कुछ शायरी का शौक़ है । पढ़ने का मज़ा लेता हूँ और कभी, कुछ लिख भी लेता हूँ ।
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यूं ही लिखते-लिखते क्या-क्या लिख गया, उसे ही पेश किया है और हौसला आफजाई की खातिर थोड़ी सी दाद का तलबगार हूँ ।
कभी तो पर्दा हटाइये कभी चुप्पी को भी मिटाइये । कभी चाँद को दिखाइए कभी बातों से भी बहलाइये ।। ये मेरा हक़ है कि तेरे रश्क़-ए-क़मर से चेहरे को । अपने हाथों में लेकर देखूं , नहीं है क्या ? ज़रा आ
चाह मेरी थी अपना दिल और सांसें सारी तुझको ही मैं देता । करूँ मगर क्या वक़्त बुरा था वरना तुझ तक आ के ही दम लेता ।। बात करूँ जो आफताब की शब से ना वो भी बच पाया । मैं खो ही तो गया इस तारी
ये सजदा तो जब हम तुम संग संग करते हैं । तो चलो अब से दिल को भी पतंग करते हैं ।। तमाम कायदे कानूनों से हो करके अलहदा । लहू की तरह हम भी अपना एक रंग करते हैं ।। जो भी है ज़ुबाँ पर वही तु
दर पे मेरे तुम बेख़ौफ़ आना, जब तुम्हें छोड़ दे सारा ज़माना । आकबत में भी तुमको मिलेंगे, कुछ ऐसे भी हमको आज़माना ।। देवराज पटवाल "साहिल"