बिछड़े तब जाने भूले मन पछताने
अनोखी प्रेम कथा
रामजी दौदेरिया
अध्याय ६
लाजवंती और कुलवंता यहाँ वहाँ अलग अलग भटकते रहते हैं, दोनों को भटकते हुए चार दिन बीत जाते हैं, भूख प्यास से दोनों की हालत खराब हो जाती हैं।
भटकते हुए कुलवंता एक होटल पर आ जाता है, होटल वाले से कुलवंता खाने के लिए कुछ माँगता है।
“ भाई मैं चार दिन से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो। ” हाथ जोड़ कर कुलवंता ने कहा ।
“ तुम्हारे पास पैसे है । ” कुलवंता की हालत देखते हुए होटल वाले ने कहा ।
“ मेरे पास पैसे नहीं है । ” धीमी आवाज में कुलवंता ने कहा ।
“ जाओ यहाँ से बिना पैसे के यहाँ कुछ नहीं मिलता । ” चिल्ला कर होटल वाले ने कहा ।
“ अरे भाई जरा सा ही कुछ दे दो वासा कूसा वही खा कर चला जाऊँगा । ” हाथ जोड़ कर कुलवंता ने कहा ।
“ जा रे भिखारी, पता नहीं कहाँ कहाँ से आ जाते हैं, कुछ नहीं है मेरे पास फ्री में देने के लिए । ” होटल वाले ने कहा ।
कुलवंता होटल वाले से हाथ जोड़ कर बार बार कहता है, रोते हुए विनती करता है। लेकिन होटल वाले को कुलवंता पर दया नहीं आती। वह कुलवंता को धक्के मार कर अपने होटल से बाहर निकाल देता है। कुलवंता थोड़ी दूर चलता है फिर एक सड़क किनारे चक्कर खा कर गिर जाता है, कुलवंता सड़क किनारे पड़ा रहता है। बहुत सारे वाहन वहां से गुजरते हैं , लेकिन एक बाइक आ कर कुलवंता के पास रुक जाती है । वह लड़का , जो बाइक चला रहा है , वह बाइक से उतर कर , बिना अपना हेलमेट उतारे कुलवंता के पास आता है और पूछता है कि आप सड़क किनारे क्यों पड़े हुए हो , कुलवंता उस लड़के को होटल की सारी बात बताता है । वह लड़का वापस अपनी बाइक के पास आता है , और बाइक की डिग्गी को खोल कर खाने का टिफिन और पानी की बोतल निकाल कर कुलवंता के पास आता है और कुलवंता को खाना खिला कर पानी पिला कर वह लड़का कहता है - “ अंकल जी आप मेरे साथ चलिए मैं आप को एक वृद्धा आश्रम में छोड़ देता हूं वहां आप को खाने के लिए और रहने के लिए मुक्त में मिलेगा । ”
“ ठीक है बेटा । ” कुलवंता ने कहा ।
वह लड़का कुलवंता को अपनी बाइक पर बैठा कर वहां से चला जाता है और कुलवंता को एक वृद्धा आश्रम में छोड़ देता है । लाजवंती भी उसी वृद्धा आश्रम में रहती है । उसके साथ भी कुलवंता की तरह होटल वाली घटना होती है । लाजवंती को भी एक लड़का वृद्धा आश्रम छोड़ गया था ।
उस वृद्धा आश्रम में बहुत सारे वृद्ध महिलाएं और पुरुष रहते हैं । सब मिलजुल कर रहते हैं , एक दूसरे से बातें करते हैं , प्यार से रहते है , लेकिन महिलाएं अलग कमरों में और पुरुष अलग कमरों में रहते हैं । लेकिन जो पति पत्नी होते हैं वो एक साथ रहते हैं । कुलवंता और लाजवंती उसी वृद्धा आश्रम में अलग अलग रहते हैं , क्यों कि उन्हें एक दूसरे के बारे में पता नहीं रहता है ।
वृद्धा आश्रम में कुलवंता और लाजवंती को रहते हुए तीन महीने बीत जाते हैं, दोनों को अलग हुए ६ महीने बीत जाते हैं दोनों को अपनी अपनी गलतियों का एहसास होने लगता है ,अब दोनों को एक दूसरे के प्रति प्यार का एहसास होता है । लाजवंती सोचती काश मैं ने कुलवंता से प्यार किया होता , कुलवंता भी सोचता है काश मैं ने लाजवंती से प्यार किया होता । अब दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है , दोनों एक दूसरे को बहुत याद करते हैं ।
बीस दिन बाद कुलवंता और लाजवंती वृद्धा आश्रम में अचानक आमने सामने मिल जाते हैं , दोनों एक दूसरे को काफी देर तक देखते हैं , इसके बाद एक दूसरे के करीब आते हैं , फिर दोनों में मुलाकात होती है ।
“ लाजवंती तुम यहां , वृद्धा आश्रम में कैसे ? ” कुलवंता ने कहा ।
” मैं सड़क किनारे भूखी पड़ी हुई थी , एक लड़का मुझे यहां छोड़ गया , और आप यहां कैसे आए ? ” लाजवंती ने कहा ।
फिर कुलवंता अपने बारे में बताता है , वह यह भी बताता है कि मुझे किस तरह घर से निकाल दिया गया ।
” कुलीन और टूटी हमारे खुद के बच्चे होते तो हमें घर से नहीं निकालते , उन्होंने साबित कर दिया कि अपनी संतान अपनी ही होती है और पराई पराई ही होती है । ” कुलवंता की बात सुन कर लाजवंती ने कहा ।
“ काश उस दिन हम लड़ने कि जगह प्यार करते तो आज हमारी भी औलाद होती । ” कुलवंता ने कहा ।
कुलवंता और लाजवंती रोते हुए गले लग जाते हैं और अपना बीता हुआ एक दिन , सुहागरात का दिन याद करने लगते है ...
सुहागरात का कमरा खूब सजा हुआ है , पलंग पर लाजवंती बड़ा सा घूंघट डाले बैठी है , कुलवंता बड़े प्यार से धीरे धीरे लाजवंती का घूंघट उठाता है , कुलवंता घूंघट उठा कर थोड़ी देर लाजवंती का चेहरा देखता है ।
“ ओं ... मैं ने समझा था संगमरमर की मूरत , तेरी तो कोयले जैसी है सूरत।” चेहरा देखते हुए कुलवंता ने कहा।
“ ओं ... मैं ने तुझे समझा था सुंदर , तू तो निकला बंदर , कौवा जैसा काला , शाला । ” लाजवंती ने कहा ।
“ मैं तेरा पति हूं , तू ने मुझे काला , शाला कहा । ” कुलवंता ने कहा ।
” अवे अक्ल के अंधे , शक्ल के शक्लगदे , तुझे मेरी कोयले जैसी सूरत दिखती है । ” चिल्ला कर लाजवंती ने कहा ।
” तो तू कौन सी परी है , बड़ी विश्व सुन्दरी है । ” हँसते हुए कुलवंता ने कहा ।
“ तो तू कौन सा परा , बड़ा विश्व सुन्दरा है , जा मुझे नहीं मनानी तेरे साथ सुहागरात । ” लाजवंती ने कहा ।
” जा रे तू जा , मुझे नहीं करनी तेरे से बात । ” कुलवंता ने कहा ।
“ हमारी संस्कृति में तलाक नहीं होता , नहीं तो मैं तुम से अभी अलग हो जाती । ” लाजवंती ने कहा ।
“ यही तो मेरी मजबूरी है । ” कुलवंता ने कहा ।
फिर कुलवंता और लाजवंती में मारपीट शुरू हो जाती हैं ।
कुलवंता और लाजवंती याद कर रहे थे , दोनों रोते हुए गले लग जाते हैं ।
” अब हम कभी नहीं लड़ेंगे हम एक साथ प्यार से रहेंगे । ” रोती हुई लाजवंती ने कहा ।
“ अब हम एक ही कमरे में प्यार से रहेंगे , चलो हम वृद्धा आश्रम के मैनेजर से बात करते हैं । ” कुलवंता ने कहा ।
कुलवंता और लाजवंती मैनेजर के पास उस के चैम्बर में आते ।
“ आइए कुलवंता जी और लाजवंती जी । ” कुलवंता और लाजवंती को देखते हुए मैनेजर ने कहा ।
“ मैनेजर साहब हम पति पत्नी है और हम एक ही कमरे में साथ रहना चहेते हैं ।” अंदर आकर कुलवंता ने कहा ।
“ अब तुम दोनों इस वृद्धा आश्रम में नहीं रह सकते । ” मैनेजर ने कहा ।
“ पर क्यों ? हम से कोई भूल हुई है क्या साहब ? ” आश्चर्य से कुलवंता ने पूछा ।