सोशल मीडिया के सहारे दिमाग में भरते जहर का शिकार हो कर कैसे कोई गंदी सियासत का एक मोहरा बन कर अपनी जिंदगी खराब कर लेता है, यह उससे बेहतर कौन जान सकता था जिसने अपना सुनहरा भविष्य वक्ती जज्बात के हवाले हो कर खुद अपने हाथों से बर्बाद कर डाला था।
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<div>हिलाने पर उसकी चेतना को झटका सा लगा... दिमाग तक अस्पष्ट से शब्द पहुंचे। नींद से बोझिल दिमाग पहल
<p>प्रमोद बाबू को तमाशे की खबर पहले ही मिल चुकी थी। बार-बार चेहरे का पसीना पोंछते तेज कदमों से घर पं
<p>नसीर उसे कालेज से जानता था... अजय उसका खास दोस्त तो नहीं था पर बोलचाल तो थी ही और चूँकि उसे अजय क
<p>तिवारी जी साइकिल संभाले गली से निकले ही थे कि सत्तू सामने आ गया।</p> <p>"आम-आम तिवाई चाचा।" कहने
<p>बरेठे को अब अपनी हिमाकत का अफसोस हो रहा था... रात दस बजे ससुरी चाय प्यास लगना इतना खतरनाक भी हो स
<p>मुदित खामोशी से उसे देख रहा था ड्राइव करते... एक हाथ स्टेयरिंग पे और दूसरे से फोन संभाले शायद बच्
<p>कामिल भाई को जितनी बेबसी इस वक्त महसूस हो रही थी, उतनी ही झुंझलाहट और पछतावा भी। जिस वक्त चारबाग
<p>"बोल,” थानेदार ने फिर से घुड़की दी और मटरू कुछ और भी सिमट गया।</p> <p>“साहेब, हम निर्दोष हैं, हमका