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हिन्दी-काव्य संकलन

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हमारे कृषक

4 मार्च 2016
1
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जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं पर शिशु का क्य

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

4 मार्च 2016
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है !उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ ?मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;और लाखों बार तुझ-से पागलों को भीचाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते ।आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुल

समर शेष है

4 मार्च 2016
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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !ओ रेशम

सूरज का ब्याह

4 मार्च 2016
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उड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होने वाली है,वर के विमल मौर में मोती उषा पिराने वाली है।मोर करेंगे नाच, गीत कोयल सुहाग के गाएगी,लता विटप मंडप-वितान से वंदन वार सजाएगी!जीव-जन्तु भर गए खुशी से, वन की पाँत-पाँत डोली,इतने में जल के भीतर से एक वृद्ध मछली बोली-"सावधान जलचरो, खुशी में सबके साथ नहीं फूलो,ब्याह

नमन करूँ मैं

4 मार्च 2016
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तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं।मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?किसको नमन करूँ मैं भारत, किसको नमन करूँ मैं?भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है।जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर

जन्मभूमि

4 मार्च 2016
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सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान।जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।।प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल।नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल।।पग सेवा है जननि की जनजीवन का सार।मिले राजपद भी रहे जन्मभूमि रज प्यार।।आजीवन उसको गिनें सकल अवनि सिंह मौर।जन्मभूमि जल जात के बने रहे जन भौंर।।कौन नहीं

फूल और काँटा

4 मार्च 2016
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हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। मेह उन पर है बरसता एक सा, एक सी उन पर हवाएँ हैं बही पर सदा ही यह दिखाता है हमें, ढंग उनके एक से होते नहीं। छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ, फाड़ देता है किसी का वर वसन प्यार-डूबी तितलियों का

मीठी बोली

4 मार्च 2016
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बस में जिससे हो जाते हैं प्राणी सारे।जन जिससे बन जाते हैं आँखों के तारे।पत्थर को पिघलाकर मोम बनानेवालीमुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे।।रगड़ो, झगड़ो का कडुवापन खोनेवाली।जी में लगी हुई काई को धानेवाली।सदा जोड़ देनेवाली जो टूटा नातामीठी बोली प्यार बीज है बोनेवाली।।काँटों में भी सुंदर फूल खिलानेवाली।र

चंदा मामा

4 मार्च 2016
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चंदा मामा दौड़े आओ,दूध कटोरा भर कर लाओ।उसे प्यार से मुझे पिलाओ,मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ।मैं तैरा मृग-छौना लूँगा,उसके साथ हँसूँ खेलूँगा।उसकी उछल-कूद देखूँगा,उसको चाटूँगा-चूमूँगा।अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

माता-पिता

4 मार्च 2016
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उसके ऐसा है नहीं अपनापन में आन।पिता आपही अवनि में हैं अपना उपमान।1।मिले न खोजे भी कहीं खोजा सकल जहान।माता सी ममतामयी पाता पिता समान।2।जो न पालता पिता क्यों पलना सकता पाल।माता के लालन बिना लाल न बनते लाल।3।कौन बरसता खेह पर निशि दिन मेंह-सनेह।बिना पिता पालन किये पलती किस की देह।4।छाती से कढ़ता न क्यों

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