वो भी क्या मंजर थे, ख्वाहिश थी उन मुलाकातों की, उस रिश्ते को नाम देने की, हमें क्या पता था जिसे नाम देने की आरजू है, वहीं एक दिन यूं ख़ामोशी में बदल जाएगा ।
16 अगस्त 2022
वो भी क्या मंजर थे, ख्वाहिश थी उन मुलाकातों की, उस रिश्ते को नाम देने की, हमें क्या पता था जिसे नाम देने की आरजू है, वहीं एक दिन यूं ख़ामोशी में बदल जाएगा ।