ऋतु फागुन नियरानी हो
ऋतु फागुन नियरानी हो,कोई पिया से मिलावे।सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, सोई पिया की मनमानी,खेलत फाग अंग नहिं मोड़े,सतगुरु से लिपटानी।इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,इक इक कुल अरुझानी।इक इक नाम बिना बहकानी,हो रही ऐंचातानी।।पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,रूपहि माहिं समानी।जौ रँगे रँगे सकल छवि छाके,तन-मन सबहि