मेरे घर के ठीक सामने, शहतूत का एक पेड़ था जिस पर कुछ दिनों पहले एक चिड़िया ने अपना आशियाना बनाया था। दिन- रात मेहनत करके उसने अपना घोंसला बनाया। फिर अंडे दिए और कुछ ही दिनों बाद उनमे से छोटे छोटे बच्चे इस नई दुनिया मे आ गए। जिस प्रकार एक नन्हे बच्चे की किलकारी से किसी सूने आंगन में फिर से बहारों की फिजां वापस लौट आती है, उसी तरह उस घोंसले में मानो फिर से खुशियां लौट आयीं थी।
चिड़िया रात को कभी भी अपने घोंसले में नही आती थी। दोनो बच्चे पूरी रात अपने घोंसले में ही चहचहाते रहते। चिड़िया दिन में दो - तीन बार आकर उन्हें देख जाती, कुछ खिला - पिला जाती।
दिन इसी तरह बीतते गये। अब बच्चे भी कुछ बड़े हो गए। कमी सिर्फ इतनी थी कि वो अभी अपने परों पर उड़ नही सकते थे।
इसी बीच दीपावली की छुट्टियों में मुझे अपने गांव आना हुआ। त्योहार वाले दिन तो मैं खुद इतना व्यस्त रहा कि मुझे इसकी कोई खबर भी न हुई। अगले दिन मैंने भी देखा तो सोचा, चलो कोई बात नही, कुछ दिनों में ये नन्हे से परिंदे अपने परों पर उड़ कर इस नई दुनिया की सैर पर निकल जाएंगे। परन्तु शायद यह कोई नही जानता था कि अगले पल क्या होने वाला है।
रात तकरीबन यही कोई नौ बजे के आसपास का समय रहा होगा।
मैं अपने फोन में व्यस्त था। खा - पीकर सब अपने अपने बिस्तरों पर जा चुके थे। केवल मेरी मां अभी भी कुछ काम कर रही थीं। अचानक उनकी नजर शहतूत के पेड़ पर गयी तो उसकी शाखाएं हिल रहीं थीं, ऐसा आभास उन्हें हुआ। तब उन्होंने मुझसे टॉर्च के लिए फोन मांगा। शायद उन्हें शक हुआ कि कोई बिल्ली या अन्य जानवर पेड़ पर चढ़ने की कोशिश में है, वरना रात के समय पेड़ की शाखाएं हिलने का मतलब क्या होगा। जब उन्होंने वहां जाकर देखा तो उनका शक यकीन में बदल गया। वास्तव में वही हुआ जिसका
उन्हें अंदेशा था। एक दुष्ट बिल्ली जो कि काफी दिनों से उस घोसलें पर अपनी नजरें गड़ाए थी, आज उसने अवसर का पूरा लाभ उठाया। जब तक मां वहां पहुँची तब तक वह उन दो बच्चों में से एक को अपने मुंह मे दबाकर भाग गई और दूसरा घोसलें से नीचे जमीन पर किसी मांस के लोथड़े सदृश पेड़ के नीचे पड़ा हुआ था। जन्म देने वाली का कहीं अता पता नही था। उसे एक पुराने कपड़े की सहायता से उठाकर घर लाया गया। मौसम भी ठंडक का था, सो कुछ ऊनी फ़टे पुराने कपड़े जमीन पर बिछाकर आहिस्ते से उसे रख दिया। एक तार की बनी बड़ी जाली से उसे ढक दिया गया।
सुबह होते ही उसे वापस उसी घोसलें में रख दिया गया ताकि जब चिड़िया वापस घोसलें में आये तो परेशान न हो। चिड़िया आयी, कुछ दाना पानी अपनी चोंच में दबाकर उसे खिलाया। उसके बाद काफी दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। वह दिन में एक बार घोसलें पर जरूर आती। रात को उस घटना के बाद उस नन्हे परिंदे की सुरक्षा की जिम्मेदारी को माँ जी ने सम्हाली। दिन भर घोसलें में और रात को घर में, उसका बसेरा बन गया।
और एक दिन मेरी छोटी बहन मधु किसी कार्यवश बाहर गयी तो देखती है कि पिंजरा पेड़ के नीचे पड़ा हुआ था और पंछी दुनिया की सैर पर निकल चुका था......।