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दो चेहरे

22 नवम्बर 2021

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सीन नंबर वन

 

सबसे पहले रफीक ने देखा था उस लोथड़े को मांस के, जो साफ तौर पर जाहिर था कि सुअर का था.. और देखते ही उसे उबकाई आई और वह उल्टी करने वजूखाने की तरफ भागा।

ज़ोहर का वक्त था, लोग नमाज पढ़ने आने को हुए थे कि यह हादसा हो गया। मस्जिद कस्बे के बाहरी इलाके में थी तो उतना लोगों की नजर में नहीं रहती थी। दीवारें भी खास ऊंची नहीं थीं.. बाहर से कोई शरारतन कुछ भी फेंक सकता था।

एकदम हंगामा मच गया.. नमाज़ किनारे हो गयी। मस्जिद के बाहर जमघट लग गया.. बाहर वाले भी आ जमे और चौं चौं शुरू हो गयी कि यह किया किसने। जाहिर है कि कोई मुसलमान तो करने से रहा.. किसी ने बताया, उसने कुछ पास के मुहल्ले के हिंदू लड़कों को संदिग्ध अवस्था में उधर भटकते देखा था।

फिर क्या था.. मुहल्ले के दबंग आजम ने फौरन लौंडे इकट्ठे किये और सबक सिखाने का एलान कर दिया। पास रहने वाले रिटायर्ड मास्टर दूबे जी ने समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें धकिया कर किनारे कर दिया गया।

हाॅकी, डंडे, छुपे हुए कट्टे लिये एक उत्साही भीड़, गुस्से से उबलती, नारे लगाती वहां से निकल ली.. सबसे पहले वे बाजार पंहुचे और तोड़फोड़ करते दुकानें बंद कराने लगे। पुलिस को खबर लगी तो वह बाजार की तरफ दौड़ी।

तब तक जिसे पता चला, वह उबल पड़ा.. समझदार किनारे ठेल दिये गये और जोश से भरे नासमझ उस मुहल्ले के लौंडों पे टूट पड़े, जिधर के लड़कों पे शक जाहिर किया गया था।

इस अंधाधुँध मार पिटाई में गोलीबारी की नौबत भी आ गयी, जिसमें एक हिंदू लड़के की मौत हो गयी।

अब वहां बजरंग दल, वीएचपी, एबीवीपी जैसे जितने भी हिंदुवादी संगठन थे.. वह भी हथियार ले कर सड़कों पर उतर आये।

शाम तक शहर जल उठा था.. नतीजे में कई कोख उजड़ गयीं, कई आंगन सूने हो गये, कई बहनों से भाई, बच्चों से पिता और मां बाप से औलाद छिन गयी.. बिना किसी कसूर के।

 

कर्फ्यू लग गया.. कई दिन लग गये हालात सामान्य होने में।

करोड़ों का नुकसान कारोबार में हुआ, लोग दूध सब्जी जैसी जरूरत की चीजों को तरस गये.. हालात काबू में आने के बाद जब पुलिस ने धड़ाधड़ गिरफ्तारियां की, तो सैकड़ों लोग कानून के शिकंजे में फंसे। उनके खिलाफ मुकदमे लिखे गये जिसका अजाब वे एक अरसे तक झेलेंगे।

सीन नंबर दो

जब रफीक वजूखाने में उल्टी कर रहा था, तब तक और भी कुछ लोगों ने वह मांस देख लिया था और सभी बाहर निकल आये थे और मस्जिद के बाहर चौं चौं होने लगी थी। आजम अपने चेलों के साथ जोर जोर से गरज रहा था।

यह देख मास्टर जी ने इशारे से पास रहने वाले ही कुछ हिंदू साथियों को बुलाया और मजमे में पंहुच गये। उनके पूछने पर आजम ने ऐसे गरजते हुए बताया जैसे मस्जिद में सुअर मास्टर साहब ने ही फेंका हो।

'किसी को देखा क्या इधर कुछ शक शुब्हे वाली हालत में?' उनके पूछने पर पास के मुहल्ले के कुछ हिंदू लड़कों के बारे में बताया गया, जो घंटा भर पहले उधर मंडराते देखे गये थे।

'क्यों इमाम साहब.. क्या होना चाहिये? आप समझदार हैं.. आगे आ कर बोलिये।' मास्टर साहब ने इमाम साहब को उकसाया।

'भई देखिये.. यह हरकत तो निहायत ही घटिया है, लेकिन हमने किसी को ऐसा करते देखा नहीं तो सीधे किसी पर इल्जाम लगाना भी ठीक नहीं।'

'पर इतना तो समझ सकते हैं कि जिसने भी यह किया है, आप लोगों को उकसाने के लिये किया है.. अगर आप गुस्से से आगबबूला हो कर आपा खो देंगे तो ऐसा जानबूझकर करने वाला तो जीत जायेगा। आप उसे हराना चाहते हैं या जिताना?'

'आपकी बात सही है मास्टर साहब.. गुस्से और जोश में होश खो कर हम किसी की साजिश का शिकार ही होंगे।'

'पहले हम फौरन पुलिस को बुलाते हैं और केस दर्ज कराते हैं। उन लड़कों को भी पकड़ा जायेगा और अगर यह हरकत उन्हीं की है, तो हम कोशिश करेंगे कि उन्हें सख्त सजा हो। हम सब आपके साथ हैं इस मामले में। पहले पुलिस बुलाते हैं, फिर मस्जिद साफ करते हैं।'

सभी बड़े बूढ़े सहमत हुए.. लेकिन आजम के नेतृत्व में जोश में होश खोने वाले नौजवान फिर भी बहके.. तब इमाम साहब ने उन्हें डपट दिया, 'अमां चुपो.. बड़े आये हो मजहब की हिफाजत करने वाले। पांच टाईम की नमाज तो पढ़ी नहीं जाती और सड़कों पर उतर कर मजहब की हिफाजत करोगे..'

लड़के कसमसा कर चुप रह गये। पुलिस बुला ली गयी.. और आसपास रहने वाले सभी हिंदू साथ ही लगे रहे कि जो भी दोषी है, उसे पकड़िये और सख्त कार्रवाई कीजिये.. नतीजे में शहर का एक संभावित दंगा टल गया।

कन्क्लूजन

यह दोनों सीन मेरी कल्पना हैं लेकिन सच व्यवहारिक हैं, जो आपके आसपास आपको जब तब देखने को मिल जायेंगे। भूमिकायें बदल जायेंगी..

मस्जिद की जगह मंदिर, मुसलमान की जगह हिंदू, सुअर की जगह गाय हो जायेगी। कहीं किसी पूजा स्थल की दीवार, चबूतरा, गेट तोड़ दिया जायेगा, कहीं मूर्ति.. कहीं पेशाबघर में भगवान के चित्र लगा दिये जायेंगे, कहीं गाय के मुंह में बम दगा दिया जायेगा।

मुझे पता है आप दोनों में से किस सीन को जिंदगी में उतारना पसंद करेंगे, लेकिन यह काफी नहीं.. जो नफरत का जहर हमारी नस्लों में बोया जा रहा है, वहां इतना काफी नहीं। आपको एक कदम आगे बढ़ना होगा.. ऐसे हर मौके पर, एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से, और लोगों को सही राह बतानी होगी। उन्हें सही सीन समझाना होगा। उन्हें गलत सीन के साईड इफेक्ट समझाने होंगे.. हम निर्लिप्त तटस्थ रह कर अपने समाज को टूटते, फूटते, नष्ट होते नहीं देख सकते।
 

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