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अंधभक्त और अंधविरोधी

25 सितम्बर 2022

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गुरुवर ये अंधभक्त और अंधविरोधी क्या है? ये स्पष्ट करें, क्या ये वास्तविक है या केवल मन का भ्रम?
अपने शिष्य विनोदाग्नि का प्रश्न सुनकर पाराशर मुनि कुछ देर  आंख बंद कर विचारणीय मुद्रा में बैठे रहे फिर उन्होंने बोलना शुरू किए _ प्रिय शिष्य अंधभक्त और अंधविरोधी के बीच कोई स्पष्ट रेखा नही खींची जा सकती कि इस पार के भक्त और उस पार के विरोधी, 
एक बहुत बड़ी संख्या इसी होती है जो इन दोनो पक्षों के तरफ न होकर भी किसी पक्ष में होती है।
शिष्य की जिज्ञासा शांत नहीं हुई ये बात मुनि समझ रहे थे इसलिए उन्होंने पुनः कहना शुरू किया _ ऐसा मान सकते है की उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर रहने वाले चंद लोग
 अंधभक्त और अंधविरोधी होते है। पर शेष पर विशाल दोनो गोलार्ध मे रहने वाले लोग अपनें आप उस विचारधारा के मानने वाले हो जाते है,जबकि यह सत्य नही है, 
कोई सिर्फ समर्थन करता है पर अंधभक्त नही होता, इसी तरह दूसरे पाले में दिखने वाला किन्ही बिंदुओं पर विरोध प्रकट करना चाहता है पर हर बात का विरोध नहीं।
विनोदग्नि ने फ़िर प्रश्न किया क्या कोई चिर विरोधी भी होता है?
हां। होता है,  मुनि पाराशर समझना शुरू किया _इस तरह की प्रजाति को ग्रंथो वामपंथी कहा गया है, ये लोग स्वाभाविक अंधविरोधी होते है। इनके घर में हमेशा पोस्टर बैनर तैयार होते है। बस नया नारा लिखकर हमेशा सड़को पर मिलेंगे।
इन्हे हर कार्य में खोट दिखाई देता है, कुछ विद्वानों ने इन्हे बुद्धिजीवी कहकर भी संबोधित किया है।
इस तरह के बुद्धिजीवी न स्वयं कुछ करते है न दूसरो को करने देते हैं।
इस हेतु एक वृतांत सुनाता हूं
इसी बीच विनोदग्नि ने अपने गुरु के लिए बड़े ही जतन से चिलम तैयार कर दी, अग्नि से प्रज्वलित करने के दौरान एक सुत्ता उसने भी खीच लिया और गुरु की ओर बढ़ा दी।
शिष्य को अपने सामने चिलम पीता देख मुनि क्रोधित हो गए।
आज्ञाकारी शिष्य ने स्थिति स्पष्ट करी गुरुदेव बगैर सुत्ता खींचे चिलम जलाई नही जा सकती थी।
गुरु की आंखों में संतोष के भाव आ गए और उन्होंने धुआं हवा में उड़ाते हुए कहा _ तो वृतांत कुछ ऐसा है कि एक वक्त ऐसा आया था जब भारतवर्ष में वामपंथियों को शासन करने का अवसर मिला था उनके गुरु ज्योति बसु इस कार्य हेतु सहश्र स्वीकार कर चुके थे किंतु तब के वामपंथी श्रेष्ठियों ने उन्हें ये कहकर रोक दिया क्योंकि उस वक्त कई अलग अलग विचारधारा वाले दलों को मिलाकर तीसरा मोर्चा बनाया गया था जिनमे कई पराक्रमी योद्धा हुआ करते थे, उन्हें एक साथ रखना मतलब टोकनी में कई मेंढक रखने के बराबर था। 
और एक कारण ये भी था की उनके शासन काल में बंगाल से सभी उद्योग धंधे समाप्त हो गए थे, तो हो सकता था की उनकी नीतियों से पूरा भारतवर्ष उद्योग विहीन हो जाता।

विनोदग्नि अपने गुरु के ज्ञान पर नतमस्तक हो रहा था _
 गुरुदेव शत्रुता समाप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?
प्रश्न सुनकर मुनि पाराशर के नथुने फूलने लगे हाथ पैरों में कंपन पैदा हो गया, उन्हें अपने सभी शत्रुओं का स्मरण हो गया जिन्होंने उन्हें कष्ट पहुंचाया था, पर शीघ्र ही गुरुजी ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पा लिया और बोले_ वत्स शत्रु से मुक्ति पाने का सबसे उत्तम उपाय यह है कि तुरंत नया और शक्तिशाली शत्रु बना लो फिर अपने आप आपको पुराना शत्रु अच्छा लगने लगेगा और हो सकता है वो मित्र भी बन जाए। हो गई समस्या का निराकरण।
पाराशर मुनि की बात से विनोदग्नि पूर्ण रूप से सहमत दिख रहा था_ अद्भुत ज्ञान गुरुदेव
मुनि पाराशर ने उसे आशीर्वाद और पुनः प्रवचन को विस्तार से वर्णन करनें लगे _ शत्रु क्या है?  सिर्फ एक समस्या, इससे अधिक कुछ नहीं।
 हर समस्या का हल करना सत्ताधारी पार्टी बहुत अच्छे से जानती है, उनका तरीका बहुत शिक्षाप्रद होता है।
 शिष्य ने घोर आश्चर्य से देखा गुरु को देखा _ सत्ताधारी दल की कोई बात भला शिक्षाप्रद भी हो सकती है?
अवश्य मेरे प्रिय शिष्य विनोदग्नि अवश्य
पाराशर मुनि ने अपनें नेत्र बंद कर लिए पर उनके मुख से वाणी निकल रही थी _ बहुत पुरानी बात है जब संयुक्त मोर्चे की सरकार पर विपत्ति आन पड़ी थी, देवीलाल नामक समस्या विकराल रूप धारण कर सामने आ गई थी किसी को कुछ नही सूझ रहा था, सरकार का पतन निश्चित था, पर वी पी सिंह ने अपने तरकश से एक बहुत प्राचीन तीर निकाला जिसका नाम था मण्डल आयोग का आरक्षण। बस इसका उपयोग करते ही पूरा भरतखण्ड अग्नि में प्रवेश कर गया और सबका ध्यान देवीलाल नामक समस्या से हटकर नई ओर चला गया और वी पी सिंह का सिंहासन कुछ समय के लिए सुरक्षित हो गया। उन्हें ऐसा लगा था की ऐसा करने पर उनका नाम स्वर्ण अक्षर में लिखा जायेगा, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं वे अपने जीते जी भुला दिए गए थे।
पर उन्होंने राजनीति को एक नई दिशा दे दी थी, बस तभी से सभी ने इसे गुरु मंत्र मान लिया, समस्या से लडो मत बस उसके सामने एक और बड़ी समस्या रख दो पहली समस्या अपनी मृत्यु पा लेगी।
गुरुदेव क्या आज भी ऐसे शस्त्र हैं? विनोदाग्नि ने भूमि पर बैठे बैठे ही  व्यासगादी पर बैठे गुरुजी से प्रश्न किया ।
पाराशर मुनि उवाच _  अब तुम स्वयं कड़ियां जोड़कर देखो
ज्ञानवापी से निकली नुपुर शर्मा, 
नुपुर शर्मा एक दिन भुला दी गई जैसे ही अग्निवीर आए, ये समस्या सिर चढ़कर बोलने लगी थी कि हेराल्ड केस की पेशियां होने लगी, बस सब कुछ भूलकर पूरा विपक्ष झंडा डंडा लेके सड़कों पर उतर आया। हमारे नेता पर उंगली उठाई तो आंख निकाल लेंगे। वे आंख निकाल पाते  इससे पहले शिवसेना का कामख्या प्रकरण प्रारंभ हो गया।
सारी प्रजा की निगाहे कभी आसाम के होटल ओर जाती तो कभी महाराष्ट्र।
अब ऐसे दुरूह समय में कोई पेट्रोल की बढ़ते मूल्य पर विचार रखने की चेष्ठा भी करेगा तो देखेगा कौन?
विरोध क्या है?  बस ध्यान आकर्षण का औजार अगर कोई  इसे न देखकर और कहीं देखने लगता है तो ये हथियार अपने आप बोथरा हो जाता है।
बस इसी तरह जीवन में एक समस्या ठीक उस वक्त समाप्त हो जाती है जब नई और बड़ी समस्या सामने आ जाती है, इसे ही नरश्वरवाद कहा जाता है। 
इसी लिए हमने कहा कि शत्रु से मत लड़ो बस नया शत्रु बना लो पुराना शत्रु अपने आप समाप्त हो जायेगा 
उत्तिष्ठ भारत
इतना कह कर पाराशर मुनि ने अपना आसन छोड़ दिया।
                                                         क्रमशः 
     विनोद पाराशर 
8357007999







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