दिल पर खंजर चलाने वाले बहुत हैं
क्या करें जी मेरे चाहने वाले बहुत हैं
ज़ख्म देकर मिरा हाल-ए-दिल पूछ्ना
ये रश्म़-ए-उल्फ़त निभाने वाले बहुत हैं
सुकूं-ए-दिल फ़क़त तन्हाई ही देती है
भीड़ में यहां शोर मचाने वाले बहुत हैं
हां रोज़ तय करता हूं एक तन्हा सफ़र
यूं तो आवाज लगाने वाले बहुत हैं
अपना सगा कहेंगे औ गुर्बत में छोड़ देंगे,
जनाब ऐसे मतलबी जमाने वाले बहुत हैं
मृत्युंजय विश्वकर्मा