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धूप

24 फरवरी 2016

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खिड़की ज्यों ही खुली कि आकर

अंदर झाँकी धूप!

आकर पसर गई सोफे पर

बाँकी-बाँकी धूप!

बैठ मजे़ से लगी पलटने

रंग-बिरंगे पन्ने,

पलट चुकी तो बोली, ‘आओ

चलो पकाएँ गन्ने!’

और पकाने लगी ईख को

फाँकी फाँकी धूप!


फिर वह रुककर एक मेड़ पर

उँगली पकड़ मटर की,

बातें करने लगी इस तरह

चने और अरहर की!

दाने-दाने पर हो जैसे

टाँकी टाँकी धूप!


बैठ गई क्यारी में ऐसे

बाँह पकड़ सरसों की,

बिछुड़ी हुई मिली हों जैसे

दो सखियाँ बरसों की!

घूम रही यों क्यारी क्यारी

डाँकी-डाँकी धूप!

-दामोदर अग्रवाल

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बड़ी शरम की बात

24 फरवरी 2016
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बड़ी शरम की बात है बिजली,बड़ी शरम की बात!जब देखो गुल हो जाती होओढ़ के कंबल सो जाती हो।नहीं देखती हो यह दिन है, या यह काली रात है बिजलीबड़ी शरम की बात,बड़ी शरम की बात है बिजली, बड़ी शरम की बात!हम गाना गाते होते हैं,या खाना खाते होते हैं,पता नहीं चलता थाली में, किधर दाल औ भात, है बिजलीबड़ी शरम की बात,

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एक पैसा

24 फरवरी 2016
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सड़क पर मिले जो मुझे एक पैसा।मैं झट से उसे अपनी मुट्ठी में ले लूँ,मैं झट से उसे अपने भाई को दे दूँ।मैं झट से उसे अपनी माँ को दिखाऊँ।मैं सबको चलूँ ले के मेला दिखाऊँ।मैं राजा बनूँ और हाथी पे घूमूँ,मैं बागों में जाऊँ और फूलों को चूमूँ।मैं सेना से कह दूँ कि कर दे चढ़ाई,मैं दुश्मन से कह दूँ कि ले मौत आई।

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कोई ला के मुझे दे!

24 फरवरी 2016
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कुछ रंग भरे फूलकुछ खट्टे-मीठे फल,थोड़ी बाँसुरी की धुनथोड़ा जमुना का जलकोई ला के मुझे दे!एक सोना जड़ा दिनएक रूपों भरी रात,एक फूलों भरा गीतएक गीतों भरी बात-कोई ला के मुझे दे!एक छाता छाँव काएक धूप की घड़ी,एक बादलों का कोटएक दूब की छड़ी-कोई ला के मुझे दे!एक छुट्टी वाला दिनएक अच्छी-सी किताब,एक मीठा-सा सव

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धूप

24 फरवरी 2016
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खिड़की ज्यों ही खुली कि आकरअंदर झाँकी धूप!आकर पसर गई सोफे परबाँकी-बाँकी धूप!बैठ मजे़ से लगी पलटनेरंग-बिरंगे पन्ने,पलट चुकी तो बोली, ‘आओचलो पकाएँ गन्ने!’और पकाने लगी ईख कोफाँकी फाँकी धूप!फिर वह रुककर एक मेड़ परउँगली पकड़ मटर की,बातें करने लगी इस तरहचने और अरहर की!दाने-दाने पर हो जैसेटाँकी टाँकी धूप!ब

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तारे निकले हैं

24 फरवरी 2016
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घेर चाँद को चाँदी जैसे, तारे निकले हैं,आज इकट्ठे ही सारे के सारे निकले हैं!नीला-नीला आसमान कामहल बनाया है,हर तारा है कमरा, उसकोखूब सजाया है,खुली-खुली-सी खिड़की है, गलियारे निकले हैं!घेर चाँद को चाँदी जैसे, तारे निकले हैं।जैसे परियाँ आ जाती हैंकथा-कहानी में,झाँक रहे तारे वैसे हीनीचे पानी में,कमल खिले

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