बड़ी उम्मेदे थी बड़े होने के। सोचा था ज़िन्दगी आसान हो जाएगी, चीज़ें समझ आने लगेंगी। पर क्या पता ये भी एक धोखा होगा। स्कूल ख़तम करके सब सही हो जाएगा। कॉलेज के तीन साल फिर तो और कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। सब झूठ। फरेब हुआ है हमारे साथ। अब क्या करे। ये तो किसी ने बताया ही नहीं की ये सब तो बस तैयारी थी। असली ज
घर में परिवार हुए एकल, मानव बड़े बूढों की छांव बिना, परछाई से नाता जोड़े हैं। अब बड़े बुजुर्ग पलक पसारे, अखियां रस्ता देखे हैं। अब आंगन में नीम, शीशम की छांव नहीं, आंगन भी अब सीमेंट से छाए हैं। बरामदे का दे नाम, दो गमले नीचे रख, कुछ छोटे गमले लटकाये है। बड़ा बूढ़ा दाढ़ी वाला बरगद पूजे का मिले नहीं
पेड़ की छांव में डाल खोजना, उड़ -उड़ कर रसीले फूलो को खोजना मेरा काम है। फूलो के पराग पुंकेसरो से रस चूसना काम है मेरा। अपने दोस्तों हमजोलियों को उस डाल तक लाना काम है मेरा। हम एक दूसरे से कैसे लिपटती/लिपटते है तुम क्या जानो? तुम तो बस इतना जानते हो कि मुझे डंक चुभना आता है।तुम हकीकत को क्या समझोगे कि