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वक़्त बुरा था

3 सितम्बर 2022

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चाह मेरी थी

अपना दिल और

सांसें सारी

तुझको ही मैं देता ।

करूँ मगर क्या

वक़्त बुरा था

वरना तुझ तक

आ के ही दम लेता ।।


बात करूँ जो

आफताब की

शब से ना

वो भी बच पाया ।

मैं खो ही तो गया 

इस तारीकी में 

वरना तुझे पाने को

चलता ही रह लेता ।।


----  देवराज पटवाल "साहिल"

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रचनाएँ
हर लम्हा
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यूं ही लिखते-लिखते क्या-क्या लिख गया, उसे ही पेश किया है और हौसला आफजाई की खातिर थोड़ी सी दाद का तलबगार हूँ ।
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फ़क़त एक शेर

7 अगस्त 2022
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दर पे मेरे तुम बेख़ौफ़ आना, जब तुम्हें छोड़ दे सारा ज़माना । आकबत में भी तुमको मिलेंगे, कुछ ऐसे भी हमको आज़माना ।। देवराज पटवाल "साहिल"

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दिल को भी पतंग करते हैं

3 सितम्बर 2022
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ये सजदा तो जब हम तुम  संग संग करते हैं । तो चलो अब से  दिल को भी पतंग करते हैं ।। तमाम कायदे कानूनों से  हो करके अलहदा । लहू की तरह हम भी अपना एक रंग करते हैं ।। जो भी है ज़ुबाँ पर  वही तु

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वक़्त बुरा था

3 सितम्बर 2022
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चाह मेरी थी अपना दिल और सांसें सारी तुझको ही मैं देता । करूँ मगर क्या वक़्त बुरा था वरना तुझ तक आ के ही दम लेता ।। बात करूँ जो आफताब की शब से ना वो भी बच पाया । मैं खो ही तो गया  इस तारी

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तेरी बुर्कापरस्ती

3 सितम्बर 2022
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कभी तो पर्दा हटाइये कभी चुप्पी को भी मिटाइये । कभी चाँद को दिखाइए  कभी बातों से भी बहलाइये ।।  ये मेरा हक़ है कि तेरे  रश्क़-ए-क़मर से चेहरे को । अपने हाथों में लेकर देखूं , नहीं है क्या ? ज़रा आ

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