेगा !!!डी के निवातिया

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