जैसा चाहा वैसा कोई मंज़र न मिला।
मैं उम्र भर सफ़र में रहा घर न मिला।
मैं ज़ख़्म सीने पर खाने को तैयार हूं।
मगर चाहत भरा कोई खंज़र न मिला।
रंज-ओ-ग़म, बेज़ार-ओ-बे'नूर हाय तौबा।
दिलों के जहां में एक भी दिलबर न मिला
ये तेरी गली ये मेरी गली उफ्फ ये तेरी-मेरी।
इश्क़ से हरा भरा एक भी सज़र न मिला।
शहर दर शहर बस गर्द और ख़ाक ही मिला।
खुशियों भरा कहीं कोई भी शहर न मिला।
हसीं और भी है दुनियां में, मैं जानता हूं जय।
मगर हमसफ़र मुझे कोई आपसे बेहतर न मिला।
मृत्युंजय विश्वकर्मा