जाना निश्चित है परंतु तिथि अनिश्चित। संसार में आने के बाद प्रथम कार्य जो हमने किया था वो था सांस लेना... और संसार से जाते समय जो अंतिम कार्य हमारे द्वारा किया जायेगा वो भी होगा आखिरी सांस लेना। इस प्रथम और अंतिम सांस के बीच का सारा समय जीवन कहलाता है। विधाता द्वारा प्रदत्त यह समय हमारे लिए किसी वरदान से कम नही ... हम जो करना चाहते हैं .....सीखना चाहते हैं .....बनना चाहते हैं वो सब कार्य इस जीवन करना सम्भव है। अक्सर हमारी शिकायत रहती है ज़िन्दगी छोटी है या कम रह गयी ....वरना ... ऐसा करते वैसा करते। असल में ज़िन्दगी तो भरपूर मिली है पर हम जीना ही बहुत देर से शुरू करते हैं।
जीवन जीने का सही तरीका है की हम वो बन जाएँ जो वास्तव् में हम हैं... चाहे कुछ ख़ास लोगो के सामने ही सही... ज़ोर ज़ोर से बोलें, खुल के रो लें, हंस लें, गाना न आता हो तो भी गा लें, बारिश की बूंदों को अपनी हथेलियों में भरें और चेहरे से लगा लें, कभी बिगड़ जाएँ कभी मना लें, कोई ख्वाहिश अधूरी न छोड़े.... आखिर जीवन एक ही है और आपका अपना भी....। अनेकों बार हम ये सोच ही नही पाते की हमे क्या चाहिए ?? हम वो कहने करने और सोचने लगते हैं जो दूसरों को अच्छा लगेगा ..... ज़िन्दगी हमारी तो दूसरों का हस्तक्षेप की सीमा तय होनी चाहिए। अतः कभी कभी ही सही जो हमारे लिए सही है उसे करने में संकोच न करें।
मृत्यु का जीवन से करार होता है.... वो इसे ले के ही जायेगी परन्तु कई बार हम इस करार की अंतिम तिथि से पहले ही हार मान लेते हैं.... जो बनना था बन गए ....जो सीखना था सीख लिया .....जो करना था कर लिया ....अब करने को कुछ बचा ही नही। ये भी तो मृत्यु ही है... सपनो की मृत्यु .... प्रयासों की मृत्यु... स्वयं पर विश्वास की मृत्यु। किसी भी प्रकार के प्रवाह का रुकना मृत्यु ही है चाहे ये प्रवाह नाड़ियों में रक्त का हो , मस्तिष्क में विचारों का, आँखों में आंसुओं का या ह्रदय में प्रेम और करुणा का....
मृत्यु तो वास्तविकता है .... अटल सत्य है.... पर मरने से पहले जीवन को पूरी तरह जीने का भरसक प्रयास अवश्य ही करें.....