झाँकी कहाँ गई ?
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(गांधी जी पर एक कहानी )
नवदुर्गा की अनुपम छटा बस देखते ही बनती थी रोशनी से सारा कस्बा नहा उठता | और सोने पे सुहागा आज तो दशहरा था |
सड़क के दोनो ओर दिये जल रहे थे |
दुर्गा जी के मण्डप के बाहर अथाह भीड़ खड़ी थी जो साँडिया रोड पर सजी राष्ट्रपुरुषौ से सजी झाँकी देखने आई थी |
सिल्वर पेंट से पुते हुये बंटी गाँधीजी बने एक धोती पहने हुए हाथ मे लाठी लिए बीचो-बीच खड़े थे, उनके पास ही नहरूजी हाथ जोड़कर दिख रहे थे तात्या टोपे, भगतसिंह,सुभाष चंद्र बोस एक लाइन थे तो दूसरी तरफ अम्बेडकर, लाला लाजपत राय, सरदार वल्लभभाई पटेल शान के साथ खड़े थे, सभी के सभी सिल्वर पेंट से रंगे पुतले बने बड़े ही खूबसूरत लग रहे थे |
माइक पर आज देशभक्ति से ओतप्रोत गीत बज रहे थे- यह देश है वीर जवानो का अलबेलो का…..…
तो कहीं बज रहा था देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान .......
अब मच्छर तो मच्छर होते हैं मंच पर खड़े सभी लोगो को कटना शुरू कर दिया
अब गांधीजी सिर्फ एक धोती पहने हुए थे सो मच्छरों ने सबसे पहले उन्हें काटना शुरू किया किया, और थोडी ही देर हमारे सारे महापुरुष अब ज्यादा देर पुतला बने नहीं रह पा रहे थे, और चट्ट चट्ट करके अपनी पीठ पर पाँव पर हाँथ चला रहे थे |
बन्टी सीधे ठाड़ो रह इत्तो हिले मति.... नीचे से एक कार्यकर्ता ने झाँकी बने सभी को सलाह दी
अकेले बंटी को नही मच्छर हमे भी काट रहे है - तात्याटोपे चिल्लाये , और ये मच्छर नहीं बगदर है |
ओके ओके हिलो मत हम कछुआ छाप अगरबत्ती ले के आते है हमने नीचे से चिल्ला कर उन सब को ढाँडस बंधाया | और हम तुरन्त मच्छर छाप अगरबत्ती लेने दौड़ पड़े |
पर जब लौट कर आये तो देखा कि मैदान ही साफ पूरी झाँकी ही गायब |
कहाँ गई अपनी झाँकी?
कहाँ गये सारे क्रांति कारी महापुरुष?
किसी ने कहा लग आई होगी
ठीक है लग आई होगी, पर सबको एक साथ?
पाँडाल के बाहर सारे संसार से आई भीड़ खड़ी बहुत दूर दूर से आयी जिन्हे देखने वे सब क्रांति वीर ही गायब?
इतने मे एक आदमी दौड़ने हुआ आया तुमरे गांधीजी तो चौगड्डा पे दिखाने थे
हम सब दौडे उस मंगलवारा चौगड्डे की ओर
सच में हमारे बंटी भाई के शरीर मे गांधीजी आ चुके थे वे सब सिल्वर रंग से पुते हुये क्रांतिकारी हाथ ठेले पर खडे जनता को सम्बोधित कर रहे थे
और भीड़ थी कि बढती चली आ रही थी, चारो ओर लोग आऐ थे पचलावडा, भौखेड़ी, गलचे और तो और मटकुली तामिया तक मतलब ये मान लो पुरे संसार से मानस इकट्ठा था आज |
और एसे मे हमारी झाँकी भाग गई थी जनता के सामने हमारी फजियत तय थी |
हम पहुंचे उन तक चलो भैया हम आपके लिए कछुआ छाप मच्छर अगरबत्ती ले आये है जे रही देख लो , अब चलो और अपनी दुर्गा जी के मंडप मे खड़े हो जाओ , पर कहाँ हमारी बात सुन ही कौन रहा था उन सबका तो माल्यार्पण से स्वागत हो रहा था सब के गले मे दो तीन गैंदा के फूलो की माला भी पड़ चुकी थी |
गांधी जी ने हमे घूर के देखा- यह तुच्छ प्राणी कौन?
अब गांधी हाथ मे लाठी लिये तेजी के साथ शोभापुर रोड की ओर बढ गये और साथ मे पूरी झाँकी ने उस बढ चली, साथ है सैकडो लोगो की भीढ भी पीछे पीछे चल पडी ,और लोग नारे लगा रहे थे- जब तक सूरज चाँद रहेगा गांधी तेरा नाम रहेगा,,,
वीर तुम बढे चलो धीर तुम बढे चलो........
हमने तात्या टोपे जी का हाथ पकडा और कहा- आप तो सबसे वरिष्ठ हैं आप ही इन्हे समझाऐ कि अपने मंडप मे चलें ,
पर तात्या टोपे जी ने भी हमे झिडक दिया - अच्छा अब हमारी वरिष्ठता नजर आ रही हैं ? पर तब तुम्हे हमारी वरिष्ठता नजर नहीं आई जब झांकी में हमें सबसे पीछे वाली लाइन में खड़ा करा था,
कह कर तात्याटोपे जी अपनी झाँकी के साथ आगे बढ़ गए
और हम अपनी झाँकी के पीछे दौड़ रहे थे
जैसे ही शोभापुर रोड की भव्य माता जी के विशाल पाँडाल के पास पहुंचे, वहाँ खडी भीड़ ने उन्हें बीच से रास्ता बना कर दे दिया |
क्रान्ति वीरो के लिये नारे और जोर से लगने लगे, वहीं मिलन होटल से मिठाई मंगवा कर उन्हें खिलाई गई, हम ने भी हाथ बढाया कि मिठाई भी दो, पर न जाने किस ने हाथ पर चनकट मार कर हमे दूर कर दिया
मै सबको समझाने की कोशिश कर रहा था कि मेरी तरफ देख लो मै ही हूँ जिसने इस अनुपम झाँकी को बनाया हैं |
पर नक्कारखाने मे मेरी तूती कोई नही सुन रहा था |
और सब महापुरुष सिमेंट रोड की दुर्गा जी के दर्शन के लिए चल पडे , पता नहीं कहाँ से अब तिरंगा झंडा इनके हाथ मे आ गया था और सैकड़ों की संख्या मे लोग इनके पीछे नारे लगाते हुए चल पडे
मै कछुआ छाप अगरबत्ती लिए बहुत पीछे रह गया था |
सीमेंट रोड की अपनी ही एक चकाचौंध होती सभी कार्यकर्ता माथे पर सुदंर टीका लगाये चमकदार कपडे पहने अलग ही दिख जाते थे कि ये नगर के बड़े सेठ लोगो के बच्चे है, आज यहाँ भक्त प्रहलाद पंखे के ऊपर बैठे थे, और नीचे से लाल रंग की पन्नियाँ ऊपर की और उड़कर दहकती अग्नि का अहसास करा रही थी और पास ही भीमकाय हिरन्यकश्यप तलवार लिये हंस रहा था | रोड के दोनो केले के झाडो पर बड़े ही सुन्दरता के साथ कटिंग करके अन्दर रंग बिरंगी पन्नियाँ लगा कर नक्काशी करी गयी थी |
गल्ला मण्डी की धूल अब हमारे ऊपर उड़ से रही थी, जो हमारे अम्बेडकर साहब के थ्री पीस सूट को भी गंदा कर रही थी
मैने बाबा साहेब अम्बेडकर से कहा आप ही इन्हें समझाऐ कि अपनी साँडिया रोड के पाँडाल पर बहुत भीड खडी है इस बाबा साहब ने बेबसी से कहा मेरी कभी किसी ने सुनी ही कहाँ जो ये आज सुनेगे, संसार भर से अच्छी बाते लेकर इतना अच्छा संविधान बनाया पर सभी ने उसका इस्तमाल अपने हिसाब से कर लिया। मेने कहा था आरक्षण सिर्फ दस बरसो के लिए है पर देखो न जाने कितने दशकों से जारी है और कैसा बुरा राजनैतिक हथियार बना के रख दिया इसे।
गल्ला मंडी में चल रही रामसत्ता की आवाज में उनकी आवाज दब गई,
बीचोबीच एक टेबल पर ढोलक बजाने वाला बैठा था और चारो ओर हाथ में झांजर लिए बाकि टीम के लोग चारो और घूम घूम कर नाचते हुए फ़िल्मी धुन पर भगवान् के भजन गा रहे थे।
बहुत दूर दूर से रामसत्ता की मंडलिया आयी हुई थी, तो कोई मंडल ठीकरी से तो कोई रामपुर से आया था इटारसी और जबलपुर तक से मंडल आये हुए थे इस रामसत्ता में भाग लेने , तो अपनी पौसार पिपरिया की भी से काम नहीं थी। रामसत्ता में इस वक्त ग्राम गाड़ाघाट मंडल अपनी प्रस्तुति दे रहा था वो शंकर जी का भजन गए रहा था फिल्म की धुन थी- कौन दिशा में लेके चलो रे बटोहिया
मै मंत्रमुग्ध सुनने लगा,
पर पलट के देखा तो पुरे महापुरुष गायब , भागकर आगे देखा तो सबके सब रेलवे स्टेशन के डगडगा पर खड़े थे।
चल बँटी बहुत हो गए तेरे नाटक अब वापिस सांडिया रोड चल आज बहुत से लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे है,
पर बन्दे ने एक बार फिर बुरी तरह इग्नोर कर दिया, और साथ चल रही भीड़ एक बार फिर जोर जोर से नारे लगाने लगी बँटी तुम संघर्ष करो तुम्हारे साथ है।
सवारी अब तक पी डब्लू डी के विशाल के विशाल मैदान में पहुंच चुकी थी जहाँ लाइन से बहुत से खिलोने वाले बैठे हुए थे जिसमे कागज का बना स्प्रिंग जैसा साँप बच्चो को बहुत पसंद आता था, दुर्गाजी जी के ठीक सामने सफ़ेद रुई से बना अप्पू हाथी खड़ा था, जिसकी विशेषता थी कि उसकी सूंड में सिक्का डालो तो वो उछाल कर अपनी पीठ पर रखी थाली में गिरता , बस उसकी इसी सटीक निशाने को देखने कई बच्चे घंटो वंहा खड़े रहते।
हमने भी कई बार कोशिश की उस अप्पू की सूंड में पत्थर रखकर कि देखते है ये थाली में फेकता है या नहीं , पर हर बार हम असफल रहते अप्पू समझदार था पत्थर थाली में नहीं फेकता था।
लोहपुरुष बल्लभ भाई पटेल पचमढ़ी रोड पर पी एच ई तक जाना चाहते थे जँहा का सबसे बड़ा कोतुहल ये था की इतनी बड़ी नल की टोटी से पानी गिरता तो देखता है पर इस टोटी में पानी आता कँहा से है, ये कभी पता न चला था हमने चारो तरफ घूम कर वो पाइप लाइन खोजने की कोशिश भी कर चुके थे कि पानी इसमें आता कहाँ से है पर असफल।
शेष झांकी इतवारा बाजार की ओर चल पड़ी
सरदार बुदबुदाए इन्होने हमेशा अपने मन की करी, नेहरू ने ही बापू को कहा होगा मेरी बात न मानने के लिए, बापू हमेशा नेहरू की सुनते है अगर वक्त पर मै सख्त रुख न दिखता तो शायद आज हमारा भारत और भी न जाने कितना छोटा होता और सोमनाथ मंदिर वाले मामले में तो न जाने कितना मेरा विरोध किया था।
मैंने कहा देख लेना एक दिन आपकी मूरत संसार की सबसे बड़ी मूरत होगी आप ने पद नहीं दिलो में जगह बनाई है।
हा हा हा....... हे राम तुम मुझे नहीं मार सकते ..... लल्लन भैया की बुलंद आवाज में रावण इतवारा बाजार के मैदान अट्टहास कर रहा था और तीर कमान लिए सामने से बढे आ रहे श्री राम को युद्ध के लिए ललकार रहा था
रावण की और देखकर सोच रहा था ऐसे वक्त रावण का अट्टहास करके हंसना दुश्मन को और गुस्सा दिलाने वाला काम हो सकता है ये चाहे तो माफ़ी मांगकर दहन से बच सकता था पर ये तो हँसे ही चला जा रहा है
पर एक शिक्षा मिली कि परिस्थियाँ कैसे भी हो झुकना नहीं भले ही अंत समय क्यों न हो।
यही तो पौरुषता है कि भले है मर जाओ पर झुको मत, दूसरो की नजर में तो हम हमेशा गलत ही होते है बस हमें हमारे दृष्टिकोण से सही होना चाहिए।
अब शहर के दूसरे छोर पर आ चुकी थी हमारे महापुरषो की झांकी अब वापिस लौटने का कहना भी बैमानी था सो हम भी नारे लगाने लगे - जब तक सूरज चाँद रहेगा गाँधी तेरा नाम रहेगा
रेल्वे फाटक हमेशा की तरह एक बार फिर बंद था हमारे पीछे चली आ रही सैकड़ों की भीड़ भी गाँधी जी के साथ फाटक खुलने के इंतजार में खड़ी थी, पर कुछ उत्साही फाटक के नीचे से निकल रहे थे, और कुछ तो अपनी स्कूटर को भी लगभग पूरी झुका कर निकाल रहे थे, इस काम में कुछ भले मानस उनकी सहायता भी कर रहे थे वे फाटक को अपने कंधे पर उठा कर नीचे से निकलने में उनकी सहायता कर रहे थे ये देखते हुए की रेल बिलकुल नजदीक आ चुकी है
ये भी एक सच है जब कोई गलत काम कर रहा होता है तब कई और अपने आप इस काम में सहयता करने आ ही जाते है , पर सही काम हमेशा अकेले ही करना पड़ता है।
फाटक हमेशा मुझे एक शिक्षा देने की कोशिश करता रहा - जो झुका और जिसने रिस्क ली वो आगे बढ़ा। पर में मुर्ख कभी इस सन्देश को ठीक से समझ न पाया।
फाटक वाली काली के दर्शन करते हुए भीड़ आगे बढ़ चली
मेने नेहरू जी बने राजेश चौरसिया को पकड़ा - आप की कोई नाराजगी ?
वे बोले नहीं बस एक बात याद रखनी चाहिए जब बहुत से बड़े लोग आपस में उलझे हो तब मौन धारण कर लेना चाहिए और किसी के पक्ष में खड़े नहीं दिखना चाहिए, एक बार आप उन्हें कमजोर दिखे फिर देखो न जाने कितने लोग आप को मजबूती प्रदान करने सामने आ जायेगे बस उन्हें सिर्फ एक श्रेय चाहिए होता है की इसे आगे बढ़ने में मेरा हाथ है।
खेड़ापति मंदिर में जाकर सब लोग परिक्रमा करने लगे, मैने वहाँ के पंडित जी से कहा जा बँटी के सर गांधीजी आ गए है कोई निम्बू हाथ में रख कर उन्हें उतार दो। पर उन्हें मुस्कुराकर सबको प्रसाद बाँटने लगे शायद वे भी हमारी सिल्वर रंग से पुते हुए महापुरषो से प्रभावित दिखे
अब गांधी जी ने ही मुझे पकड़ लिया - जनता हूँ आज शायद मुझे नापसंद करने ज्यादा है वनिस्पत पसंद करने वालो से , कुछ तो अंतर मुझ में बाकि लोगो से ?
मरने के काम का आकलन कर प्रशंसा तो हो सकती है पर जीतेजी अपनी बातो को किसी से मनवा लेना बहुत कठिन है बस मेने यही किया था क्रांति का विचार हमारे सब के जहाँ में आ सकता है दस बीस लोगो का समूह बना कर किसी को थोड़ा परेशान किया जा सकता है पर जब तक साधारण जनमानस आपसे जुड़ता नहीं तब तक कोई क्रांति सफल नहीं हो सकती , और साधारण जनमानस कब जुड़तागांधी जी अब मेरे कंधे पे हाथ रख धीरे धीरे चल रहे थे उनके शरीर पर लगा सिल्वर रंग अब मुझपे भी लग रहा था मुझे ऐसा लगने लगा कि मै भी गांधी के रग मे रंगता जा रहा हूँ |
अब शेष झांकी पुराने बस अड्डा पर पहुँच गई थी, इस नवदुर्गा समिती की अपनी एक विशेषता थी कि ये लोग कभी चंदा लेने नहीं निकलते थे, एक अच्छा नियम बना लिया था उन्होंने हर गाडी वाला रोज थोडे पैसे इनकी चंदा पेटी मे डाल देता | अधिकांश मुस्लिम लोग थे यहाँ |
हिन्दू मुस्लिम एकता का उदाहरण |
अधिकांश लोगों का मानना है कि भला लाठी लेकर चलने से आजादी मिल सकती है क्या?.....वे सब सही सोचते हैं ….गाँधी जी बोले
मै गांधीजी को आश्चर्य से देख रहा था.....स्वीकारोक्ति उनके द्वारा?
यही विचार तो मेरे भी थे कि आजादी क्रांति कारी लोगों के कारण मिली न कि गांधी आन्दोलन के कारण |
अगर मै भी हथियार उठा लेता तो ज्यादा से ज्यादा कितने लोगो को मार पाता ? चंद लोगो को बस ?
मुझसे पहले भी कई कोशिशे हुई थीं उन सब क्रांतिकारियों का स्वयं का नाम तो बहुत हुआ पर उनके साथ जनसाधारण मानस नहीं जुड़ पाया भगतसींग, चंद्रशेखर सब चाह रहे थे, पर पडोसी के घर। न की स्वयं की औलाद को कोई भी हथियार उठा कर जंगल में भागते नहीं देखना चाहता है
मंगल पांडे से शुरू हुई सन सत्तावन की क्रांति क्यों नहीं भारत के कोने कोने में फ़ैल पाई ? क्योकि वो राजाओ के सैनिको और अंग्रेजो के सैनिको के बीच युद्ध बनकर रह गया था बाकी लोग प्रजा बनकर दूर से देखने में व्यस्त थे
सोचने की कोशिश करो क्यों लोग मेरे साथ भारत छोडो आंदोलन में जुड़ते चले गए क्योकि वे सब एक बात समझ चुके थे कि अहिंसक आंदोलन के साथ चलने के कारन उन्हें सरकारी मिशनरियों से छुपकर जंगल में नहीं जाना पड़ेगा, वे सब अपना रोजमर्रासब अपना रोजमर्रा का काम भी कर सकेंगे और आंदोलन का हिस्सा भी बन सकेंगे।
राह कठिन थी सफलता की कोई गारंटी नहीं थी, पर सब में एक संतोष था की हाँ में अंग्रेजो की विरुद्ध काम कर रहा हूँ और उसे एक गर्व महसूस होने लगा।
अब हर घर का हर सदस्य इससे जुड़ने लगा फिर चाहे वो बूढा हो या जवान बच्चे हो या महिला बस इसी तरह काफिला बढ़ने लगा। और नतीजा सबके सामने है
चौगड्डा आ चूका था पूरी झांकी धूमा जी की होटल पर प्रेम से नाश्ता कर रही थी |
मेरा बदन अब पूरी तरह सिल्वर रंग में रंग चूका था और मेरी आत्मा गाँधी के रंग में रंग चुकी थी।
मै चौराहे पर खड़ा था हाथ में रखी कछुआ छाप अगरबत्ती कब की हाथ में रहे रखे रखे टूट कर भूसा हो चुकी थी।
विनोद पाराशर 8357007999
(ऐसी और अपनी सी जानी पहचानी कहानियां इस किताब मे है