shabd-logo

तेरी बुर्कापरस्ती

3 सितम्बर 2022

13 बार देखा गया 13

कभी तो पर्दा हटाइये

कभी चुप्पी को भी मिटाइये ।

कभी चाँद को दिखाइए 

कभी बातों से भी बहलाइये ।। 


ये मेरा हक़ है कि तेरे 

रश्क़-ए-क़मर से चेहरे को ।

अपने हाथों में लेकर देखूं ,

नहीं है क्या ? ज़रा आप ही फ़रमाइए ।।


बेहद हूँ बेक़रार यूं तो

फ़क़त तेरे वस्ल की ख़ातिर ।

जो न मिल सका तुझसे तो

ख़ुदा के दर पे कहलाऊंगा क़ाफ़िर ।।


तेरी बुर्कापरस्ती पे कहने का 

मन हुआ तो ये इज़हार किया है ।

तुम भी तो कुछ कहो,

क्या मैनें तुम्हें बेक़रार किया है ?   


नहीं नहीं ये वो बेक़रारी नहीं 

जिसमें जिस्म समाते हैं ।

हम तो बस वो हैं 

जो रूहों को आज़माते हैं ।।


---- देवराज पटवाल "साहिल"

4
रचनाएँ
हर लम्हा
0.0
यूं ही लिखते-लिखते क्या-क्या लिख गया, उसे ही पेश किया है और हौसला आफजाई की खातिर थोड़ी सी दाद का तलबगार हूँ ।
1

फ़क़त एक शेर

7 अगस्त 2022
0
0
0

दर पे मेरे तुम बेख़ौफ़ आना, जब तुम्हें छोड़ दे सारा ज़माना । आकबत में भी तुमको मिलेंगे, कुछ ऐसे भी हमको आज़माना ।। देवराज पटवाल "साहिल"

2

दिल को भी पतंग करते हैं

3 सितम्बर 2022
0
0
0

ये सजदा तो जब हम तुम  संग संग करते हैं । तो चलो अब से  दिल को भी पतंग करते हैं ।। तमाम कायदे कानूनों से  हो करके अलहदा । लहू की तरह हम भी अपना एक रंग करते हैं ।। जो भी है ज़ुबाँ पर  वही तु

3

वक़्त बुरा था

3 सितम्बर 2022
0
0
0

चाह मेरी थी अपना दिल और सांसें सारी तुझको ही मैं देता । करूँ मगर क्या वक़्त बुरा था वरना तुझ तक आ के ही दम लेता ।। बात करूँ जो आफताब की शब से ना वो भी बच पाया । मैं खो ही तो गया  इस तारी

4

तेरी बुर्कापरस्ती

3 सितम्बर 2022
0
0
0

कभी तो पर्दा हटाइये कभी चुप्पी को भी मिटाइये । कभी चाँद को दिखाइए  कभी बातों से भी बहलाइये ।।  ये मेरा हक़ है कि तेरे  रश्क़-ए-क़मर से चेहरे को । अपने हाथों में लेकर देखूं , नहीं है क्या ? ज़रा आ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए