सनातनी विधाता छन्द
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१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
नज़ारे देखकर सावन बरसने मेघ आते हैं l
शराफ़त देखकर उनकी तड़पते लोग जाते हैंll
इमारत यह खड़ी कैसे पसीनें खून हैं उनके ,
कयामत देखती दुनियाँ शराफ़त भूल जाते हैंll
नज़ाकत वक्त का देखो कहर ढाते रहे नित दिन,
तवायफ़ बन लुटी शबनम ग़रीबी को भुनाते हैं ll
बनाए रात भी कैसे विधाता भाग्य की रेखा ,
ज़ियारत भूल थी उनकी ठिकाने याद आते हैं ll
सजाए ख्वाब मे पारियाँ मने दिल आरजू कैसी,
दिखाते आँख मे आँसू नहीं गम भूल पाते हैं ll
राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी