मैं फ़िर से किसी से नज़दीकियां बढ़ाऊं क्या
आधे सफ़र तक किसी'का साथ निभाऊं क्या
जो मेरी निगाह पढ़ के कुछ समझ ना पाया
भला अब उसे मैं दिल के राज़ समझाऊं क्या
मेरा इश्क़ उससे कुछ यू भी न था, मगर
वो रूठ के जा रहा है मैं उसे बुलाऊं क्या
मेरे अपनों ने खूब वफ़ा निभाई है मुझसे
दोस्तों से नही दुश्मनों से रिश्ता निभाऊं क्या
बड़ी बेदिली से मुझे उसने ठुकरा दिया था
रकीब मुझे बुलाते हैं मैं उनके दर जाऊं क्या
एक गुनाह मैंने भी इश्क़ करके किया है
मेरे पाप धुल जाएंगे मैं भी गंगा नहाऊं क्या
मैंने रकीबों में तुम्हें अच्छे से पहचान लिया
पानी पानी कर दूंगा रुख से पर्दा हटाऊं क्या