सखि,
एक बात तो बताओ कि सत्य से कौन डरता है ? वही ना जिसे पता है कि उसने झूठ का आडंबर बिछा रखा था और अब उसे भय है कि कहीं सत्य उजागर ना हो जाये । यदि ऐसा हो गया तो ? उसकी तो बरसों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा ।
इस देश में बरसों से "धर्मनिरपेक्षता" की दुकान चलाने वाले नेताओं, बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों, पत्तलकारों, कलाकारों ने देश को किस तरह अंधेरे में रखा इसका उदाहरण अयोध्या का राम मंदिर है । बिना किसी साक्ष्य के "खैराती इतिहासकारों" ने अपनी किताबों में लिख दिया कि वहां कोई मंदिर नहीं था । मगर जब इन तथाकथित इतिहासकारों की सुप्रीम कोर्ट में गवाही हुई तब सत्य सामने आ ही गया । उसका परिणाम आज सबके सामने है ।
इसी तरह वाराणसी के ज्ञानव्यापी मंदिर को विध्वंस कर उसे मस्जिद बना दिया गया । इसका उल्लेख औरंगजेब के जीवनी लेखक साकी मुस्तैद खां ने अपनी किताब "मासिर ए आलमगीरी" में किया है । उसमें लिखा है कि 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब के दरबार में एक पालना रिपोर्ट पढी गई थी जिसमें बताया गया था कि बादशाह के हुक्म से बनारस का ज्ञानव्यापी मंदिर तोड़ दिया है और वहां पर मस्जिद बना दी है । अब इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा ? लेकिन जिन्होंने जिंदगी भर झूठ परोसा हो तो उनसे सत्य बोलने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है । अगर वे ऐसा करते तो उनकी दुकान न जाने कब की बंद हो जाती । "गंगा जमुनी तहजीब" के झूठे नारे के चलते हमेशा "गंगा" की इज्जत उतारी गई है यहां पर ।
समय सबका बदलता है, कभी एक सा नहीं रहता है । बहुत सारे लोग जो नवाबी खानदान के हैं आज सड़कों पर पंचर बना रहे हैं । वक्त बदला तो ज्ञानव्यापी मंदिर के दिन भी बदलने लगे । ये प्रश्न गूंजने लगे कि अखर वह एक मस्जिद है तो उसमें "श्रंगार गौरी" का मंदिर क्यों है ? और अगर वहां मंदिर है तो फिर वह मस्जिद कैसे है ?
हमें उन 5 मातृ शक्तियों के साहस को सलाम करना चाहिए जिन्होंने एक केस अदालत में इस बाबत प्रस्तुत किया कि श्रंगार गौरी के मंदिर में साल में केवल एक दिन ही पूजा करने की अनुमति क्यों होनी चाहिए? रोजाना क्यों नहीं ? वहां पर हकीकत में क्या है ? इसकी जानकारी करने के लिए अदालत ने एक सर्वे टीम बनाई । उस सर्वे टीम के गठन मात्र से "गंगा जमुनी तहजीब" के पैरोकारों के तोते उड़ गये और उन्होंने इस सर्वे का विरोध करना शुरू कर दिया । आखिर सच सामने आने से कौन डर रहा है ? वही जो सालों से हमें बुद्धु बनाते आ रहे थे । वे लोग भागे भागे इलाहाबाद उच्च न्यायालय गये पर वहां से भी उन्हें कुछ नहीं मिला । तो अब क्या करते ? सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए । सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस सर्वे पर रोक लगाने से इंकार कर दिया । अब तो एक ही रास्ता था कि "भीड़" जमा करो और वह भी शाहीन बाग की तरह महिलाओं और बच्चों की जिससे विक्टिम कार्ड खेला जा सके । मगर वे लोग यह भूल गए कि वहां पर एक "योगी" बैठा है और वो भी "रिफ्रेश" होकर । तो उसने बनारस को छावनी बना दिया । कड़ी सुरक्षा में सर्वे हुआ ।
इस सर्वे में स्वयं बाबा विश्वनाथ प्रकट हो गए । इसीलिए तो कहते हैं कि सच सात ताले तोड़कर भी बाहर आ जाता है । पहाड़ फाड़कर भी बाहर आ जाता है । नदी, झील, तालाब, सागर में से तैरकर भी किनारे पर आ जाता है । बाबा विश्वनाथ का मूल शिवलिंग मंदिर के अंदर बने हुए एक तालाब में से निकला है । सखि, वह तालाब मजहब विशेष के लोगों के लिए "वजू" के काम आ रहा था । इस से घटिया हरकत और कोई हो ही नहीं सकती है कि जिस जगह पर एक समुदाय के आराध्य हों वहां पर कोई दूसरा समुदाय उसमें गंदे हाथ पांव कैसे धो सकता है ? मगर यही तो गंगा जमुनी तहजीब सिखाई गई है इस देश में ।
अब दूध का दूध और पानी का पानी होगा । पाखंड का आवरण हटेगा और सच का सूरज चमकेगा। बस, थोड़ा और धैर्य रखने की जरूरत है , सखि ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
17.5.22