आग है, पानी है, मिट्टी है
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है, मुझ में और फिर मानना पड़ता है के ख़ुदा है मुझ में I अब तो ले-दे के वही शख़्स बचा है मुझ में, मुझ को मुझ से जुदा कर के जो छुपा है मुझ में I मेरा ये हाल उभरती हुई तमन्ना जैसे, वो बड़ी देर से कुछ ढूंढ रहा है मुझ में Iजितने मौसम हैं सब जैसे कहीं मिल जायें, इन दिनों कै