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डा हिमेन्दर बाली हिम
हर तरफ़ दहशत और तन्हाइ है।छिछले हैं रिश्ते पर घातों की गहराई है।
बदल दिए रास्ते जमाने ने मेरी दुश्वारियों को देखकर। देख चुका हूँ हर इन्सान की मासूमियत टटोलकर।।
काव्य संग्रह प्रभाष की सूचना बारे
सिलसिलेजिंदगीकेमुसलसलचलतेरहेफूलखुशियोंकेहरमौसममेखिलतेरहेसिलसिलेजिंदगीकेयूँहीचलतेरहेसिलसिलेजसिलेजिन्दगि
इरफाक आपस में बेशुमार रहे। लाख हो शिकवे पर गले मिलने की गुन्जाइश रहे।
कभी धूप कभी छान्व है जिन्दगी,आज गहन रात तो कल उजला सवेरा है जिन्दगी।
इस दौर में जमाने के अजब रन्ग देखिए।नापाक इरादों की फैली चहुँ ओर दुर्गंध देखिए।। बेखौफ घूम रहे दहशत के दरिन्दे।झूठ के हाथों सच्च की दम तोड़ती जन्ग देखिए।।
मा तुम केवल श्रद्धा हो,तपस्वी का तेज,करुणा की मूर्ति,आकाश जैसी अनन्त,शब्दों में ओन्कार हो। कविता संग्रह से !पर्बाश की प्रतियां भेजी थी पर्चार के लिए।
छन्टे के बादल आएगा सवेरा। साहस का ले सम्भल मिट जाएगा अन्धेरा।
वक्त की हवाओं में जीवन निरन्तर बहता रहा। अपनों के हाथों नाहक वो जुल्म सहता रहा।
काले धन को रोकने के प्रयास सराहनीय है।परन्तु इसके परिणाम स्वरूप देश आर्थिक समानता का आविर्भाव होगा।
फजब परिवर्तन का आविर्भाव होता है। जर्जरित परम्पराओं का बिखराव होता है।। उग उठती हैं सुफल की फसलें। चहुँ ओर निनादित सद्भाव होता है।। सिंहासन डोल उठते हैं नरपिशाचो के। नई सोच का जब सिन्हनाद होता है।।
उम्मीदें ये तमन्नाए और ये मन्जिलो के दायरे,यही हैं जीवन के सम्भव और सहारे।
बयार परिवर्तन की चली देश कतार में है। सह मुश्किलें अथाह जन नई सुबह के इन्तजार में है।।
हर तरफ दहशत के घनेरे साए हैं। कौन है वो जिसने सुकून पर ये जुल्म ढाए है।।तनि हैं तलवारें राजनीति की चहुँ ओर।कहाँ है वो जिन्होंने परिवर्तन के दायित्व उठाए हैं।।
कड़ी धूप में तपती रेत पर चलते हुए वो मुश्किलों के दिन। खेत खलिहान में पसीने में नहाई जिन्दगी के थकान भरे दिन।। बन्जर जमीन पर वीरानी के उग आए झन्खाड। कौन चुरा ले गया मेरे घर से रोनक भरे दिन।।
नव वर्ष का आगमन मन्गल हो।जीवन में खुशियों का वर्षण हो।।मन के उपवन में खिले फूल उम्मीदों के। दुख भरे दिनों का सदा अवसान हो।। नव वर्ष २०१७ की शुभ कामनाएं
हादसों से लोग अब डरते नहीं। अनदेखे कामों। से गुरेज करते नहीं।।
जब जिन्दगी का सच्चाई से सामना होगा। तभी सम्भव मन्जिल पर पहुंचना होगा।।