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एक बूँद

4 मार्च 2016

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ज्यों निकल कर बादलों की गोद से

थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी

सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,

आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी?


देव!! मेरे भाग्य में क्या है बदा,

मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में?

या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,

चू पडूँगी या कमल के फूल में?


बह गयी उस काल एक ऐसी हवा

वह समुन्दर ओर आई अनमनी

एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला

वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।


लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते

जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर

किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें

बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।

(अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध')

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एक बूँद

4 मार्च 2016
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ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेथी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ीसोचने फिर-फिर यही जी में लगी,आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी?देव!! मेरे भाग्य में क्या है बदा,मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में?या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,चू पडूँगी या कमल के फूल में?बह गयी उस काल एक ऐसी हवावह समुन्दर ओर आई अनमनीएक सुन्दर सीप क

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सरिता

4 मार्च 2016
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किसे खोजने निकल पड़ी हो।जाती हो तुम कहाँ चली।ढली रंगतों में हो किसकी।तुम्हें छल गया कौन छली।।1।।क्यों दिन–रात अधीर बनी–सी।पड़ी धरा पर रहती हो।दु:सह आतप शीत–वात सबदिनों किस लिये सहती हो।।2।।कभी फैलने लगती हो क्यों।कृश तन कभी दिखाती हो।अंग–भंग कर–कर क्यों आपेसे बाहर हो जाती हो।।3।।कौन भीतरी पीड़ाएँ।लह

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एक तिनका

4 मार्च 2016
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मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ ।एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा ।आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ।एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।1।मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा ।लाल होकर आँख भी दुखने लगी ।मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ।ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी ।2।जब किसी ढब से निकल तिनका गया ।तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए ।ऐंठता तू क

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फूल

4 मार्च 2016
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रंग कब बिगड़ सका उनकारंग लाते दिखलाते हैं ।मस्त हैं सदा बने रहते ।उन्हें मुसुकाते पाते हैं ।।१।।भले ही जियें एक ही दिन ।पर कहा वे घबराते हैं ।फूल हँसते ही रहते हैं ।खिला सब उनको पाते हैं ।।२।।अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

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पुष्पांजलि

4 मार्च 2016
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राम चरित सरसिज मधुप पावन चरित नितान्त।जय तुलसी कवि कुल तिलक कविता कामिनि कान्त।1।सुरसरि धारा सी सरस पूत परम रमणीय।है तुलसी की कल्पना कल्पलता कमनीय।2।अमित मनोहरता मथी अनुपमता आवास।है तुलसी रचना रुचिर बहु शुचि सुरुचि बिकास।3।सकल अलौकिकता सदन सुन्दर भाव उपेत।है तुलसी की कान्त कृति निरुपम कला निकेत।4।जब

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माता-पिता

4 मार्च 2016
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उसके ऐसा है नहीं अपनापन में आन।पिता आपही अवनि में हैं अपना उपमान।1।मिले न खोजे भी कहीं खोजा सकल जहान।माता सी ममतामयी पाता पिता समान।2।जो न पालता पिता क्यों पलना सकता पाल।माता के लालन बिना लाल न बनते लाल।3।कौन बरसता खेह पर निशि दिन मेंह-सनेह।बिना पिता पालन किये पलती किस की देह।4।छाती से कढ़ता न क्यों

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चंदा मामा

4 मार्च 2016
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चंदा मामा दौड़े आओ,दूध कटोरा भर कर लाओ।उसे प्यार से मुझे पिलाओ,मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ।मैं तैरा मृग-छौना लूँगा,उसके साथ हँसूँ खेलूँगा।उसकी उछल-कूद देखूँगा,उसको चाटूँगा-चूमूँगा।अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

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मीठी बोली

4 मार्च 2016
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बस में जिससे हो जाते हैं प्राणी सारे।जन जिससे बन जाते हैं आँखों के तारे।पत्थर को पिघलाकर मोम बनानेवालीमुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे।।रगड़ो, झगड़ो का कडुवापन खोनेवाली।जी में लगी हुई काई को धानेवाली।सदा जोड़ देनेवाली जो टूटा नातामीठी बोली प्यार बीज है बोनेवाली।।काँटों में भी सुंदर फूल खिलानेवाली।र

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फूल और काँटा

4 मार्च 2016
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हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। मेह उन पर है बरसता एक सा, एक सी उन पर हवाएँ हैं बही पर सदा ही यह दिखाता है हमें, ढंग उनके एक से होते नहीं। छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ, फाड़ देता है किसी का वर वसन प्यार-डूबी तितलियों का

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जन्मभूमि

4 मार्च 2016
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सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान।जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।।प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल।नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल।।पग सेवा है जननि की जनजीवन का सार।मिले राजपद भी रहे जन्मभूमि रज प्यार।।आजीवन उसको गिनें सकल अवनि सिंह मौर।जन्मभूमि जल जात के बने रहे जन भौंर।।कौन नहीं

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