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दर्मियां-ए-आरज़ू

28 अक्टूबर 2021

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दर्मियां-ए-आरज़ू में रहें तो बेहतर हो।
एक दूसरे के दू-ब-दू रहें तो बेहतर हो।

अब रहो दूर मगर दिल-ऐ-ख्वाहिश है।
नज़रों में बस तू ही तू रहे तो बेहतर हो।

बेदार-ए-इश्क कराते है ज़माने वाले,मगर।
किसी का दिल पर काबू रहे तो बेहतर हो।

मोहब्बत, तलब और तमन्ना है उसकी।
आख़िरी दम तक ये जुनूं रहे तो बेहतर हो।

यकीं दिलाने को चले हो तो ऐसा करना।
की आंखों से लहू बहते रहे तो बेहतर हो।

दुश्वारी-ए-सफ़र भी हसीन लगे मुझे,ग़र।
तू मेरी सफ़र का पहलू रहे तो बेहतर हो।

ख़ुदा को पा'कर भला वो किस का हुआ
ता-उम्र जय तेरी आरज़ू रहे तो बेहतर हो।

मृत्युंजय विश्वकर्मा 

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