shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

धड़कन

ओंकार नाथ त्रिपाठी

50 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
14 पाठक
19 मार्च 2024 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

"धड़कन"यह मेरी बारहवीं आनलाइन प्रकाशित पुस्तक है।इसके पहले योर कोट्स पर शब्द कलश,तथा 'शब्दइन' पर नौ आनलाइन कविता संग्रह प्रकाशित है।'शब्दइन' पर ही एक लघु कथा संग्रह भी प्रकाशित हो रहा है। आज 21फरवरी2024के दिन इस संग्रह की शुरुआत हो रही है।यह दिन भी मेरे लिए विशेष दिन है।आज धरती कराह रही है और आसमान रो रहा।पीड़ा के क्रंदन में घुले हुए नेह के आंसू आंखों में बादल बने उमड़ घुमड़ रहे।क्रंदन मां की पीड़ा का तथा नेह के आंसू मेरी सुन्दरी के।दोनों मां की पीड़ासिक्त क्रंदन में घुलकर बेसुधि का धुंध बन सामने खड़े हैं। पीड़ा सिक्त मन के उद्गार लिए शुरु हुई है यह नई कविता संग्रह। आशा है कि "धड़कन" आप पाठकों का पूर्ववत सहयोग मिलेगा। ©ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर ‌ गोरखपुर 

dhadakan

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

इंसान!

22 फरवरी 2024
4
0
0

© ओंकार नाथ त्रिपाठी मैं!ढुंढता,रह गया,इंसान!जो मेरी, तबीयत पूछे।मगर!यहां तो-कदम दर कदम,लोग!हैसियत!!और-वसीयत की,चाहत में

2

सफ़र!

22 फरवरी 2024
2
0
0

मैं!ठहरा,पथ का,पथिक। मेरे-सफ़र का,अंत!नहीं होने वाला।एक!सफ़र ख़त्म,तब!दुसरा शुरू।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

3

बहाना!

22 फरवरी 2024
2
0
0

कभी,हम दोनों ही,वजह! ढुढते रहते थे,एक साथ, साथ-साथ रहने का।और-अब तुम हो,कि-बहाना!बनाती रहती हो,मुझसे!दूर जाने का।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

4

जवाब!

22 फरवरी 2024
1
0
0

जब-कभी मैं!बैठता हूं,अकेले में। मिल जाते हैं,मुझे!तब,तेरी-नजरअंदाजी के,जवाब!अपने आप ही।फिर भी-खुद को, कोसता,तेरी-तरफदारी में,पुरजोर से,जुट जाता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर

5

बहाने से आया

22 फरवरी 2024
0
0
0

न ही-तुम बुलायी,और-न ही मैं,तेरे-बुलाने पर आया।मैं तो-मिलने के लिए,तेरे पास-बहाने से आया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

6

अहसास!

22 फरवरी 2024
0
0
0

अब!धीरे-धीरे,शाम!हो चली हैं।घर!वापसी को हूं,सर्द हवाएं! मुझे-आहिस्ते-आहिस्ते,छूने लगी हैं,और-जगाने लगी हैं,मुझमें,अहसास! तेरा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

7

धड़कन!

22 फरवरी 2024
0
0
0

मेरी!धड़कनें,तेरी!सांसों की,महक से-ऊर्जित होती हैं।तुम!महकती रहना, ताकि!मेरे दिल की,धड़कनें!बनी रहेंगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

8

समय!

22 फरवरी 2024
0
0
0

मुझे!ढ़ाढस,बंधाते हुए,एक दिन,उसने-कहा था कि-समय!बदलता है।लेकिन!मैने,उसको,समय के, पहले ही,बदलते देखा ‌।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

9

हुनर!

22 फरवरी 2024
0
0
0

कैसे-मुकरा जाता है,अपने-वादों से?चलो!यह हुनर भी,कहीं- सीखा जाये।अब!थक गये हैं,बहुत!इन्हें निभाते-निभाते।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

10

अकेला!

22 फरवरी 2024
0
0
0

जब-महफ़िल की,खुशियों में,सराबोर रही तुम!वहीं!उस भीड़ ने,मुझे-अकेला कर दिया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित्र:साभ

11

सुकून!

22 फरवरी 2024
0
0
0

बार-बार,तेरे!खयालों की,लहरें!भीगो जाती हैं,मुझे!मेरे वजूद को,छूकर।एक-सुकून! भरा,अहसास!दें जाती हैं,मेरे-तन मन को।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

12

खुबसूरत

22 फरवरी 2024
0
0
0

तुम!खो गयी हो,मुझसे!कहीं पर।क्योंकि-खुबसूरत हो,बिल्कुल!मेरे-बचपन!और-बीते हुए,लम्हों! की तरह।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

13

तोहफा

22 फरवरी 2024
0
0
0

तेरा!ब्लाक तथा-इग्नोर करने का,शौक!याद आ गया,मुझे!इसीलिए तो-यही!मैंने तुम्हें-तोहफा में दिया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

14

लड़की

23 फरवरी 2024
0
0
0

क्या?कुछ मसले,खामोशियों को,सुलझा पायेंगे?अपने ही,उलझनों से,उलझी हुई है,जो जिंदगी!क्या?रफा दफा,कर सकेगी,गिले शिकवे!को,आधी दुनिया,खुद से,कभी?दरख्तों की,गुहार पर,कहां तक-भरोगे हामी?आईने में,जो हंसती रहती

15

रिश्ते नाते!

23 फरवरी 2024
0
0
0

क्या?कुछ मसले,खामोशियों को,सुलझा पायेंगे?अपने ही,उलझनों से,उलझी हुई है,जो जिंदगी!क्या?रफा दफा,कर सकेगी,गिले शिकवे!को,आधी दुनिया,खुद से,कभी?दरख्तों की,गुहार पर,कहां तक-भरोगे हामी?आईने में,जो हंसती रहती

16

गली में

23 फरवरी 2024
0
0
0

फुर्सत!मिले तब,कभी,फिर-इस गली में, आना।मैं तुम्हें! अपनी- सांसों में,बसी,तेरे!नाम की,महक!महकाऊंगा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

17

उम्मीदें!

24 फरवरी 2024
0
0
0

मेरी!उम्मीदें,हमेशा ही,टुटती रही है।मेरा-सोचना!कि खुश होगी,मेरी नादानी रही।संतुष्ट-न हो पाना,उसकी प्रकृति है,लाख करलो प्रयास।क्योंकि-वह स्त्री है,आधी दुनिया!पूर्ण खुश कैसे रहे?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशो

18

ओस! की चाहत

24 फरवरी 2024
1
0
0

आज!आसमान से,जमीन तक,पहुंचने वाली,ओस की,बूंदों के,टूट कर भी, अपने तक,पहुंचने की,चाहत पर,पत्तियां,विभोर हो, खिलखिला कर,नाच उठीं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

19

तुम!

25 फरवरी 2024
0
0
0

जैसे-जैसे!घटता!जा रहा हूं, मैं,खुद में!वैसे-वैसे ही-बढ़ती! जा रही हो,तुम मुझमें।हमारी-खुशियां!डिलेवर होती रहीं,ग़लत पते पर।शायद!तभी-हम तक, पहुंची नहीं।अभी तक है,कद्र!दिल में- तेरी

20

रिश्ते!

25 फरवरी 2024
0
0
0

रिश्तों में,निखार!केवल- जरुरतों,तक ही,साथ!रहने से,नहीं आता है।बल्कि!विपरित,परिस्थितियों में,साथ-साथ, एक साथ! होने से आता है।लेकिन-ऐसे में,तेरा साथ!कहां रहा?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर

21

हे मनुज!

26 फरवरी 2024
1
1
2

सुबह से-शाम तक।दिन से-रात तक।हर पल,पल-पल।एक ही-धुन पर,चलता है,दिन रात।हे मनुज! तुम-क्या?जाने को,एक दिन,खाली हाथ,यहां से,तुम।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

22

साथ

26 फरवरी 2024
0
0
0

मैंने तो-तेरा साथ,अपनी-जलालत तक,निभायी,तुमसे।एक-तुम हो,कि शायद,मुझे-याद!रखना भी,जरुरी!ना समझी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbsp

23

ईश्क

26 फरवरी 2024
0
0
0

मैं!बहका भी,तुम्हीं को,छूकर!इस- जहां में;और- महका भी,तेरे! इश्क में,रुह तक,उतर जाने के बाद।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

24

तुम्हीं हो!

28 फरवरी 2024
0
0
0

मैं तो,हरपल, तेरा साथ- निभाने के लिए,तुम्हें!मनाता रहा हूं।तुम्हीं हो,जो छोड़कर,मुझे!चल दिया करती हो।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &n

25

मां!

28 फरवरी 2024
0
0
0

तुम तो-किताब हो,विनम्रता,अदब! और तहजीब की।ममता और- वात्सल्यता,तेरी तो,पहचान रही है।आज!मौन है, मेरे लिए-यह सब कुछ।क्योंकि-मेरी धरती रही मां!निश्तेज पड़ी है,बिस्तर पर।मैं,असहाय!निरु

26

आवारापन!

28 फरवरी 2024
0
0
0

तेरा-सुहागन होना!और-मेरा!आवारापन,एक-गजब का,संयोग है,ऐसे!वियोग का।तूं तो-महलों की, बनी-राजरानी, मैं! खानाबदोश,भटकता,बंजारा।आज!मौन कह रहे,जो मेरे,वह-शब्द कहां?कह पायेंगे।© ओंकार नाथ त्रिप

27

खामोश,आंखे!

28 फरवरी 2024
0
0
0

आज-खामोश आंखें,ढुढ़ रही थीं,तुम्हें!और शायद!तुम भी,मुझको ही,ढुढ़ रही थी।तुम तो-मुझको पा गयी,पर तुमको,मैं,पा न सका।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

28

जीवन!

29 फरवरी 2024
0
0
0

मेरे!जीवन के,मीठे!सफ़र को,चाहतों ने-कड़वा!तथा-कसैला बना दिया।मुझे!नहीं पता रहा,लोग!छांव की खातिर,ठहरे रहे, मेरे पास।जीवन! पथ के-भरी दुपहरी में,पथिक बने।उन्हें-लुटाता रहाअपनी,शीतल छाया।लेकिन!

29

तेरा!,आदी हूं

1 मार्च 2024
0
0
0

तूने-मेरी आवाज़!भले ही,न सुनी हो,लेकिन-तेरी- खामोशियों को,सहलाया है मैंने।तेरे!रुठने पर,हरबार!मनाने की,नई-नई,तरकीबें ढुंढी हैं ।खुद की,खुशियों को,गिरवी रखकर,तेरी खुशियां खरीदी।मुझे! नशा तो न

30

अब तक!

2 मार्च 2024
2
1
2

मैंने!रिश्तों को,जताये वगैर ही,निभाया अब तक।मुझे!कोई फर्क!नहीं पड़ा कि-दूर या पास का? मैं तो-सहता रहा,हरेक बात को,ताकि रिश्ते ढहें न।हमनें-लिखा था,मिलकर साथ,मोहब्बत के शब्द!जिसको-मैं पढ़ता रहा ,ल

31

सपने!

2 मार्च 2024
0
0
0

तेरा-साथ मिलना,मेरे लिए,मंजिल के,तलाश,की तलब!नहीं रही।मैं तो,हर कदम पर,तेरे,साथ! चलना चाहता था।लेकिन-तुमने तो,आधी राह में ही,मुझे छोड़ दी।तभी तो-अधूरी रह गयीं,सारी हसरतें!जो पल गयी थीं।और-झांकने

32

आशाओं के, बादल!

3 मार्च 2024
0
0
0

आज!कानों ने,कई दिनों बाद!तेरी आवाज़ को सुना।मैंने जिंदगी को,थोड़ा रोका,खुद भी-कुछ देर के लिए ठिठका।फिर- बीते लम्हों की यादें,होठों पर थिरकीं!मैं मुस्कुराया।तेरे इश्क की, खुशबू !मेरे रोम-रोम

33

गुफ्तगू!

3 मार्च 2024
0
0
0

जब!मुझे घेर लेती हैं,तुम्हारी यादें!तेरी अनुपस्थिति में।तब मैं!आकाश की ओर,देखता हूं,वह समझ जाता है,मेरे मन की बात।उसी से,बतियाने लगता हूं,और वह भी-बतियाता है मुझसे।अक्सर! वह मेरी बातें, बिना

34

शबाब!

4 मार्च 2024
0
0
0

तेरा,शबाब!इतना-शराबी है,कि-,तुम! नदी में,क्या नहाई,मछलियां तक,शराबी हो गयीं।तुम्हें!देखकर,जब-मुस्कुराया,यह मेरी!बेहयाई लगी।लेकिन!दिल है कि-मानता ही नहीं,मुहब्बत!बढ़ती ही गयीतेरे नखरों के साथ।© ओं

35

नारी!

6 मार्च 2024
0
0
0

अपना-सब कुछ,बांटा हैतुमने!दिल!दे दी,प्रेमी को,अपने,तन!पति पर,किया, न्योछावर,मन!बच्चों के,संग!बंध गया,जीवन!हवन!कर दिया है,कुल पर।धन्य है तूंहे स्रष्टा!सृष्टि की तूंजननी है न्यारी।ईश्वर की हो,अप्रतिम,कृ

36

जंगल!

6 मार्च 2024
0
0
0

जब से,कंक्रीट के,जंगल!उग आये हैं,जंगल के,आस-पास,तभी से-जंगली!!जानवर भी,भयभीत! रहने लगे हैं,इसके बासिन्दों से।अब- गीदड़ भी,नहीं निकलते,जंगल से;अपने!मौत की,कहावत!सुनने के बाद।© ओंकार नाथ त्रिप

37

जिस्म!

7 मार्च 2024
0
0
0

तुम!फकत जिस्म!होगी-किसी के लिए।लेकिन-मैंने तो सिर्फ, तेरी रुह से,मुहब्बत की है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &

38

तेरा भी

9 मार्च 2024
0
0
0

मुझे!पता है,कि-तुम्हें!मालूम है,घर के-एक-एक सामान,कहां?और,किस जगह हैं।किसे-कब?और-क्या चाहिए।कौन,कहां,होना चाहिए,चाय, नाश्ता !भोजन तथा पानी का,कौन-कौन सा,समय है?कौन सोया?कौन नहीं?दवा की जरूरत,किसे है?स

39

तेरा साथ, कहां?

11 मार्च 2024
1
1
1

मैं तो-तनहा हूं,क्या-तुम भी हो?कल तो-साथ थे हम!पर,अब-आज कहां हैं?सरके-जा रही है जिंदगी,धीरे-धीरे,हमें यहां छोड़कर,जिस्म यहां-दिल कहीं और लेकर।आंखें हैं-वो रात जगे भी हैं,पर,वह!तेरा साथ कहां?© ओंकार ना

40

भूल जाने दो

13 मार्च 2024
0
0
0

लोग!भूल रहे हैं,तो क्या हुआ?भूलने दो।तुम भूल जाओ,कि वो भूल गये।लेकिन!यह मत भूलना,जब जरूरत होगी,तब जरुर-याद करेंगे वो,वह समय तो आने दो।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

41

तुम तो!

14 मार्च 2024
0
0
0

तुम तो-हिस्सा हो,मेरी!उन कविताओं का,जिसे-मैं लिखता तो गया,लेकिन-आज तक,समझ नहीं सका।मैं हार गया,तुम्हें भूला न सका।तुम तो!मेरी- कविताओं,और-अधरों!की मुस्कान तथा-मन के,राहत का,उत्स!रही हो।यह,जो

42

हैरान कहां?

15 मार्च 2024
0
0
0

जब से-तुम भूल गयी,बचपन की रसोई में,सामानों की जगह।तभी से-समझ गया,अब तुम-रच बस गयी हो,अपने ससुराल की-रसोई घर में।इस सच से-न मैं हैरत में हूं,और सच में!तुम भी हैरान कहां?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बश

43

भली-भांति

15 मार्च 2024
0
0
0

भले ही-कर दो डिलीट!मेरी फोटो,डीपी या चैट!लेकिन-नहीं हो सकेगीं,डिलीट कभी भी यादें।क्योंकि-मैं तेरे दौर से,गुजरा! वह मुसाफिर हूं,जो भली-भांति, समझता है तुम्हें।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बश

44

पहले जैसी

16 मार्च 2024
0
0
0

तेरा-यूं अचानक मिलना,मुझे-कचोटता रहा।क्योंकि-आज वर्षों बाद,मिली थी तुम,इस तरह।मैं तो-देखता रहा,भावनाओं की,गहराई को;लेकिन-इतने दिनों के,अंतराल पर,इस मिलन कीखुशबू!पहले जैसी नहीं लगी।© ओंकार नाथ त्रिपाठी

45

ख्वाब!

17 मार्च 2024
0
0
0

सच में,अगर ख्वाब!नहीं होते,तब तो-तुमसे मिलना भी,नहीं हो पाता।शुक्र है,खुदा का,जिसने-ख्वाब बनाकर,मुझको मिलाता है तुमसे।वरना!मैं पड़ा रहता,खामोश!तेरी रुह को,सुनाने की,कोशिश में।और तुम-इंतजार!करती रह जात

46

इतिहास!

17 मार्च 2024
0
0
0

आखिर!डरे सहमे,हिरनों ने भी,अंगड़ाई लेकर,बैठक में,निर्णय!ले ही लिया, अपन इतिहास!खुद ही,लिखने का।अब वो,थक गये थे,जंगल के राजा!और शिकारी! का,इतिहास! पढ़ते-पढ़ते।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बश

47

प्रेम!

17 मार्च 2024
0
0
0

जो-न तो,नियंत्रित हुआ,और-न ही,नियंत्रण किया।वह-प्रेम ही है,तो भला!इसे-रोका कैसे?जा सकता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

48

मेरी उम्र!

18 मार्च 2024
0
0
0

मुझे!ज्यादा नहीं,समझ सकी,अब तक।तुम्हारी पसंद,शायद!मेरे अलावा,कई! और रहे हों।वक्त का,तकाजा रहा है,तेरे!बदलते,स्वरूप पर,माप तौलकर!निकलते रहे मेरे शब्द।तुम!सोती रही,सुकून भरी,नींद रात भर।शीशे से,आंसुओ के

49

लापरवाह

19 मार्च 2024
0
0
0

चलो!लापरवाह बनकर,कुछ!आराम किया जाये।बहुत!थक गये हैं हम तो,अब!परवाह करते-करते।डरता हूं, मैं तुमको खोने से,इसीलिए!थोड़ी दूरी बनाये रहता हूं,नाराज़गी!तेरे प्रति मेरी कत्तई नहीं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी

50

नींद!

19 मार्च 2024
0
0
0

मैं! सोया ही था,कि-अचानक!तेरी आवाज़,कानों से टकरायी।मुझे लगा,जैसे तुम! मुझे-पास आकर, बुलायी।जब!मैं जगा,न तुम थी,न तेरी आवाज़!केवल!सन्नाटा पसरा था।इसके बाद, तुमको! ढुढ़ते-ढुढ़तेमेरी

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए