मैं आया नादान परिंदा अनजान की तरह !
लौट जाऊँगा एक दिन मेहमान की तरह !!
क्या सहरा,क्या गुलिस्ता, हूँ सब से वाकिफ
कट जायेगा ये भी सफर जाते तूफ़ान की तरह !!
ढूंढ कर अन्धकार में भी प्रकाश की किरण
पाउँगा मंजिल मैं मुसाफिर अनजान की तरह !!
ना करो ऐ दुनिया वालो मेरे ईमान को बदनाम
कहि हो न जाऊं मशहूर बेइमान इंसान की तरह !!
आकर चले जाना ही “धर्म” उसूल जिंदगी का
जब तक हो झनको सरगम की तान की तरह !!
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डी. के. निवातियाँ