विषय : लेखन
विधा : ग़ज़ल /गीतिका
शीर्षक : तेरी नज़रो में
तिथि : २६/०६/२०१९
तेरी नज़रो में मेरी कीमत रही कुछ ख़ास नही,
इसलिए मैं आता तुम्हे अब ज़रा भी रास नही ।
संग में जिए होंगे कुछ पल कभी तो ख़ुशी के,
पलट के देख जिंदगी इतनी भी तो उदास नही ।
नफरत का नकाब उतार गौर से देख कभी
क्या इस निराशा में, पल की भी आस नही
टूट जाया करते है पत्थर भी एक बद्दुआ से,
अपना घर तोडना क्या खुद का विनाश नही ।
नफरत दिल में पैदा करना बड़ा ही आसान है,
सच्चे प्यार पर अक्सर होता क्यों विश्वास नही ।
कौन है वो जिसने विष घोला अमृत के जाम में,
पीकर जिसे अब तुम्हे आती चैन की सांस नही।
महसूस कर वो लम्हे जिनसे मिले दिल-ऐ-करार
क्या सचमुच में कोई ऐसी सौगात तेरे पास नही।
हैरत में आ जाए जग देखकर हालात-ऐ-जिंदगी
ऐसे उड़ाता, अपनों का भी, कोई परिहास नही !
कर सके कोई फख्र मेरा भी नाम लेकर जग में ,
क्या इतनी भी गैरत बची "धर्म" के पास नहीं ।।
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स्वरचित : डी के निवातिया