सुनो बलम सूनि तुम बिनु दुनिया है।
आओ बाट जोहत तोरी जोगनिया है।
प्रेम पीर प्रेम आनंद प्रेम को ना थाह।
सखी रे कठीन बहुत प्रेम डगरिया है।
होठ कपकपाए जो कहूं पियु हरजाई।
हिय क़रीब मगर दूर बसे बिदेसिया है।
प्रीत करूं घनेरी, नित जपूं प्रेम की माला।
आप कहो विरहिन की कौन सौतनिया है।
प्यासी ना मारूं जो साथी साथ निभाए।
मेरो प्रीतम द्वार नेहा की बहत नदिया है।
क्यूं मैं जाऊं वहां जहां प्रेम ना उपजे।
जय सुनो प्रीत बिनु बेकार नगरिया है।
मृत्युंजय विश्वकर्मा