सखि,
महान नेता सुभाष चंद्र बोस का नारा तो तुमने सुना ही होगा ना कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा । दरअसल नेताजी तब देश से गुहार कर रहे थे कि देश ऐसे लोग उन्हें दे जो इस देश की खातिर बलिदान होने के लिए तत्पर हों । इसीलिए उन्होंने यह आह्वान किया था । और देश ने उन्हें हजारों सपूत दिए भी जो देश की आजादी के लिए कुर्बान हो गए । यह आजादी अकेले चरखे से नहीं आई थी, बलिदान देने से भी आई है ।
सखि, अगर कोई जमीन से जुड़ा नेता जो ठेठ गंवई पृष्ठभूमि का हो , समाज के पिछड़े वर्ग से आता हो , तो वह क्या नारा देगा ? सोचो , जरा सोचकर तो देखो । अरे, अभी सोचने पर किसी भी प्रकार का ना तो कोई टैक्स लगता है और ना ही कोई सैस । इसलिए अभी खूब सोच सकती हो । वैसे भी आजकल "चिन्तन शिविरों" का दौर चल रहा है । तो कभी कभी तुम भी कर लिया करो चिन्तन, सखि ।
हमारे महान नेता, प्रात : स्मरणीय श्री लालू प्रसाद यादव को तो आप जानती ही होंगी । अरे, वही जो रोटी के बजाय चारा खाते थे । अब तुम ही बताओ कि अगर खाने को रोटी नहीं मिले तो क्या चारा भी नहीं चरे कोई ? और चारा चरना कोई अपराध है क्या ? बेचारे जानवर यदि चारा भी नहीं चरेंगे तो क्या चरेंगे, बीफ ? वैसे भी विज्ञान यही तो कहता है कि मानव बंदर की औलाद है । और बंदर तो एक जानवर है । इसलिए आदमी भी एक जानवर ही तो हुआ न ।
उफ्फ , कितने मनुवादी लोग हैं इस देश के । एक गरीब किसान का चारा चरना भी बर्दाश्त नहीं हुआ इन सवर्णों को ? अब तुम ही देख लो सखि , किस तरह अत्याचार किया है इन जालिम सवर्णों ने दलितों, किसानों, मजदूरों और पिछड़ों के साथ ? बेचारे एक गरीब आदमी को चारा चरने के आरोप में जेल भिजवा दिया । यही तो तानाशाही है मनुवादियों की । खाने को रोटी नहीं देंगे और यदि चारा चरकर कोई पेट भर
है तो उसे जेल में ठूंस देंगे । यही तो असहिष्णुता है जिसके खिलाफ लिबरल्स पिछले आठ साल से आवाज उठा रहे हैं ।
इतने से भी जब इनका पेट नहीं भरा तो माननीय लालू जी पर और भी कई सारे आरोप मंढ दिए । इन आरोपों में जब कुछ नहीं मिला तो जमीन हड़पने का आरोप ही चस्पा कर दिया उन पर । पर एक बात बताओ सखि, उन्होंने गलत क्या किया है ? सन 2004 से 2009 तक वे रेल मंत्री थे । रेल मंत्री रहते उन्होंने न जाने कितने गरीब किसानों के बच्चों को नौकरी दिलवाई थी । कितना अच्छा काम किया था उन्होंने ? छांट छांट कर ऐसे लोगों को नौकरी दी जिनके पास जमीन थी । अरे, रेल की नौकरी है कोई हवाईजहाज की तो है नहीं कि हवा में उड़ते रहो । आखिर रेल चलती तो जमीन पर ही है ना । जिसके पास जमीन होगी उसी को तो नौकरी मिलेगी ?
सखि, ये विरोधी लोग कह रहे हैं कि उन्होंने ये नौकरी जमीन के बदले में दी थी । कैसे पागल लोग हैं ये ? इन्हें इतना भी नहीं पता कि लेन देन का तो चोली दामन का साथ है । इस हाथ ले उस हाथ दे । ये तो प्रकृति का नियम है । इसमें कोई इंसान कैसे दखल दे सकता है । और , इस देश में तो ले देकर काम निकलवाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है । उस परंपरा का ही तो पालन किया था उन्होंने । उन्होंने नौकरी देने की एवज में कोई पैसा लिया था क्या ? नहीं ना । तो फिर भ्रष्टाचार का केस कैसे बना ? ये केंद्र की सरकार अपने विरोधियों के खिलाफ जानबूझकर झूठे केस बना रही है ।
सखि, महान संत शिरोमणि श्री श्री 1008 लालू प्रसाद यादव जी ने नौकरी देने के बदले खेती के लिए जमीन ही तो ली थी । तो यह घटना ये बताती है कि आदरणीय लालू जी इतने साल मुख्यमंत्री रहे, केंद्र में मंत्री रहे लेकिन उन्होंने पैसे को हाथ तक नहीं लगाया । उनका जमीन से प्रेम हमेशा बरकरार रहा । उन्होंने कभी "रबड़ी मलाई" नहीं खाई बस, "राबड़ी" से ही काम चलाया है आज तक । लोग तो न जाने "बरफी" , "गुलाब जामुन" , "रसमलाई" क्या क्या हड़प कर जाते हैं । लेकिन श्री लालू जी केवल "राबड़ी" पर ही आसक्त रहे । आज के जमाने में ऐसा चरित्रवान नेता कहीं मिलता है क्या ?
अब तुम पूछोगी कि उन्होंने जमीन क्यों ली ? तो ऐसा है कि उन्हें चारे का बहुत शौक है । अब चारा हवा में तो उगता नहीं है ना । उसे उगाने के लिए जमीन तो चाहिए ना । बस, इसीलिए जमीन ली थी उन्होंने । एक तो चारा उत्पादन बढाकर उन्होंने कृषि विकास में योगदान दिया । और लोग उसे भ्रष्टाचार कह रहे हैं ? घिन आती है लोगों की सोच पर । वे जब रेलमंत्री थे तब ईमानदार शिरोमणि मौनमोहन सिंह प्रधानम॔त्री थे । अगर लालू जी भ्रष्टाचार करते तो क्या उसकी खबर सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री को नहीं होती ? ऐसा तो था नहीं कि मौनमोहन सिंह आंखें बंद कर चुपचाप बैठे रहते ।"'रेनकोट पहन कर शॉवर लेने" की कला में वे माहिर थे ।
सखि, मेरा तो मानना है कि इतने भोले, सज्जन, ईमानदार, विद्वान, किसान, पिछड़े और नौ बच्चों के बाप के घरों पर सी बी आई की "रेड" मारना बिल्कुल ही गलत है । और है क्या उनके पास ? कोई 200 प्लॉट्स, 30 फ्लैट्स और करीब 50 दूसरी संपत्ति ही तो है । इतनी संपत्ति तो किसी बाबू के पास ही मिल जाती है । इसलिये महान व्यक्तित्व के धनी श्री लालू जी पर लगे सारे मुकदमे सरकार को वापस लेने चाहिए ।
आज के लिए इतना ही । कल फिर मिलते हैं । बाय बाय
हरिशंकर गोयल "हरि"
21.5.22