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chitretana

कुमार मुकुल

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हम हैं , इसी से कविता है / यह हमारे होने का प्रमाण है / कविता मैं से / तुम या वह होने की छटपटाहट है /... यह सिखलाती है / कि नियॉन लाइट्स की रौशनी / हमारे अंतर का अंधकार / दूर नहीं कर सकती /कि ध्वनि या प्रकाश के वेग से /दौड़ें हम /धरती लंबी नहीं होने को /... यह बंदूक की नली से /भेड़िए और मेमने का फर्क करना / सिखलाती है /कविता /तय करती है कि कब / चूल्हे में जलती लकड़ी को /मशाल की शक्ल में थाम लिया जाए / या अन्य ढेर सारी गांठें / जिन्हें कोई नहीं खोलता / कविता खोलती है /जहां कहीं गति है / वहीं जीवन है / और कविता भी।.....सभ्यता और जीवन -1987.... करीब चौबीस-पच्चीस साल पहले कविता को इसी तरह परिभाषित किया था मैंने, और आज भी कविता के मायने बदले नहीं हैं मेरे लिए। किशोर से युवा होने के क्रम में हर व्यक्ति के जीवन में वह समय आता है जब <span style="f 

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