ख़्वाबों का कोई भी शानी नहीं है,
मगर फिर भी कोई निशानी नहीं है।
मेरी ज़िन्दगी की हकीकत है यारो,
अभी तक सुनी वो कहानी नहीं है।
जमाना तो मरहम लगाता नहीं है,
इलाही की भी मेहरबानी नहीं है।
ज़हर की जो तासीर अमृत में ढाले,
अभी इतनी मीरा दिवानी नहीं है।
वो घबरा रहा है किनारों पे बैठा,
मगर मौज कोई तूफ़ानी नहीं है।
सभी जानतें हैं मेरे दिल की हालत,
रही ज़िन्दगी भर जवानी नहीं है।
ख़ुदा खोल दे रहमतों का पिटारा,
मुझे अपनी कीमत लगानी नहीं है।
बड़ी मुश्किलों से गुजरता है इन्सां,
बकत उसकी बेजा गिरानी नहीं है।
बदलता है जब वक़्त करवट किसी का,
ये किस्मत है क्या सबने जानी नहीं है।