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कुछ अनकही बातें

7 जून 2020

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बड़ी उम्मेदे थी बड़े होने के। सोचा था ज़िन्दगी आसान हो जाएगी, चीज़ें समझ आने लगेंगी। पर क्या पता ये भी एक धोखा होगा। स्कूल ख़तम करके सब सही हो जाएगा। कॉलेज के तीन साल फिर तो और कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। सब झूठ। फरेब हुआ है हमारे साथ। अब क्या करे। ये तो किसी ने बताया ही नहीं की ये सब तो बस तैयारी थी। असली जंग तो अब आगे है।


अब खुद से लड़ा करते हैं। अपनी कमज़ोरियों के पीछे छिप कर एक मज़बूत सा चेहरा दुनिया को दिखाते है। किसी ने ये क्यों नहीं बताया की लोग साथ नहीं होते। तुम अकेले हो। दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता की तुम ज़िंदा हो या नहीं। खाना खाया या नहीं। दुनिया आगे बढ़ती है तुम्हारे साथ या तुम्हारे बगैर। देख लो अब बताए देते हैं कल जब तुम यहाँ होगे और ये सोच रहे होगे की अब क्या तब समझ लेना - कुछ नही, कुछ भी नहीं।


बस इतनी सी आकांक्षाएं है तुमसे, इतनी सी उम्मीदें। कल जब तुम यहाँ अकेले खड़े होगे तब किसी की मदद ज़रूर कर देना। क्या पता तुम किसी की ज़िन्दगी बदल दो। या क्या पता तुम्हारे खोए हुई ज़िन्दगी में किसी को अपने कुछ सवालो के जवाब मिल जाएं

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