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धोखेबाज औलाद

6 अप्रैल 2022

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बिछड़े तब जाने भूले मन पछताने 

अनोखी प्रेम कथा 

लेखक - रामजी दौदेरिया 

अध्याय ५ 

कुलवंता का घर ! कुलीन जाग जाता है, पलंग से उठ कर खड़ा होता है और आँखों मलता हुआ बाहर आता है, बाहर आ कर वह देखता है कि झोपटलाल का कमरा खुला हुआ है, कुलीन उसके कमरे के अंदर घुस जाता है ।

“ झोपटलाल झोपटलाल , चल छोड़ सुबह सुबह टहलने गया होगा। ” कुलीन ने कहा। 

 

फिर कुलीन नीचे आता है, नीचे आ वह लाजवंती को उसके कमरे में, खिड़की से झाँक कर देखता है । वह बँधी हुई खर्राटे मारते हुए आराम से सो रही है। फिर कुलीन कुलवंता के कमरे में भी झाँकता है, वह भी बँधा हुआ खर्राटे मारते हुए आराम से सो रहा है । 

 

“ लगता है इन पर मंत्र का असर नहीं हुआ, मैं देख कर आता हूँ तिजोरी वाला कमरा मंत्र का असर हुआ क्यों नहीं ? ” कुलीन ने कहा। 

 

कुलीन तिजोरी वाले कमरे जाता है और आ कर देखता है कि तिजोरी है ही नहीं, तिजोरी गायब है, यह देख कर कुलीन की मनोदशा पागल जैसी हो जाती है, वह जमीन में लेट कर जोर जोर से रोने लगता है। 

 

“ हाऐ... मैं लुट गया मैं बर्बाद हो गया, मेरी इज्जत लुट गई, हेंएऐऐ । ” रोते हुए कुलीन ने कहा। 

 

  रोने की आवाज सुन कर टूटी वहीं कुलीन के पास आ जाती है । 

 

“ भाई क्यों रो रहा है सुबह सुबह, रात को भूखा सोया था क्या, भूख  लग रही क्या ? ” टूटी ने कहा । 

“ अरे टूटी मैं टूट गया मैं लुट गया मैं बर्बाद हो गया , झोपटलाल तिजोरी ले कर भाग गया । ” रोते हुए कुलीन ने कहा । 

“ भाई तिजोरी की क्या चिंता करते हो, ले जाने दो । ” टूटी ने कहा । 

“ टूटी तेरी अक्ल टूट गई क्या, उसमें पैसे थे जेवर थे। ” कुलीन ने कहा। 

“ भाई तू ऊपर चल मेरे कमरे में । ” टूटी ने कहा । 

 

टूटी और कुलीन ऊपर आते हैं, टूटी कुलीन को अपने कमरे में अलमारी में सुरक्षित रखे जेवर और पैसे दिखाती हैं । 

 

“ देख ले भाई सब जेवर पैसे सुरक्षित रखे हुए हैं, वह तो सिर्फ तिजोरी ले गया। ” टूटी ने कहा। 

“ टूटी अब मेरी जान में प्राण आए लेकिन यह कमाल हुआ कैसे ? ” कुलीन ने पूछा। 

“ भाई मैं तो पहले ही समझ गई थी कि झोपटलाल के वोट में खोट है, वह वोट देगा पर नोट लेगा, मैं झोपटलाल से पहले कमरे में आई तिजोरी से जेवर पैसे निकाल कर और इनके बराबर ही वजन के कपड़े रख दिए ताकि उसे शक ना हो कि तिजोरी खाली है, फिर मैं तिजोरी में ताला लगा कर अपने कमरे में आ गई। ” टूटी ने कहा। 

“ वा टूटी वा तुम्हारी जितनी तारीफ करूँ कम है, पहली बार तुम अपना टूटा हुआ दिमाग सही इस्तेमाल किया। ” कुलीन ने कहा। 

“ भाई मेरा नाम टूटी है लेकिन दिमाग नहीं टूटा तुम्हारी तरह, अब जा मम्मी पापा को खोल दो और उन्हें आज से सुबह की सैर पर भेजा करो , हो सकता है सुबह सुबह की ताजी हवा से मम्मी पापा में टहलते टहलते प्यार हो जाए। ” टूटी ने कहा। 

“ जो आज्ञा मेरी बहना, ये अच्छा आयडिया है पहले क्यों नहीं सूझा ? ” कुलीन ने कहा। 

“ जब सूझा तब सूझा अब सूझा तो अब सूझा, कम से कम सूझा तो है तुम्हें तो कभी कुछ नहीं सूझता, अब जाओ। ” टूटी ने कहा। 

 

कुलीन जा कर कुलवंता और लाजवंती को खोल देता है और उन्हें बाहर के दरवाजे से बाहर निकलता है। 

 

“ मम्मी पापा जाओ सुबह की सैर कर आओ, जब तक हम तुम्हारे लिए नाश्ता तैयार करते है। ” कुलीन ने कहा। 

“ अरे ओ लज्जो आज तो बना बनाया नाश्ता मिलेगा, चल घूम कर आते है। ” कुलवंता ने कहा। 

“ मेरा नाम लज्जो नहीं लाजवंती है समझे। ” लाजवंती ने कहा। 

“ अरे भाग्यवान मैंने तो प्यार से बोला। ” कुलवंता ने कहा। 

“ ऐसी की तेसी तेरे प्यार की, अब चलो। ” लाजवंती ने कहा। 

 

कुलवंता और लाजवंती लड़ते हुए घर से बहार निकल जाते हैं, दोनों घूमने जाते हैं। कुलीन किचन में चला जाता है। 

कुलवंता और लाजवंती टहलते हुए काफी आगे निकल आते हैं। 

 

“ कितना अच्छा लग रहा है घूमने में। ” कुलवंता ने कहा। 

“ अच्छा तो लगेगा ही, जिंदगी में पहली बार घर से बाहर जो निकले हो। ” लाजवंती ने कहा। 

“ पहली बार नहीं दूसरी बार, पहली बार तब निकला था जब घोड़ी पर बैठ कर गधी लेने गया था। ” कुलवंता ने कहा। 

“ तो अब कहाँ है तुम्हारी गधी। ” लाजवंती ने पूछा।

“ मेरे साथ ही रहती है अभी भी मेरे साथ है। ” कुलवंता ने कहा।

“ मतलब तू मुझ से गधी कह रहा है। ” गुस्से में लाजवंती ने कहा। 

“ तुम कहो तो घोड़ी कह दूँ। ” कुलवंता ने कहा। 

“ अब मैं तुझे नहीं छोडूगी गधा खच्चर। ” लाजवंती ने कहा। 

“ तू मुझे छोड़ेगी नहीं मैं तुझे छोडूगा नही, चल फिर पकड़म पकड़ी हो जाए। ” कुलवंता ने कहा। 

 

कुलवंता और लाजवंती वहीं लड़ने लगते हैं और एक दूसरे को मारते पीटते अपने घर तक आ जाते हैं, दरवाजा खुला हुआ है दोनों लड़ते हुए घर के अंदर गिरते है फिर उठ कर लड़ने लगते हैं। कुलीन और टूटी किचन में नाश्ता बनाते हैं, कुलवंता लाजवंती की लड़ने की आवाज सुन कर कुलीन और टूटी बाहर आते हैं और कुलवंता लाजवंती को लड़ता हुआ देखते हैं। 

 

“ टूटी तुम्हारा आयडिया तो टूट कर चुरमुरा गया है। ” कुलीन ने कहा। 

“ इन दोनों का कुछ नहीं हो सकता है। ” टूटी ने कहा। 

 

कुलीन और टूटी नाश्ता बना कर और नाश्ता करके घर से निकल जाते हैं। कुलवंता और लाजवंती लड़ते रहते हैं। 

कुलीन चम्पा के पास आता है और टूटी गोलू के पास आती है, मिलने के लिए । 

 

 

कुलीन चम्पा टूटी और गोलू की काॅलेज की पढ़ाई खत्म हो जाती है, कुछ महीनों बाद कुलीन और गोलू एक बड़ी कंपनी में अच्छे वेतन पर नौकरी करने लगते है। 

कुछ दिन बाद कुलीन और चम्पा शादी करने का फैसला करते हैं । टूटी और गोलू भी शादी करने का फैसला करते हैं। एक दिन कुलीन और चम्पा, गोलू और टूटी मंदिर में जा कर शादी कर लेते है। 

 

शाम का समय हो रहा है, कुलवंता और लाजवंती अपने घर में लड़ रहे हैं, बाहर का दरवाजा खुला हुआ है, दोनों इसी बात पर लड़ रहे हैं कि दरवाजा कौन बंद करे, इतने में टूटी और गोलू घर के अंदर आते है। 

 

“ पापा मम्मी लड़ना बंद करो और हमें आशीर्वाद दीजिए। ” गोलू के साथ अंदर आकर टूटी ने कहा। 

“ आशीर्वाद कहाँ से दूँ मेरे पास नहीं है। ” कुलवंता ने कहा। 

“ देख लो कहीं घर में रखा हो तो उठा लो। ” लाजवंती ने कहा। 

“ अरे तुम दोनों लड़ाई बंद कर के मेरी ओर देखो। ” टूटी ने कहा। 

 

कुलवंता और लाजवंती लड़ाई बंद करके टूटी की ओर देखते हैं। देखते हैं कि टूटी दुल्हन का जोड़ा पहने दुल्हन बनी खड़ी है, और उसके साथ एक लड़का दूल्हा बना खड़ा है। 

 

“ ये तुम ने दुल्हन जैसा वेशभूषा क्यों बना लिया? और तुम्हारे साथ ये नमूना कौन है ? ” कुलवंता ने पूछा। 

“ ये मेरा बॉयफ्रेंड गोलू है, हम एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं इसलिए हम ने शादी कर ली, हमें आशीर्वाद दीजिए। ” टूटी ने कहा। 

“ हमें भी आशीर्वाद दीजिए हम ने भी शादी कर ली चम्पा के साथ। ” चम्पा के साथ अंदर आते हुए कुलीन ने कहा। 

 

कुलीन चम्पा का हाथ पकड़ कर उसके साथ अंदर आ जाता है। अंदर आकर कुलीन और चम्पा कुलवंता और लाजवंती के पैर छूते हैं, टूटी और गोलू भी पैर छूते हैं। 

 

“ मम्मी तुम मेरे साथ चलो और पापा तुम यहीं रहो ताकि तुम दोनों में लड़ाई ना हो सके। ” टूटी ने कहा। 

“ बिल्कुल ले जा इसे मेरी ओर से दहेज में। ” कुलवंता ने कहा।

“ चल बेटी अब इस घर में हम एक पल भी नहीं रूकेगे। ” लाजवंती ने कहा। 

“ चलो मम्मी। ” टूटी ने कहा। 

 

टूटी और गोलू के साथ लाजवंती चली जाती है। कुलीन जाकर दरवाजा बंद कर देता है। 

 

“ पापा तुम यहीं मेरे साथ रहोगे अब लड़ाई की जड़ खत्म। ” कुलीन ने कहा। 

“ हाँ, लड़ाई की जड़ तो वो थी मैं तो बस तना हूँ। ” कुलवंता ने कहा। 

“ अब ज्यादा मत तनना वरना तान कर पंखे से लटका दूँगी। ” चम्पा ने कहा 

 

कह कर चम्पा कुलीन के साथ ऊपर उसके कमरे में चली जाती है, कुलवंता देखता रह जाता है। 

 

“ बाप रे ये तो बहुत तीखी मिर्ची है। ” कुलवंता ने कहा। 

 

« तीन महीने बाद » 

टूटी अपने पति गोलू के साथ बहुत प्यार से रहती है, लाजवंती भी बड़े आराम से उनके घर रहती है। टूटी गोलू और लाजवंती तीनों बाते करते हुए एक साथ बैठ कर खाना खा रहे हैं। 

 

“ टूटी मुझे अब तुम्हारे पापा की बहुत याद आने लगी है, तीन महीने हो गए मिलने का बहुत मन कर रहा है। ” लाजवंती ने कहा। 

“ वा मम्मी बड़ा प्यार उमड़ रहा है पापा पर, आप ने तो एक एक दिन गिन लिए। ” टूटी ने कहा। 

“ तीन महीने हो गए बिना लड़े, लड़ने का मन कर रहा है लड़ने के लिए जाना है। ” लाजवंती ने कहा। 

“ मम्मी तुम्हें जाना है तो जाओ, अभी निकल जाओ वैसे भी मैं तुम्हें भगाने के बारे में ही सोच रहा था। ” गोलू ने कहा। 

“ तुम्हें क्या दिक्कत है मेरी मम्मी से ? ” टूटी ने कहा। 

“ तेरी मम्मी काम की ना काज की बड़ बड़ आवाज की आठ दस रोटियाँ खाती मुफत के अनाज की। ” गोलू ने कहा। 

“ अब इस घर में, मैं एक पल भी नहीं रुकूगी मेरा अपमान हुआ है, चल टूटी। ” लाजवंती ने कहा। 

“ मम्मी मैं ये घर छोड़ कर नहीं जा सकती ये मेरे पति का घर है। ” टूटी ने कहा। 

“ तू यहीं मर मैं चली, अब मैं यहाँ थूकने भी नहीं आऊँगी, थू...। ” लाजवंती ने कहा। 

 

लाजवंती वहाँ से चली जाती है। 

 

लाजवंती कुलवंता के घर के बाहर आ जाती है, दरवाजा बंद रहता है वह घंटी बजाती है, चम्पा आकर दरवाजा खोल देती है, लाजवंती अंदर आने लगती है चम्पा उसे रोक देती है। 

 

“ कहाँ घुसी जा रही हो, कौन हो तुम ? ” चम्पा ने कहा। 

“ तुम्हारी याददाश्त में बिल्कुल जोर नहीं है बहुत कमजोर है, मैं लाजवंती तुम्हारी सास हूँ अपने घर आई हूँ अपने पति से मिलने। ” लाजवंती ने कहा। 

“ आछे दिन पाछे गए तब किया नहीं प्रेम, अब पछताए होत का जब निकल गया टेम, अब बड़ा प्यार आ रहा है अपने पति पर जाओ इस घर में तुम्हारी अब कोई जगह नहीं। ” चम्पा ने कहा। 

 

फिर चम्पा दरवाजा बंद कर लेती है, लाजवंती थोड़ी देर खड़ी रहती है फिर वहाँ से चली जाती है। 

अंदर कुलवंता और कुलीन खाना खा रहे हैं, चम्पा भी दरवाजा बंद कर के वहीं आ जाती है। 

 

“ कौन था चम्पा ? ” कुलीन ने पूछा। 

“ था नहीं थी तुम्हारी मम्मी थी, मैं ने उसे भगा दिया। ” चम्पा ने कहा। 

“ क्यों भगाया ? ये मेरा घर है, कुलीन मुझे तुम्हारी मम्मी से अभी मिलना है, तुम मुझे टूटी के घर छोड़ दो। ” कुलवंता ने कहा। 

“ पापा मुझे टाइम नहीं है, मैं आॅफिस के लिए लेट हो रहा हूँ, ये लो कार्ड इस में टूटी के घर का पता लिखा है आप खुद चले जाइए। ” कार्ड देते हुए कुलीन कहा। 

“ ठीक है, मैं चला जाऊँगा। ” हाथ में कार्ड लेकर कुलवंता ने कहा। 

 

कुलवंता लोगों से पता पूछता हुआ, परेशान होता हुआ टूटी के घर पहुँच जाता है, घंटी बजाता गोलू दरवाजा खोल देता कुलवंता सीधे घर के अंदर जाता है, गोलू उसे रोक लेता है। 

 

“ अंदर कहाँ घुसते जा रहे हो। ” गोलू ने कहा। 

“ मैं लाजवंती से मिलने आया हूँ, मैं तुम्हारा ससुर कुलवंता हूँ क्या तुम ने मुझे पहचाना नहीं। ” कुलवंता ने कहा। 

“ कुलवंता जी लाजवंती को मैं ने घर से निकाल दिया, अब वो यहाँ नहीं रहती तुम भी जाओ यहाँ से। ” गोलू ने कहा। 

“ मुझे उसकी बहुत याद आ रही है। ” कुलवंता ने कहा। 

“ आछे दिन पाछे गए तब किया नहीं प्रेम , अब पछताए होत का जब खत्म हो गया गेम। ” गोलू ने कहा। 

 

गोलू दरवाजा बंद कर लेता है, कुलवंता वहाँ से चला जाता है।

 

कुलवंता वापस अपने घर आ जाता है, अंदर जाता है तो देखता है कि कुलीन चम्पा और वकील बैठे हुए हैं, वकील हाथ में कागज लिए हुए है। 

 

“ आइए कुलवंता जी मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। ” हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए वकील ने कहा। 

“ बताइए वकील साहब क्या बात है, कैसे आना हुआ ? ” कुलवंता ने पूछा। 

“ कुलवंता जी आप इस कागज पर जहाँ जहाँ मैं बताऊँ अंगूठा लगा दीजिए। ” कागज देकर वकील ने कहा। 

“ वकील साहब मैं अनपढ़ आदमी हूँ, मुझे बताओ ये क्या है ?” कागज हाथ में लेकर कुलवंता ने कहा। 

“ अरे कुलवंता जी आप पहले अंगूठा लगा दीजिए, मैं बाद में आप को सब विस्तार से बताता हूँ , मैं आप का खानदानी वकील हूँ आप के साथ धोखा थोड़ी करूंगा, क्या आप को मुझ पर भरोसा नहीं है। ” वकील ने कहा। 

“ ठीक है वकील साहब मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। ” कुलवंता ने कहा। 

 

फिर कुलवंता, जहाँ जहाँ वकील बता देता है, वहाँ वहाँ अंगूठा लगा देता है और कागज वकील को दे देता है। 

 

“ कुलवंता जी यह आप की वसीयत है इसमें आप ने अपनी सारी प्रौपर्टी अपने पुत्र कुलीन के नाम कर दी है। ” वकील ने कहा। 

 

फिर वकील कुलीन को वसीयत दे देता है। 

 

“ कुलीन मैं ने तुम्हारा काम कर दिया अब मैं चलता हूँ। ” वकील ने कहा। 

“ धन्यवाद वकील साहब। ” हाथ जोड़कर कुलीन ने कहा।

 

वकील चला जाता है। 

 

“ कुलीन तुम ने वकील के साथ मिलकर मुझे धोखा दिया है, मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा। ” कुलवंता ने कहा। 

 

चम्पा और कुलीन, कुलवंता को धक्का मारते हुए अंदर से बाहर के दरवाजे तक लाते है, फिर धक्का मार कर दरवाजे से बाहर निकाल देते है। 

 

“ अब ये घर तुम्हारा नहीं है, अब इस घर में तुम्हारा कुछ भी नहीं है, अब लौट कर यहाँ मत आना। ” चम्पा ने कहा। 

 

फिर चम्पा दरवाजा बंद कर देती है, कुलवंता देखता रह जाता है और रोता हुआ वहाँ से चला जाता है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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