अगर मैं तुझ को भुला दूंगा तो फिर क्या होगा।
बे वज़ह ख़ुद को सजा दूंगा तो फिर क्या होगा।
मौज़-ए-सफ़र में मैं दूर तक जा सकता हूं मगर।
अकेले बुलंदी पर पहुंचूंगा तो फिर क्या होगा।
बज़्म में बैठे सब के सब मतलबपरस्त फरेबी है।
राज़ ये दुनियां को बता दूंगा तो फिर क्या होगा।
शहर में चर्चें है ऐ जलवागर तेरी जलवागिरी की।
मैं तेरे चेहरे से पर्दा हटा दूंगा तो फ़िर क्या होगा।
हां वो तेरी माज़ी की कोई भूली हुई दास्तां है जय।
देखर उसे मैं निगाहें झुका दूंगा तो फिर क्या होगा।
मृत्युंजय विश्वकर्मा