दक्षिण सिनेमा की सफ़लता
मुनि अपने प्रिय और इकलौते शिष्य विनोदाग्नि के साथ नर्मदा नदी के सांडिया घाट में बड़े आनंद से बैठे थे।
सामने बाटी की अगिंठी तैयार हो चुकी थी, मुनि समझा रहे थे की बैंगन में पहले ही लहसुन घुसा दो फिर कंडो की धीमी आंच पर रखने से भर्ता एक अलग ही स्वाद का बनता है।
गुरुजी पूछना ये था कि ये दक्षिण भारतीय फिल्म चल पड़ी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का भंडश्राद्ध क्यों हो गया?
मुनि उवाच _ कर्मो का फल है सब कर्मो का, पहले साउथ इंडियन फिल्मों की रीमेक बना कर खूब लाभ कमा लिया जैसे रेडी, राउडी राठौर इत्यादि _ इत्यादि, इस कर्म से हुआ ये की ये सब रीमेक जमकर चली पर जब लोगो ने ओरिजनल फिल्म देखी तो पता चला की ये तो जैसी की तैसी उतार दी कपड़े तक नही बदले, मतलब धोखा।
बस दर्शकों का हिंदी फिल्म सिनेमा से ही विश्वास उठ गया की इन लोगो के पास मौलिक कुछ नही है।
पहले ये दक्षिण भारतीय फिल्म हिंदी में डब हुआ करती थी और उनकी हिंदी के प्रति नफरत जगजाहिर थी पर अब उन्होंने भी हिंदी की ताकत को पहचाना की बड़ा बाजार तो ये लोग ही है।
पर गुरुदेव वे दक्षिण वाले अति नही बहुत अति कर रहे है, मतलब हर कुछ दे देते हैं मत्थे पर_ विनोदाग्नि भारी रोष में दिख रहा था।
शांत वत्स शांत गुरुदेव ने उसे शांत करवाया
गुरुजी वे चलती ट्रेन को एक हाथ से पकड़कर सांप जैसे झझोड़कर दूर फेंक देते है और दर्शक ताली बजा रहे हैं, जे अति नही तो क्या है?
गुरु जी शांत चित्त से उस अबोध बालक की बाते सुनते हुए बाटियां पलट रहे थे। अगर इन बाटियों के साथ भर्ता के अलावा दाल भी होती तो भोजन का और आनंद लें सकते थे।
विनोदग्नि ने कहा अब प्रातः संडिया में भिक्षामदेही करने निकला था गांव के पटेलो ने सिर्फ इतना ही दिया। वे दाल दे देते तो हम तो वो भी बना लेते..... पर आप बात को पलटिए नही, आप को कोई चिंता नहीं? वे साउथ इंडियन केला से मुंडी काट दे, एक मुक्का में जे सी बी तोड़ दे रहे है और दर्शक ताली बजा कर लौट आता है। कुछ करना पड़ेगा गुरुजी।
प्रिय शिष्य क्या दक्षिण भारतीय सिनेमाकरो ने बालीवुड को ऐसा कुछ करने से मना किया क्या?
शिष्य ने सिर हिलाया नही प्रभु, वे तो स्वयं ही ऐसा कोई जोखिम लेने से परहेज करते है, वे आज भी एक झाड़ के आगे पीछे घूम कर गीत गाने और नाचने को ही व्यस्त हैं। और हिंदू धर्म की भावनाएं आहत करने को ही हिट होने का फार्मूला बनाए बैठे है।
और साउथ इंडियन फिल्मों में एक एक गाने पर सौ दो सौ कलाकार बिलकुल एक जैसे नाच रहे होते है हर बार बिलकुल नए अंदाज में।
कुछ बाते इन फ़िल्मों में अपरिवर्तनीय रहती है जैसे अगर दस पन्द्रह काली कारे है तो ये बुरा आदमी और सफेद कारो के लाइन चली आ रही हो तो इसका मतलब हुआ, हैं ये भी बाहुबली पर अच्छा काम कर रहे है।
दक्षिण की फिल्में हिट होना का एक कारण ये भी है कि इनमे किसी भाई जान को अच्छा और किसी पंडित या बनिया को बुरा ही बनाने की कोशिश नही होती ।
अब तक भर्ता बाटी तैयार हो चुकी थी सो दोनो गुरु चेला पिल पड़े थे।
अच्छा साउथ वाले नए प्रयोग करते चले और बालीवुड आज भी हिट होने के लिए विवादो का सहारा ले रहा है
जैसे काली को सिगरेट पीते दिखाना, या महादेव पार्वती जी को गलत तरीके से दिखाना आदि आदि।
नतीजा वही होगा दर्शक वहिष्कार करेगा ही। अभी तो यूपी वालों की भी अपनी फ़िल्म इंडस्ट्रीज आ रही है रही सही कसर वो बुल्डोजर बाबा पूरी कर देंगे।
भोजन पूरा हुआ इसलिए उत्तिष्ट भारत कहकर दोनो गुरु चेला उठ गए नर्मदा के अगले पड़ाव की ओर बढ़ गए।
क्रमशः
विनोद पाराशर