चाह मेरी थी
अपना दिल और
सांसें सारी
तुझको ही मैं देता ।
करूँ मगर क्या
वक़्त बुरा था
वरना तुझ तक
आ के ही दम लेता ।।
बात करूँ जो
आफताब की
शब से ना
वो भी बच पाया ।
मैं खो ही तो गया
इस तारीकी में
वरना तुझे पाने को
चलता ही रह लेता ।।
---- देवराज पटवाल "साहिल"