बचपन
वो बचपन कितना प्यारा था, कल्पनाओं का जीवन सारा था !
कंचो के खेल में धंधा कर लिया करते थें,
नहाने के बाद भी खुद को गंदा कर लिया करते थे!
जब गेंद बगल में जाती थी,
बगल वाली चाची मुँह फुलाती थी!
फ़िर भी हम जाकर अनुरोध करते थे,
चाहे वो जितना भी क्रोध करते थे!
आज न तो गेंद जाती है ना ही हम !
क्युंकि कौन करे अनुरोध, हम तो है परम !
खुशी देखनी है बच्चों की देखो, अवसाद देखना है खुद को देखो,
जब खुद में बच्चा देख पाओगे तो यही गीत गाओगे ,
वो बचपन कितना प्यारा था, कल्पनाओं का जीवन सारा था !