हे गुरुदेव यह बात बिलकुल सही नही गुरुजी,
मतलब पूरा संसार महामहिम द्रोपति मुर्मू को बधाईयां दे रहा है देश में अंत्योदय हुआ है और आप यशवंत सिन्हा की हार की समीक्षा करने बैठे है? अरे हार गए हार गए बात समाप्त ।
विनोदग्नि आश्चर्यमिश्रित क्रोध में था, क्या आप भी विपक्षी हो गए?
मुनि पाराशर _ हे वत्स न हम साधु लोग तो हमेशा निष्पक्ष रहते हुए संसार को देखते है, हम तो वस्तुस्थिति समझने की कोशिश कर रहे हैं
विनोदग्नि_ ये विपक्षी दलों की एकता के बीच दरार कितनी चौड़ी हो गई।
ऐसा सुनकर मुनि पाराशर बोले हे शिष्य शिरोमणि ये विपक्षी एकता नामक कोई वस्तु संसार में होती नही है ये क्षण भंगुर होती है ये जान लो पहले, छोटे छोटे कई छत्रप जो अपने प्रदेश के स्वयंभू बड़े होते हैं, जैसे ममता बनर्जी अखिलेश या लालू पुत्र, कई मौके पर एक दूसरे का हाथ पकड़कर कुछ मंचों पर खड़े हो जाते है बस इससे अधिक कुछ नहीं इसे एकता मानना मात्र मन का भ्रम है
इनका कुछ भला तभी हो सकता है जब सब मिलकर कांग्रेस ने नेतृत्व में वापिस यू पी ए बना पाए क्योंकि कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसकी कड़े भारतवर्ष में फैली है।
आज इस सांडिया के नर्मदा के घाट पर इतनी भीड़ क्यों है न पूर्णिमा न अमावस्या? विनोदग्नि ने भीड़ की तरफ देखते हुए पूछा।
हे विनोदग्नि ये सब लोग जयमाता दी समिति के कर्मठ कार्यकर्ता हैं जो नर्मदा मैया से जलकुंभी निकाल कर सफ़ाई करने आए हैं, गुरुदेव इनमे तो कुछ बड़े बड़े अधिकारी और धन्ना सेठ भी है वे सब यहां कई दिनों से लगातार सफ़ाई में जुटे है ताकि नदी का जल पवित्र रहे।
बहुत नेक कार्य है, जल है तो कल है।
वैसे ये सब प्रकृति प्रेमी कहां से आए
अधिकांश लोग रेवाखण्ड के पौसार पिपरिया नामक ग्राम के निवासी हैं कुछ गाड़ाघाट पचलावड़ा सांडिया से आएं है।
आपको इनके बारे में इतना कैसे पता
मुनि उवाच _ मैं भी कभी इनमे से एक किट्टम किट्टू तिगड्डे का निवासी हुआ करता था पर वक्त के थपेड़ों के साथ न जानें कहां उड़ता रहा ।
ज्यादा गंभीर न हो गुरुवर हम यहां चर्चा कर रहे थे यशवंत सिन्हा के साथ कौन सी केन हो गई ।
इसी बीच विनोदग्नि अपने गुरु के लिए बड़ी श्रद्धा से चिलम तैयार करने लगा
गुरुदेव यशवंत सिन्हा की जगह अगर मैं ये चुनाव लड़ रहा होता तो आपके आशीर्वाद से जीत के बता देता
मुनि _ वो भला कैसे? गुरुजी आश्चर्य में आ गए, क्या फार्मूला अपनाते तुम?
जब हार दर पर निश्चित दिख रही हो तो फिर कर्म नही करना चाहिए काण्ड कर देना चाहिए।
जब सबसे पहले ममता बनर्जी ने ही उनका साथ छोड़ दिया जिसने उन्हें खड़ा किया था फिर एक एक करके सबने उन्हें अकेला छोड़ दिया
मैं कह देता कि अगर वे दलित आदिवासी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही हैं तो मैं सवर्णों का पुरुष चेहरा हूं और मैं सभी तरह के आरक्षण बंद करवा दूंगा,
मेरा इतना कहना ही भारतीय राजनीति में भूचाल ला देता फिर जितने भी राजनेतिक दल है सब मेरा मुक्त कंठ से विरोध करते और हमे तनखईया ही घोषित कर देते। पर उनके सांसद और विधायक क्रास वोटिग करके मुझे ही जीता देते क्योंकि आज भी अंधिकाश प्रतिनिधि स्वर्ण ही है और सभी चाहते हैं की योग्यता का हनन न हो पर वे कह नही पाते है।
और अगर अपन हार भी जाते तो ये अपमान करने वाले विपक्षी दल जीवन में कभी कोई चुनाव जीत भी नही पाते।
अर्थात कोई हमारी एक आंख फोड़ तो उसकी तीन आंखे फूट जानी चाहिए।
गुरुजी किंचित असमंजस में दिखे भला तीन आंख कैसे फोड़ सकते है किसी की बो तो अधिकतम दो ही होती है?
अपने गुरु को अधिक देर असमंजस में न रहते हुए विनोदग्नि ने कहा गुरुजी दो दुश्मन की ओर तीसरी उसकी औलाद की आंख फोड़ देना चाहिए ।
अद्भुत अति उत्तम _ गुरुजी अपने शिष्य के ज्ञान से अत्यंत प्रसन्न दिख रहे थे।
चिलम तैयार हो गई हो तो हमे दो आज हम ही सुलगा लेते है असल में गुरुजी का पुराना अनुभव था की ये चेला चिलम जलाने के नाम पर पूरी पी जाता है इसलिए वे आज जोखिम नहीं उठाना चाहते थे
अब लगभल तेरह माचिस की तीली बरबाद कर चुके थे पर असफल रहे थे अब आखिरी तीली बची थी और सामने चिलामखोर शिष्य था, अब इसे देने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
और विनोदग्नि मानो इसी पल का इंतजार कर रहा था एक प्रयास में ही जला दी और चिलम अधया के गुरुजी की तरफ बढ़ा दी।
मुनि पाराशर मन मसोस कर रह गए
उतिष्ठ भारत: कहकर अगले पड़ाव की ओर चल पड़े।
क्रमशः
विनोद पाराशर