सहज वचन बोली कर जोरी।
चञ्चल चितवन चन्द्र चकोरी।
मन अनंग रति प्रेम पियासा।
भाव विभाव सहज दुर्वासा।
चन्द्र योग द्वय लखि विज्ञानी।
पूर्वोत्तर साहित्य भवानी।।
अकथनीय गुण बरनि न जाई ।
शब्द विशेष समय प्रभुताई।
अवसर परम पुनीत सुहावन l
शब्द विशेष शेष मनभावन ll
पावन दिवस सुहावन कैसे ?
प्रेम सुमित्र चित्र लखि जैसे ।l
शंखनाद कलियुग कलिकाला l
वातावरण पाक वन माला ll
जेहि -जेहि श्रवण कीन्ह तेहि काला l
परम गती पाए महिपाला l
राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी