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ग़ज़ल - किसी का साथ निभाऊं क्या?

11 सितम्बर 2021

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मैं फ़िर से किसी से नज़दीकियां  बढ़ाऊं क्या
आधे सफ़र तक किसी'का साथ निभाऊं क्या

जो मेरी निगाह पढ़ के कुछ समझ ना पाया
भला अब उसे मैं दिल के राज़ समझाऊं क्या

मेरा इश्क़ उससे कुछ यू भी न था, मगर 
वो रूठ के जा रहा है मैं उसे बुलाऊं क्या

मेरे अपनों ने खूब वफ़ा निभाई है मुझसे
दोस्तों से नही दुश्मनों से रिश्ता निभाऊं क्या

बड़ी बेदिली से मुझे उसने ठुकरा दिया था
रकीब मुझे बुलाते हैं मैं उनके दर जाऊं क्या

एक गुनाह मैंने भी इश्क़ करके किया है
मेरे पाप धुल जाएंगे मैं भी गंगा नहाऊं क्या

मैंने रकीबों में तुम्हें अच्छे से पहचान लिया
पानी पानी कर दूंगा रुख से पर्दा हटाऊं क्या
  • मृत्युंजय विश्वकर्मा

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ग़ज़ल, चाहने वाले बहुत हैं।

11 सितम्बर 2021
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ग़ज़ल - किसी का साथ निभाऊं क्या?

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कठीन बहुत प्रेम डगरिया है।

11 सितम्बर 2021
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<div><b><i>सुनो बलम सूनि तुम बिनु दुनिया है।</i></b></div><div><b><i>आओ बाट जोहत तोरी जोगनिया है।</i

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इंसानों की बस्ती

11 सितम्बर 2021
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खुदा तो पत्थर का बना है।

12 सितम्बर 2021
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बाट जोहत तोरी जोगनिया है।

14 सितम्बर 2021
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<div><b><i>सुनो बलम सूनि तुम बिनु दुनिया है।</i></b></div><div><b><i>आओ बाट जोहत तोरी जोगनिया है।</i

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Agar mai tujh ko bhila dun?

22 सितम्बर 2021
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<div><i><b><br></b></i></div><div><i><b>अगर मैं तुझ को भुला दूंगा तो फिर क्या होगा।</b></i></div><di

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दर्मियां-ए-आरज़ू

28 अक्टूबर 2021
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<i style="font-size: 1em;"><b>दर्मियां-ए-आरज़ू में रहें तो बेहतर हो।</b></i><br><i style="font-size:

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मैं बदला नहीं था।

29 नवम्बर 2021
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<div><span style="font-size: 1em;">इश्क़ में मैं बदल रहा था बदला नहीं था।</span><br></div><div>सब कु

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किसी की जुल्फ़ों से प्यार कर आया।

12 फरवरी 2022
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इश्क की गलियों का दीदार कर आया।किसी की जुल्फ़ों से मैं प्यार कर आया।जानता हूं उनकी हर एक बाते झूठी है।हां मगर दिल के हाथों ऐतबार कर आया।दिल के कई फसाने जमाने ने सुनाई थी।मैं भी आज दिलों का व्यापार कर

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Punjabi geet

22 मार्च 2022
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मैनू उस दे रूप दे नाल परियां दिस दीवो मिट्टी छू दे ते सोणे दे मोल बिकदीओनू तितलियां बहुत सतान्दी हैओनू हुस्ना फूला दा नाल महकदीदस खुदाया इन्ना सोणा हुस्न क्यूं बणायाजद्दे नाल देखदी हीर दी आंख तरसदीरब्

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मेरी नज़र ही तो है।

22 मार्च 2022
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ज़िंदगी एक सफ़र ही तो है।सारा शहर मेरा घर ही तो है।ये शहर जला, वो कोई माराख़ैर छोड़ो ये ख़बर ही तो है।तेरी बातें खंज़र सी चुभती है।छलनी होने दो जिगर ही तो है।जाने वाले को भला मैं कैसे रोकूं।अपना नहीं

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दिलबर न मिला

22 मार्च 2022
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जैसा चाहा वैसा कोई मंज़र न मिला।मैं उम्र भर सफ़र में रहा घर न मिला।मैं ज़ख़्म सीने पर खाने को तैयार हूं।मगर चाहत भरा कोई खंज़र न मिला।रंज-ओ-ग़म, बेज़ार-ओ-बे'नूर हाय तौबा।दिलों के जहां में एक भी दिलबर

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