सखि,
आज हम एक ऐसे नायक के बारे में बात करेंगे जिसका नाम भारतीय इतिहास में कहीं भी नहीं मिलेगा लेकिन उसका नाम आसमान में दैदीप्यमान होकर नक्षत्र की तरह चमक रहा है ।
सखि, ये तो तुम जानती ही हो कि इस देश का इतिहास किसने लिखा ? अरे, वही वामपंथियों और गंगा जमनी तहजीब की प्रशस्ति गान करने वालों ने लिखा है जिन्होंने आक्रांताओं , आतताइयों और नृशंस हत्याएं करने वालों को नायक बताकर उनका महिमामंडन किया और देश के सच्चे सपूत जैसे बाजीराव आदि को कहीं गुमनामी के गहरे दलदल में धकेल दिया ।
आज हम एक ऐसे ही महान नायक गोपाल पाठा की बात करेंगे । ये बात सन 1946 की है । पहले हमें यह जानना पड़ेगा कि सन 1946 में भारत की राजनीतिक स्थिति कैसी थी ? तो सखि, मैं तुम्हें बता दूं कि तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था । 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था और वैश्विक रूप से अंग्रेजों पर दबाव पड़ रहा था कि जितने भी देशों पर उनका अवैध कब्जा है , उसे तुरंत हटा लिया जाये । आजाद हिंद फौज अंग्रेजों से लड़ रही थी और सशस्त्र सेनाओं ने भी विद्रोह करना शुरू कर दिया था । कहने का मतलब यह है कि उस समय अंग्रेजों को भारत पर अपना कब्जा बनाए रखना बहुत मुश्किल लग रहा था ।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के बारे में लगातार दबाव बना रही थी । भारत के विभिन्न प्रान्तों में कॉग्रेस या दूसरे दलों की सरकारें थीं । मुस्लिम लीग का गठन हो चुका था और उसने मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग रख दी थी और इसके लिए वह अंग्रेजों एवं कांग्रेस से लगातार बातचीत कर रही थी मगर तब गांधीजी इस बात पर अड़े हुए थे कि भारत के दो टुकड़े नहीं होंगे । बड़ा गजब का आंदोलन चल रहा था । कांग्रेस तो आजादी के लिए लड़ रही थी मगर मुस्लिम लीग "पाकिस्तान " के लिए लड़ रही थी ।
उन दिनों मुस्लिम लीग के सर्वेसर्वा मोहम्मद अली जिन्ना थे । तब तक बांग्लादेश अलग नहीं हुआ था और बंगाल प्रांत कहलाता था । कोलकाता भी बंगाल प्रांत में ही आता था । बंगाल के मुख्यमंत्री सुहारावर्दी थे जो जिन्ना के चेले थे । कोलकाता में 64 % हिन्दू और 35 % मुसलमान थे ।
पाकिस्तान की मांग के लिए मुहम्मद अली जिन्ना ने दबाव बनाने के लिए 16 अगस्त 1946 को "सीधी कार्यवाही" यानि कि Direct Action Day मनाने का फैसला ले लिया । मुसलमानों ने योजना बनाकर हिन्दुओं का सरेआम कत्लेआम का कार्यक्रम तैयार किया । इसके लिए पहले से हथियार मंगवाये गये और घर घर में भिजवा दिये गये । सुहारावर्दी ने पुलिस को आदेश दे दिया कि हिन्दुओं के कत्लेआम के समय पुलिस को नहीं जाना है । जब कत्लेआम खत्म हो जायेगा तब ही जाना है और थोड़ी बहुत नौटंकी करके काम चलाना है । सारी तैयारियां हो गई थी ।
ठीक 16 अगस्त 1946 को मुसलमान ग्रुप बनाकर हिन्दुओं पर टूट पड़े । सामूहिक कत्लेआम हुआ । उनकी बीवी, बहू और बेटियों को सरेआम नग्न किया गया । उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उन्हें सेक्स स्लेव बना लिया गया ।
16 अगस्त को अकेले कोलकाता में कम से कम 10000 हिन्दू मारे गये । 17 अगस्त को भी इतने ही हिन्दू मारे गए। पूरे कोलकाता में हाहाकार मच गया था । मुस्लिम लीग की योजना थी कि कोलकाता को हिन्दू विहीन कर दिया जाये । बर्बरता जारी थी । ना तो गांधीजी ने कोई हस्तक्षेप किया और न अंग्रेजो ने कोई पुलिस या सेना भेजी । हिन्दू भाग रहा था, मर रहा था, लुट रहा था । इज्जत की धज्जियां उड़ रही थी उसकी । औरतें "लोंडियां" बनाई जा रही थीं । हिन्दुओं के हौंसले पस्त हो गए थे ।
तब ऐसे समय में एक शेर खड़ा हुआ जिसका नाम था गोपाल पाठा । गोपाल कसाई का काम करता था और पहलवानी का अखाड़ा भी चलाता था । उसने कत्लेआम को रोकने के लिए अपने अखाड़े के 800 पहलवानों को लड़ने के लिए तैयार किया । गोपाल पाठा ने कहा "सच्चा वीर वही है जो एक के बदले दस सिर लेकर आए" । उसकी बातों ने जादू का सा काम किया और प्रतिरोध शुरू हो गया ।
अब आमने सामने की लड़ाई हो गई थी । गोपाल पाठा के नेतृत्व में हिंसा का जवाब हिंसा से दिया जाने लगा । मुसलमानों की लाशें बिछती चली गई ।
जब सुहारावर्दी ने देखा कि अब हिन्दुओं के बजाय मुसलमानों की लाशें बिछनी शुरू हो गई हैं तो उसने पुलिस भेज दी । उधर महात्मा गांधी जो दो दिन तक खामोश बैठे थे अब वे भी मैदान में आ कूदे और शांति की अपील करने लगे । जब हिंसा का जवाब हिंसा से मिलने लगा तो सीधी कार्यवाही रोक दी गई । यदि गोपाल पाठा नहीं होता तो ? सोचकर ही दिल दहल जाता है ।
ऐसे नायकों को मैं प्रणाम करता हूं , सखि ।
।हरिशंकर गोयल "हरि"
20.5 22