स्वर्णमृगधारी मारीच हो या सीता जी की कुटिया पर आया हुआ साधुवेशधारी रावण, ये सभी सफल हुए तो मात्र इसलिए कि इनके वाह्य रूप को अंतिम सत्य मान इनके बोलों पर विश्वास कर लिया गया। जब-जब बिना पड़ताल किये हम भावनाओं में बहे हम शोषित हुए। आखिर कब तक स्वार्थसिद्धि के यज्ञ में भावनाओं की समिधा बन अपनी आहुति देते रहेंगे। विवेकी बन भावनाओं के व्यापारियों से बचें
- संजीव शुक्ल