कहानी, लघु कथायें और आलेख
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<p>राजीव! हाँ यही नाम था, एक महत्वाकांक्षी, साँवले, पतले-दुबले, पढ़ने में कुछ खास नहीं, मगर मेहनती,
<p>बमम्म्म्म !!! एक ज़ोरदार आवाज़ और एक हाँथ उड़ कर मेरे घर के पास आ के गिरा, अचानक से कुछ पल के लिय
<p>"धरती पर जब जब परेसानी बढ़ा है <br> भगवान ने तब तब एक रूप गढ़ा है" <br> <br> सन 1938, देश आजादी क
<p>गाँव की दो औरतें बाजार से सामान लेकर लौट रही थीं, आसमान नीला दिख रहा था, गर्मी और बरसात का महीना
<p>जीतू जीतू जीतू जीतू................ मैदान के बाहर बैठे दर्शक ये हल्ला कर रहे थे
खट खट, खट खट !! दरबाजा खोलिये ! टिंग टौंग ! हाँ भाई आ रही हूँ थोड़ा सब्र तो करो! पता नहीं कौन है I शाम का वक़्त था दिन के पांच बज रहे थे, गर्मी का समय था तो ..