किसी फिल्म की कहानी को आगे हास्य के रूप में परोसा जाये तो वों भी कम मनोरंजक नहीं होगी.. प्रस्तुत किताब एक ऐसी ही कल्पना है, जिसमे अलग-अलग कई हास्य-व्यंग्य लिए गये हैं...
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<p>आइये आइये ठाकुर साहब.. कहिये क्या सेवा कर सकता हूँ?</p> <p>दो लफंगे हैं आपकी जेल में, जय और वीरू.
<p>(एक बार की बात है— संसद चल नहीं पा रही थी, गतिरोध अपने चरम पर था और ऐसे में कोई और रास्ता न निकलत
<p><br> हे डूड.. कैसन पधारे?</p> <p>जी ख्वाजा साहब.. आपको तो पता है कि बुढ़ापा कुंडी खटखटा रहा है और
<p>पुत्र अर्जुन। <br> जी गुरू द्रोण... <br> कलियुग से तुम्हारे लिये एक मेल आई है, हमारे अकाउंट में।
<p>अरे बुर्राग... सुनो-सुनो <br> अरे जिबरील मामू आप भोराहरे भोराहरे... खैरियत तो है। <br> खैरियत ही
<p>मोहे पिज्जाहट में चमनलाल छेड़ गयो रे.. मोहे पिज्जाहट में। <br> बेटा यह पुलिस स्टेशन है, तुम यहां क
<p>अरे भाई साहब.. अंदर आ जायें का। <br> अंदर तो आ गये हो गंवार और कितना अंदर आओगे.. दिल में बसा के र