Author and a poet
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सुनो प्रिय यह जो तुम्हारा मेरा प्रेम है यह कागजों तक सीमित नहीं पुष्पों के सुगंध से भी परिभाषित नहीं यह जो तुम्हारा समर्पण है प्रशंसा इसके तुल्य नहीं इसमें ना तो हार इसमें जीत नहीं मै
क्या यह परिवर्तन सही है? मनुष्य और प्रकृति का संबंध इतना सीधा है अगर मनुष्य प्रकृति को प्रभावित करती है तो उसी रूप से प्रकृति भी मनुष्य को प्रभावित करती है । इन दोनों के परस्पर संबंध से ही जो भी बद