shabd-logo

"एक प्रेम पहेली" (अध्याय - २)

7 अगस्त 2023

13 बार देखा गया 13

मेरी मोहब्बत.... हां भले ही हमारी मोहब्बत किसी कारण वस आज हमसे दूर है पर बीते कल में तो ओ हमारी मोहब्बत ही है।


तो अब शुरू करना चाहेंगे "प्रेम एक पहेली" सारांश के द्वितीय अध्याय का आरंभ......


तो कहानी हम शुरू से शुरू नही करेंगे क्यूंकि कहानी हमारी और मुलाक़ात भी हमारी तो हम अपनी कहानी एक मुलाकात से शुरू करेंगे जो कि पूरी तरह से साज़िश की गई थीं उनके द्वारा, कि उनको हम उनके घर से उठाए अरे उठाने से गलत मत समझिएगा उठाने से हमारा तात्पर्य ई है कि उनको अपना बाइक पर बिठाए और पास के बाजार से उनको कुछ खरीदवाए बस, इतना ही।


तो ई सब प्लान कल के लिए बना था और बातें आज हो रही थीं अब का है कि अब प्लान जब बन गया है तो नींद कहा आने वाली थी पूरा रात चमकते चांद और टिमटिमाते तारो को देखते हुए यही सोचते रहे की क्या होगा कल फिर उनके बारे में सोचते हुवे आंख कब लगी और सुबह कब हुई पता ही नही चला,


फिर हम बिस्तर छोड़ खेतों कि तरफ निकल गए शारीरिक योगा के लिए और तब सूरज धरती की गोद में छिपा था अरे ई तो अब नही न समझाना पड़ेगा, अच्छा चलिए बता देते है का होता है कि जब सूर्य निकलता है तो लगता है कि जमीन की कोख से निकल रहा है तो बिल्कुल हमको भी यही फिलिंग आई थीं फिर हम अपना योग करके वापस लौटे और सूर्य के निकलने का इंतेजार, अब इंतेजार इसलिए कि किसी के द्वार पर हम इतना सुबह तो जा नही सकते तो जब तक सूरज निकलेगा हम खा पी भी लेंगे और हमारी मोहब्बत तैयार भी रहेंगी।


कुछ घंटों बाद हम काला शर्ट, सफेद पैंट, डिजिटल वॉच और ब्लैक चश्मा लगाए और बैठ गए भैया के पल्सर बाइक पर अरे फिर से आप लोग गुमराह हो रहे हैं गाड़ी हुक अकेली लिए है भईया नही है साथ हमारे, तो हम लिए बाइक और चल दिए अब हमारी मोहब्बत का घर हमारे घर से करीब 30 किमी दूर था और हमे मिलने की इतनी जल्दी की बाइक को 70 किमी/घंटा के रफ्तार से दौड़ने लगे और कुशल पूर्वक उनके गांव में पहुंचे फिर आई चेहरे जब हुआ उनका दीदार, अब हम उनके घर पहुंच चुके थे अब ओ नाश्ता लाई हम नाश्ता किए और उनकी मम्मी से बात करने के पश्चात उन्हें बाइक पर बिठाए और चल पड़े पास के बाजार की तरफ...


अब इत्तेफाक देखिए हमारी और उनकी मंजिल सेम थी हमे वाही से कपड़े लेने थे अब आप सोचेंगे हमे तो कोई काम नही था हां काम तो नही था पर जिनकी बाइक है उन्होंने कपड़े सिलने के लिए दिए थे और कपड़े लेने का आ ही बोले थे तो हमारी और हमारी मोहब्बत दोनों की मंजिल सेम थी उन्हें मार्केट करना था और हमे कपड़े ओ अपना मार्केट करने चली गई तब मैं अपने कपड़े लेने चला गया कपड़े वाले अभी रास्ते उन्हें आने मे वक्त लगता तो मै वहा इंतेजार किया फिर ओ आए और मै कपड़े ले लिया फिर वहा आई हमारी मोहब्बत और उनका जाना था सहेली के घर बोली कि मै आधे घंटे मै लौट आऊंगा हमने कहा ठीक है पर आधा घंटा से ज्यादा नही, फिर मै वही इंतजार करने लगा आधा घंटा बिता और दुकान वाले भैया अपना दुकान सजाने लगे मुझे जभी उठना पड़ता कभी बैठता ऐसे करते एक घंटा बीत गया पास के दुकान वाले मुझे देखे जा रहे थे आखिर माजरा क्या है लड़का अभि तक उनकी दुकान पर क्यू बैठा है और मै जिस रस्ते पर था ओ एक गली थीं उस रास्ते आटे जाते लोगों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता मै यही देखता फिर कभी फोन देखता आखिर में मुझसे रह न गया और निकल पड़ा ढूंढने कुछ दूर गया फिर वापस लौट आया क्यूंकि ओ जाती वक्त मुझसे कह गई थीं कि आप यही रहिएगा फिर मैने सोचा कि अगर मै उसे ढूंढने निकला और ओ उसी वक्त वहा आ गई और मुझे नही पाई तो परेशान हो जायेगी फिर मै वह गाय और उड़ी दुकान पर बैठ गया अब दो घंटे हो चुके और मीरा गुस्सा सातवें आसमान पर थ फिर वह आई और बोलि अब चले, मै कुछ नही बोल क्यूंकि मै गुस्से में था और उसे इसका आभास हो गया था कि लेट से आने की वजह से मै गुस्से में हूं।


फिर बैठी बाइक पर और कुछ दूर चलने के बाद ओ रुकने को कहीं मै रुका और आइस क्रीम लेने चली गईं मेरे मन में चलने लगा कि पैसे मै दे दूं फिर मेरा गुस्सा मुझे इजाजत नही दिया और ओ समान लेने के बाद वापस बाइक पर आकर बैठ गई और अब हम घर के लिए निकल पड़े उसके जैसे तैसे करके बाज़ार के भीड़ को पार किए उसके बाद मैने बाइक को रफ्तार फिर उसके हल्के हाथों के स्पर्श मुझे इशारा किए कि बाइक को धीमा रफ्तार से ले चले मैने भाई वैसा हाई किया बाइक को धीमी रफ्तार से ले जाने लगा, अगले पल ओ अपने हाथो से साइड मिरर को बैलेंस करके मुझे देखने लगी अब आप सोचेंगे कैसे तो ऐसे की अगर आप मिरर को मेरा चेहरा देखने के लिए इस्तेमाल करेंगे तो वही सीसा मै आपको भी देखने में इस्तेमाल कर सकता हूं।


फिर ओ मुझे एक टक निहारने लगी और आंखों से इशारे करने अब मेरे चेहरे पर गुस्से कि जगह मुस्कान आई और मै भी अब उसे देखने लगा और ऐसे करते हम घर को पहुंचे फिर जो आइस क्रीम ओ बाजार से लाई थीं मुझे खाने को दी और फिर मै उसके मुस्कान को अपना समझ वहा से विदा लिया अपने घर जाने को और अब मै हंसता चेहरा लेकर वहा से निकल पड़ा पूरे रास्ते उसके बारे में सोचता रहा और खुद को कोसता रहा कि गुस्सा करना जरूरी था है तो ओ मेरी मोहब्बत और इस मोहब्बत भरी कहानी का द्वितीय अध्याय भाई समाप्त हुआ अब हम मिलेंगे आपसे अपने तृतीय अध्याय के साथ.....

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सुंदर लिखा है आपने कृपया मेरी कहानी 'बहू की विदाई' के भी भागों पर अपना लाइक 👍 और व्यू दे दें 😊🙏

9 अगस्त 2023

2
रचनाएँ
एक प्रेम पहेली
0.0
एक ऐसा इश्क जो मेरी अपनी कहानी पर आधारित है। एक ऐसा इश्क जो पूरा होकर भी अधूरा रह गया.... ये कहानी मेरी जीवन की सरलतम प्रेम प्रसंग पर आधारित है आप सभी पढ़े और स्नेह दे..... धन्यवाद

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए