17 अगस्त 2022
आईने को क्या जल्दी थी टूटने की ख्वाइशों को क्या जल्दी थी रूठने की हमने ज़रा सा ज़ोर क्या दिया बिखरने लगे रिश्ते हमारे
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इश्क का कर्ज अदा ना कर सका बस यही मेरी खता थी।
हम जिसे पढ़ना चाहते थे उसी के इश्क में अनपढ़ बन बैठे हैं।
कहने को बाकी और क्या जो कहना था कह दिया
हम दूर जाना चाहते हैं उन यादों से लेकिन कमबख्त यह यादें हमें खींच ही लाती हैं
दिल से मात खाई दिल का भी क्या कसूर हमने ही गैरों को अपना समझ लिया था।
इत्मीनान रखिए यह सब्र का कारोबार है बेसब्र है वो जो वक्त की नुमाइश करते हैं
चिंता के रास्ते बहुत लंबे हैं, अफ़सोस का दरिया इससे भी गहरा । अगर डूबना है तो प्यार में डूबो तैरने का जरिया तो मिल जाएगा
कत्ल कर दो चाहे तुम इस दिल का उफ़ तक भी ना करेंगे हम | मोहब्बत एक बार की है सिर्फ तुमसे फिर से ना करेंगे हम।
जानकर भी वो अंजान बन गए खबर रखकर भी बेखबर बन गए सब कुछ जाना था उन्होंने हमारे बारे में फिर भी अजनबी बनकर यूं ही चले गए
खामोशी की वजह हो तुम खुशी की वजह भी तुम्ही थी आज सीने में चुभता है। कुछ क्योंकि मेरी पल पल की खुराक भी तुम्ही थी
आसमान को भी हैरानी होती होगी कि जमीन इतनी खामोश क्यों है
सूरज की हैसियत देखकर हम पीछे छुप गए और वो चांद को भी अपनी औकात बताते चलें गए।
तेरी बातें हर रोज ये दिल क्यों किसी से करना चाहता है
बार-बार पूछता रहा दिल को कि तुझमें ही सुकुन ये क्यों ढूंढता है
मै तुझमें सुकुन क्यों ढूंढता रहता हूं जबकि मुझमें ही इतनी हलचल हैं
मेरे अन्दर ये कश्मकश क्यों है तू और तुम में इतनी बेरुखी क्यों हैं
हाथों में क्या तकदीर, उन्होंने लकीरों के काबिल बना दिया अकेली थी हमारी राहें, उन्होंने मंजिल से मिलवा दिया ।
कभी-कभी जो मदहोशी के पल होते है उन्हें होश में आकर जाया नहीं किया जाता
शब्दों का खेल ही लगता है जिस पर जोर नहीं चलता वरना होंठ कहा किसी को इजाजत देते हैं
इश्क एक तरफा था वह गुजारिश करता भी तो किससे मोहब्बत के पास तो फ़ुर्सत ही नहीं थी
समंदर में भी किनारों से मोहब्बत की होगी, नहीं तो ऐसे ही किनारे समंदर की पहचान नहीं होते
इतनी शिकायतें हैं तुझसे फिर भी दिल में आज तेरा ही नाम है सवाल भी बहुत है तेरे बारे में मेरे फिर क्यों तेरी इबादत इन सब से बड़ी हैं
दिल ढूंढ रहा था चाहत अपनी जिसमें, उसे खो दिया था कभी । आज चाहत भी है और उसे पाया भी है, बस उसका चेहरा नया है ।
ना खामी थी हममें कोई बस, वो हमारी खूबी की पहचान करा गए।
वो भी क्या मंजर थे, ख्वाहिश थी उन मुलाकातों की, उस रिश्ते को नाम देने की, हमें क्या पता था जिसे नाम देने की आरजू है, वहीं एक दिन यूं ख़ामोशी में बदल जाएगा ।
कला ही काफी थी, लगता था बस हमने उसे चित्रों में उतार लिया । जो था वो बस ना था, हमने बस ख्वाहिशों को पिरो लिया । ।
झलक देखकर खुद की उसमें, थोड़ा भी हमें गवारा ना हुआ हम समझते थे उसे एक हसीन सपना उसमें खुद को देखा तो हकीकत से रूबरू हो गए ।।
एक खलिश सी हुई दिल में तुझे यूं टूटा हुआ देखकर
पूरे होकर क्या करें जब बात अधुरे में है, खुशी का जश्नन क्यों मनाए जब मज़ा दर्द में है।
तुम अपने आप में पूरे थे, अधूरे तो हम थे जो तुम्हें पाकर मुकम्मल होना चाहते थे, कितने पागल थे हम !!
कहते हैं इश्क की जुबान नहीं होती, इसका स्वाद आंखों से चखना पड़ता है ।
अगर तुम एक सवाल हो, तो मुझे इसका जवाब नहीं चाहिए गर हो तुम कोई किस्सा, तो मुझे वह किस्सा नहीं सुनना ।
तुझ में मेरा वजूद था, तुझ में मेरा सुकून था दूरियां थी कुछ अल्फाजों की जो कभी कम ना हो सकी
एक तुम ही दवा थी मेरे इन जख्मो की तुमने भी मरहम की जगह चोट का नया कारोबार शुरू कर दिया
ऐसा कुछ हो जाए मैं सोचूं और वो पूरा हो जाए
इश्क का दस्तुर ही कुछ ऐसा है सब्र में होकर भी बेसब्र होने को कहता है ।
इश्क में हमें गमों की बरसात का तोहफा मिला है।
दिल को उनसे प्यार हुआ पलभर ठहरा उनके पास पर हासिल कुछ ना हुआ
ठहरा हुआ तो पानी भी खराब हो जाता है,फिर ये तो जिंदगी है जनाब ।
मैने इस क़दर उनकी परछाई बनने की कोशिश कि मेरी शख्सियत ही बुरा मान गई।
पहले की तरह आज नही है। पहले की तरह जज़्बात नही अब नहीं सोचता दिल उसके बारे में शायद अब वो इतनी खास नही है।
कब तक आखिर कब तक ये अहसास जिंदा रहेगा और मुझे मुझसे जुदा करता रहेगा
इश्क से मुलाकात दो बार हुई दिल ने इश्क के समंदर में तैरना चाहा मगर पहली बार दिल हालातों से मजबूर था और दूसरी बार दिल ने इजाजत नहीं दी
मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहता पर डर लगता है तुम्हारे पास आऊं तो बिखर ना जाऊं
अच्छा हुआ तुम्हारी मोहब्बत की लत जल्दी छूट गई वो क्या है हम बहुत जल्दी बिगड़ जाते हैं।
कल भी एक लम्हा था और आज भी एक लम्हा है फर्क सिर्फ इतना सा है कल तुम मेरे पास थी और आज सिर्फ तेरी यादें है
सैकड़ों आशिक तबाह हुए इश्क की राहों में फिर भी आशिकी आज भी नया परवाना ढूंढती है |
इश्क आंखों से ही दिल में उतरता है, दिल का यही बयान है।
वो इतनी खास है कि उसका जिक्र दिल बार बार करना चाहता है।
हकीकत भी क्या अजीब है। ख्वाब भी दिखलाती है और ख्वाब देखने से डरती भी है
पुराना नशा हो तुम तभी तो आज तुम शराब की एक घूंट जैसी मेरी जुबां पर उतरती हो
कहते है इश्क छुपाए नहीं छुपता यह नजर का बयान है।
तेरे साथ वो दो चार पल ही अपने थे अब तेरे बिना तो ये सारा जहां भी बेगाना लगता है।
इश्क ने ये कैसा हाल कर दिया मुझसे ही मुझको जुदा कर दिया
लाख कोशिश की तुझे चाहने की लेकिन दिल ने कभी दोस्ती से आगे बढ़ने की जुर्रत ही नहीं की
इश्क में ऐसा काम कर दिया हमने तेरे लिए खुद को ही बदनाम कर लिया
इश्क से हमको इतनी ही शिकायत है, इश्क हुआ हमको पर मुकम्मल ना हो सका
चेहरे पर चेहरा क्यों है इश्क में तुझसे बस इतनी सी शिकायत है
तेरा होकर मैंने खुद को पाया फिर क्यों मैं तुझमें खुद को ढूंढता रहता हूं
दिल उसे भुला ही नहीं था फिर तुम्हारी दस्तक हुई इस तरह अब जख्म दो है सीने पर
तुम मेरी जिंदगी में आए और मेरी जिंदगी, ज़िंदगी में तब्दील हो गई
मैंने तुझे चाहा कुछ इस तरह से जिस तरह से पहले न किसी को चाहा
महसूस करता हूं एहसास आज तक उन हवाओं का जिन्हें हम सालो पहले खो चुके
लोग दूसरों से वफा चाहते हैं और खुद उसके पैमाने पर खरे नहीं उतरते
जो हमारे लिए खास था कभी वो आज हमारे जिक्र में भी नही रहा
तेरा चेहरा मैं याद कर सो जाता हूं कमाल है फिर भी तेरा चेहरा याद आकर जगाता रहता है
काश ऐसा हो सकता मैं छड़ सकता तेनु तेरे बिन लेकिन मैं रब से मंगदा तेनु
दफ़न पड़ा था दिल किसी की याद में, तूने छूआ फिर धड़कने लगा
हमारा अफसाना पल भर का था शायद तुम्हारे साथ हमें इस बात की खबर नहीं थी हमने तो सदिया जी ली थी तुम्हारे साथ हमें तो इस बात पर गुरुर था
इतना गुरुर किस बात का है तुम्हें तुमसे प्यार करना हमारा हुनर हैं तुम्हारी कोई साजिश नहीं ।
मैं तुम्हे खोना नही चाहता, पर पता नही क्यों अब पाने का दिल नही है। मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं, पर अब साथ रहने की कोई वजह नहीं है। मैं तुम्हे चाहता तो हूं, पर अब इश्क का इज़हार नहीं है।
ये नूर भी कमाल का है उसके चेहरे का हर बार नजदीक बुला ही लेता है
जिंदगी एक अजीब सा खेल, खेल रही है गुजर गया था जो किस्सा अतीत का आज ना जाने क्यों उसकी जरूरत आन पड़ी है।
अहद-ए-वफ़ा की चाहत में ख़ुद के गुरुर से सौदा करना सीख गए, दूसरो को खुदा मान मानते हम काफ़िर हो गए।
एक उम्र की बात एक लम्हे में कैसे बदल जाती हैं एक छोटी सी मुलाकात उम्र भर के निशान दे जाती हैं
मौसम की नज़ाकत ए सनम, की हर बूंद तेरी याद दिला जाती है, आंखों से बहते अश्कों की धारा दिल तक तेरी रूह की पहचान दे जाती हैं
अफवाहे सुनकर मेरी शख्सियत का अंदाजा ना लगा इल्ज़ाम पहले से ही बहुत है मुझ पर।
तेरी आदत ऐसी लगी है अब खुद को देखता हूं तो तुझे पाता हूं
इश्क़ का एहसास ही ऐसा है सोने भी नहीं देता और ख़्वाब भी दिखाता हैं।
मैं प्यासा, तू दरिया क्यों नहीं मैं चाहता हूं तुझे, तू मुझे चाहता क्यों नहीं।
हमने उनसे वफा चाही, और वो हमे खुद से वफा करना सीखा गए।
खुद को खुद की कैद से रिहा कर, खुद पर तू ये एहसान कर, माना एक लम्हा है उसकी यादों का तुझमें ठहरा हुआ अब तू इस लम्हे को आजाद कर ।
आसान है हर राह कदम बढ़ाओ तो सही, मुश्किलों का तो बस नाम बड़ा है अपनी पहचान बनाओ तो सही।
खुद पर तू ये एहसान कर अपने जहन को उससे रिहा कर
खुदा भी क्या माफ करेगा उस परवाने को जो शमा पर मर मिटा
बातें ख़ामोशी में तब्दील हो गई नजदीकियां दुरियो से बिखर गई।
वो भी क्या ख्वाब थे जहा ..तुम मेरे साथ थे आंखें खुली और हम हकीक़त में आ गए।
है वजह मुस्कुराने की कुछ तो नही तो बेवजह ये गम ना होते।
दिल से मात खाकर, दिल से मजबूर हुए सब्र पाकर रास्तों की पहचान कर ली।
उसे देख लड़खड़ाया दिल संभलने लगा पर हमने रोक लिया, चलेंगे फिर कभी।
किसी के नमाज़ी बनना चाहते हैं इस क़दर हम, हम बनना चाहते हैं
आज कल शब्दों में वो बात कहा हम अपने अल्फाजों से काफ़िर होना चाहते हैं
आंखों का क्या कसूर मंज़र ही इतना हसीं हैं
मैं ढूंढता रहा सीरत ऐसी जो मुक्कमल कर दे मेरे अल्फ़ाज़
इतनी कोशिश की तुम्हें चाहने की कि हम ही बदनाम हो बैठे
उसका दर्द में ले लूं मेरा सुकून उसका मुकद्दर बन जाए
ज़माने को हमसे हैं उम्मीदे शायद हममें कुछ बात होगी
गर क़दर जज़्बातों की होती कोई ख़्वाब टूटता ही क्यों
तू हाथों की लकीरों सा क्यों नहीं तू दिल की धड़कन सा क्यों नहीं तू मेरे लफ़्ज़ों की सच्चाई क्यों नहीं तू इस जख्म का मरहम क्यों नहीं तू मेरे प्यार में क्यों नहीं तू मुझमें क्यों नहीं तू प्यार है त