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माता

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हे! जगजननी करुणामयी माता द्वार तुम्हारे आई हूँ। अक्षत-रोली, धूप-दीप नहींबस,श्रद्धा सुमन संग लाई हूँ। अपने अश्रु की धारा सेतेरे चरण पखारुँगी।प्रेम-समर्पण की माला सेतेरी छवि संवारुँगी। पूजा की मैं रीत ना जानू जप-तप का नहीं कोई ज्ञान।अर्पण तुझको तन-मन मातामैं ना जानू विधि-

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विधाता छन्द1222 1222 1222 1222सुनो माता महागौरी, यही अरदास लाया हूँ।मिले दर्शन मुझे मैया, लिए इक आस आया हूँ।करूँ गुणगान मैं तेरा, चढ़ाऊँ पुष्प माला माँ।करो उद्धार अब मेरा, कृपा कर दृष्टि डालो माँ।तुम्हीं लक्ष्मी तुम्हीं दुर्गा, तुम्हीं तो मात! काली हो।दुखी जो द्वार पर आये, न जाए हाथ खाली वो।करे जो मा

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जय श्री कृष्ण मित्रो ... #हक़ीक़त ये भी है कि आज बच्चों के माता पिता बने रहने की बजाय उनके मित्र बनने की कोशिश करें ।अपनी मनमर्जी थोपने की बजाय उनकी खुशियों पर भी ध्यान दें तभी समाज को विकृति से बचाया जा सकता है ।बच्चों के साथ बैठना ,उन्हें सही संस्कार देना और घरों मे

दोस्तों बात छोटी जरूर है, मगर हमारी बड़ी समस्या को दूर करती है, मैं यहाँ बात कर रही हूँ बच्चों के माता-पिता की और उनके बच्चों के भविष्य की.हम अपने बच्चों के भविष्य (Future) को बनाने के लिए क्या-क्या प्रयास करते हैं, बहुत से सपने भी देखते है, पर हममें कई पेरेंट्स की यह

।। दूसरा तो दूसरा ही होता है।। संबंध तो वही है;जिसमें तोड़ने का विकल्प होता ही नहीं। रिश्ता तो वही है; जिसमें छोड़ने का विकल्प होता ही नहीं।।चलो बात करें, चलो कुछ बात करें;एकदम ही निजी रिश्ते की;एकदम ही अंतरंग रिश्ते की;एकदम ही पूरे पूरे व्यक्तिगत संबंध कीचलो बात करें, चलो कुछ बात करें।।( दूसरा से य

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हर इंसान हमेशा यही सोचता है कि अधिक मात्रा में ज्यादा से ज्यादा धन कैसे कमाया जाए, हालांकि बहुत से लोग हैं जो अधिक धन कमाने के लिए कठिन परिश्रम भी करते हैं| लेकिन अधिक मेहनत करने के बाद भी इतना पैसा इकट्ठा नहीं हो पाता जिससे कि वह अमीर बन जाए और वह अपने सपनों को पूरा कर स

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शहर के अस्पताल में अजय का उपचार चलते-चलते 15-16 दिन हो गएँ थे|लेकिन उसकी तबीयत में कोई सुधार देखने को मिल रहा था| आईसीयू वार्ड के सामने परेशान दीपक लगातार इधर से उधर चक्कर पर चक्कर लगा रहे थे |कभी बेचैनी में आसमान की तरफ दोनों हाथ जोड़ कर भगवान से अपने बेटे की जिन्दगी की भ

रात्रि का प्रथम पहर टिमटिमाते प्रकाश पुंजों से आलोकित अंबर, मानो भागीरथी की लहरों पे, असंख्य दीपों का समूह, पवन वेग से संघर्ष कर रहा हो। दिन भर की थकान गहन निद्रा मे परिणत हो स्वप्न लोक की सैर करा रही थी, और नव कल्पित आम्र-फूलों की सुगंध लिए हवा धीमे धीमे गा रही थी । कुछ

लाज बचा ले मेरे वीरक्यों वेदना शुन्य हुई क्यों जड़ चेतन हुआ शरीरअस्तित्व से वंचित हुआ कँहा खो गया शूरवीरनही सुनी क्या चीत्कार क्यों सोया है तेरा जमीरपुकार रही तुझे धरती माता लाज बचा ले मेरे वीर – १न ले पर ीक्षा अब मेरे धैर्य की बहुत हुआ अत्याचारसहनशीलता दे रही चुनौत

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